January 10, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय १२२ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय १२२ माघ-स्नान-विधि भगवान् श्रीकृष्ण बोले — महाराज ! कलियुग में मनुष्यों को स्नान-कर्म में शिथिलता रहती है, फिर भी माघ-स्नान का विशेष फल होने से इसकी विधि का वर्णन कर रहा हूँ । जिसके हाथ, पाँव, वाणी, मन अच्छी तरह संयत हैं और जो विद्या, तप तथा कीर्ति से समन्वित हैं, उन्हें ही तीर्थ, स्नान-दान आदि पुण्य कर्मों का शास्त्रों में निर्दिष्ट फल प्राप्त होता है । परन्तु श्रद्धाहीन, पापी, नास्तिक, संशयात्मा और हेतुवादी (कुतार्किक) — इन पाँच व्यक्तियों को शास्त्रोक्त तीर्थ-स्नान आदि का फल नहीं मिलता । प्रयाग, पुष्कर तथा कुरुक्षेत्र आदि तीर्थों में अथवा चाहे जिस स्थान पर माघ-स्नान करना हो तो प्रातःकाल ही स्नान करना चाहिये । माघ मास में प्रातः सूर्योदय से पूर्व स्नान करने से सभी महापातक दूर हो जाते हैं और प्राजापत्य-यज्ञ का फल प्राप्त होता है । जो ब्राह्मण सदा प्रातःकाल स्नान करता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर परब्रह्म को प्राप्त कर लेता है । उष्ण जल से स्नान, बिना ज्ञान के मन्त्र को जप, श्रोत्रिय ब्राह्मण के बिना श्राद्ध और सायंकाल के समय भोजन व्यर्थ होता है । वायव्य, वारुण, ब्राह्म और दिव्य — ये चार प्रकार के स्नान होते. हैं । गायों के रज से वायव्य, मन्त्रों से ब्राह्म, समुद्र, नदी, तालाब इत्यादि के जल से वारुण तथा वर्षा के जल से स्नान करना दिव्य स्नान कहलाता है । इनमें वारुण स्नान विशिष्ट स्नान हैं । ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यासी और बालक, तरुण, वृद्ध, स्त्री तथा नपुंसक आदि सभी माघ मास में तीर्थों में स्नान करने से उत्तम फल प्राप्त करते हैं । ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य मन्त्रपूर्वक स्नान करें और स्त्री तथा शूद्रों को मन्त्रहीन स्नान करना चाहिये । माघ मास में जल का यह कहना है कि जो सूर्योदय होते ही मुझमें स्नान करता है, उसके ब्रह्महत्या, सुरापान आदि बड़े-से-बड़े पाप भी हम तत्काल धोकर उसे सर्वथा शुद्ध एवं पवित्र कर डालते हैं । माघ-स्नान के व्रत करनेवाले व्रती को चाहिये कि वह संन्यासी की भाँति संयम-नियम से रहे, दुष्टों का साथ नहीं करे । इस प्रकार के नियमों का दृढ़ता से पालन करने से सूर्य-चन्द्र के समान उत्तम ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है । पौष-फाल्गुन के मध्य मकर के सूर्य में तीस दिन प्रातः माघ-स्नान करना चाहिये । ये तीस दिन विशेष पुण्यप्रद हैं । माघ के प्रथम दिन ही संकल्पपूर्वक माघ-स्नान का नियम ग्रहण करना चाहिये । स्नान करने जाते समय व्रती को बिना वस्त्र ओढ़े जाने से कष्ट सहन करना पड़ता है, उससे उसे यात्रा में पग-पग पर अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है । तीर्थ में जाकर स्नानकर मस्तक पर मिट्टी लगाकर सूर्य को अर्घ्य देकर पितरों का तर्पण करे । जल से बाहर निकलकर इष्टदेव को प्रणामकर शंख-चक्रधारी पुरुषोत्तम भगवान् श्रीमाधव का पूजन करे । अपनी सामर्थ्य के अनुसार यदि हो सके तो प्रतिदिन हवन करे, एक बार भोजन करे, ब्रह्मचर्य-व्रत धारण करे और भूमि पर शयन करे । असमर्थ होने पर जितना नियम का पालन हो सके उतना ही करे, परंतु प्रातःस्नान अवश्य करना चाहिये । तिल का उबटन, तिलमिश्रित जल से स्नान, तिलों से पितृ-तर्पण, तिल का हवन, तिल का दान और तिल से बनी हुई सामग्री का भोजन करने से किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता । तीर्थ में शीत के निवारण करने के लिये अग्नि प्रज्वलित करनी चाहिये । तैल और आँवले का दान करना चाहिये । इस प्रकार एक माह तक स्नानकर अन्त में वस्त्र, आभूषण, भोजन आदि देकर ब्राह्मण का पूजन करें और कंबल, मृगचर्म, वस्त्र, रस्त्र तथा अनेक प्रकार के पहननेवाले कपड़े, रजाई, जूता तथा जो भी शीतनिवारक वस्त्र हैं, उनका दान कर ‘माधव:प्रीयताम्’ यह वाक्य कहना चाहिये । इस प्रकार माघ मास में स्नान करनेवाले के अगम्यागमन, सुवर्ण की चोरी आदि गुप्त अथवा प्रकट जितने भी पातक हैं, सभी नष्ट हो जाते हैं । माघ-स्नायी पिता, पितामह, प्रपितामह तथा माता, मातामह, वृद्धमातामह आदि इक्कीस कुलसहित समस्त पितरों आदि का उद्धार कर और सभी आनन्द को प्राप्तकर अन्त में विष्णुलोक को प्राप्त करता है । (अध्याय १२२) Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe