January 12, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय १२७ से १२९ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय १२७ से १२९ इष्टापूर्त की महिमा भविष्यपुराण में यह विषय तीन पर्वों में तीन बार आया है और वेदों से लेकर स्मृतियों तथा अन्य पुराणों में भी बार-बार आता है । यह अन्तर्वेदी और बहिर्वेदी के नाम से विख्यात है । इसमें जलाशय, वृक्ष, उद्यान आदि लगाने से सर्वाधिक पुण्यों का लाभ बताया गया है। भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा — राजन् । विधिपूर्वक वापी, कूप, तडाग, बावली, वृक्षोद्यान तथा देवमन्दिर आदि का निर्माण करानेवाले तथा इन कार्यों में सहयोगी-कर्मकार शिल्पी, सूत्रधार आदि सभी पुण्यकर्मा पुरुष अपने इष्टापूर्तधर्म के प्रभाव से सूर्य एवं चन्द्रमा की प्रभा के समान कान्तिमान् विमान में बैठकर दिव्यलोक को प्राप्त करते हैं । जलाशय आदि की खुदाई के समय जो जीव मर जाते हैं, उन्हें भी उत्तम गति प्राप्त होती है । गाय के शरीर में जितने भी रोमकूप हैं, उतने दिव्य वर्ष तक तडाग आदि का निर्माण करनेवाला स्वर्ग में निवास करता है । यदि उसके पितर दुर्गति को प्राप्त हुए हों तो उनका भी वह उद्धार कर देता है । पितृगण यह गाथा गाते हैं कि देखो ! हमारे कुल में एक धर्मात्मा पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसने जलाशय का निर्माणकर प्रतिष्ठा की । जिस तालाब के जल को पीकर गौएँ संतृप्त हो जाती हैं, उस तालाब बनवानेवाले के सात कुलों का उद्धार हो जाता है । तड़ाग, वापी, देवालय और सघन छायावाले वृक्ष — ये चारों इस संसार से उद्धार करते हैं । जिस प्रकार पुत्र के देखने से माता-पिता के स्वरूप का ज्ञान होता है, उसी प्रकार जलाशय देखने और जल पीने से उसके कर्ता के शुभाशुभ का ज्ञान होता है । इसलिये न्याय से धन का उपार्जनकर तड़ाग आदि बनवाना चाहिये । धूप और गर्मी से व्याकुल पथिक यदि तडागादि के समीप जल का पान करे और वृक्षों की घनी छाया में ठंडी हवा का सेवन करता हुआ विश्राम करे तो तागादि की प्रतिष्ठा करनेवाला व्यक्ति अपने मातृकुल और पितृकुल का उद्धार कर स्वयं भी सुख प्राप्त करता है । इष्टापूर्तकर्म करनेवाला पुरुष कृतकृत्य हो जाता है । इस लोक में जो तडागादि बनवाता है, उसीका जन्म सफल है और उसी की माता पुत्रिणी कहलाती है । वही अजर है, वही अमर है । जबतक तडाग आदि स्थित है और उसकी निर्मल कीर्ति का प्रचार-प्रसार होता रहता है, तबतक वह व्यक्ति स्वर्गवास का सुख प्राप्त करता है । जो व्यक्ति हंस आदि पक्षी को कमल और कुवलय आदि पुष्पों से युक्त अपने तड़ाग में जल पीता हुआ देखता है और जिसके तालाब में घट, अञ्जलि, मुख तथा चंचु आदि से अनेक जीव-जन्तु जल पीते हैं, उसी व्यक्ति का जन्म सफल है, उसकी कहाँतक प्रशंसा की जाय । जो तडाग आदि बनाकर उसके किनारे देवालय बनवाता है तथा उसमें देवप्रतिष्ठा करता है, उसके पुण्य का कहाँतक वर्णन किया जाय ? देवालय की ईंट जबतक खण्ड-खण्ड न हो जाय, तबतक देवालय बनानेवाला व्यक्ति स्वर्ग में निवास करता है । कूप ऐसे स्थान पर बनवाना चाहिये, जहाँ बहुत-से जीव जल पी सके, कूप का जल स्वादिष्ट हो तो कूप बनवानेवाले के सात कुलों का उद्धार हो जाता है । जिसके बनाये हुए कूप का जल मनुष्य पीते हैं, वह सभी प्रकार का पुण्य प्राप्त कर लेता है, ऐसा मनुष्य सभी प्राणियों का उपकार करता है । तडाग बनवाकर उसके तट पर वृक्षों के बीच उत्तम देवालय बनवाने से उस व्यक्ति की कीर्ति सर्वत्र व्याप्त रहती है और बहुत समय तक दिव्य भोग भोगकर वह चक्रवर्ती राजा का पद प्राप्त करता है । जो व्यक्ति वापी, कूप, ताग, धर्मशाला आदि बनवाकर अन्न का दान करता है और जिसका वचन अति मधुर है, उसका नाम यमराज भी नहीं लेते । वे वृक्ष धन्य हैं, जो फल, फूल, पत्र, मूल, वल्कल, मूल, लकड़ी और छाया द्वारा सबका उपकार करते हैं । वस्तुओं के चाहनेवालों को वे कभी निराश नहीं करते । धर्म-अर्थ से रहित बहुत से पुत्रों से तो मार्ग में लगाया गया एक ही वृक्ष श्रेष्ठ है, जिसकी छाया में पथिक विश्राम करते हैं । सघन छायावाले श्रेष्ठ वृक्ष अपनी छाया, पल्लव और छाल के द्वारा प्राणियों को, पुष्पों के द्वारा देवताओं को और फलों के द्वारा पितरों को प्रसन्न करते हैं । पुत्र तो निश्चित नहीं है कि एक वर्षपर भी श्राद्ध करेगा या नहीं, परंतु वृक्ष तो प्रतिदिन अपने फल-मूल पत्र आदि का दानकर वृक्ष लगानेवाले का श्राद्ध करते हैं । वह फल न तो अग्निहोत्रादि कर्म करने से और न ही पुत्र उत्पन्न करने से प्राप्त होता है, जो फल मार्ग में छायादार वृक्ष के लगाने से प्राप्त होता है । छायादार वृक्ष, पुष्प देनेवाले वृक्ष, फल देनेवाले वृक्ष तथा वृक्षवाटिका कुलीन स्त्री की भाँति अपने पितृकुल तथा पतिकुल दोनों कुलों को उसी प्रकार सुख देनेवाले होते हैं, जैसे लगाये गये वृक्ष आदि अपने लगानेवाले तथा रक्षा आदि करनेवाले दोनों के कुलों का उद्धार कर देते हैं । जो भी बगीचा आदि लगाता है, उसे अवश्य ही उत्तम लोक की प्राप्ति होती है और वह व्यक्ति नित्य गायत्रीजप का, नित्य दान का और नित्य यज्ञ करने का फल पाता है । जो पुरुष एक पीपल, एक नीम, एक बरगद, दस इमली तथा एक-एक कैथ, बिल्व और आमलक तथा पाँच आम के वृक्ष लगाता है, वह कभी नरक का मुँह नहीं देखता । जिसने जलाशय न बनवाया हो और एक भी वृक्ष न लगाया हो, उसने संसार में जन्म लेकर कौन-सा कार्य किया । वृक्षों के समान कोई भी परोपकारी नहीं है । वृक्ष धूप में खड़े रहकर दूसरों को छाया प्रदान करते हैं तथा फल, पुष्प आदि से सबका सत्कार करते हैं । मानवों की शुभ गति पुत्रों के बिना नहीं होती — यह कथन तो उचित ही है, किंतु यदि पुत्र कुपुत्र हो गया तो वह अपने पिता के लिये कलंकस्वरूप तथा नरक का हेतु भी बन जाता है । इसलिये विद्वान् व्यक्ति को चाहिये कि विधिपूर्वक वृक्षारोपण करके उसका पालन-पोषण करे । इससे संसार में न तो कलंक होता है और न निन्द्य गति ही प्राप्त होती है, बल्कि कीर्ति, यश एवं अन्त में शुभ गति प्राप्त होती है । इसी प्रकार जो व्यक्ति भव्य देव-मन्दिर बनवाकर उसमें देवमूर्तियों की प्रतिमाओं को स्थापित करता है, मन्दिर में अनुलेपन, देवताओं का अभिषेक, दीपदान तथा विविध उपचारों द्वारा उनकी अर्चा करता अथवा करवाता है, वह इस संसार में राज्यश्री प्राप्त कर अन्त में परमधाम को प्राप्त करता है तथा इस लोक में कीर्ति एवं यशरूपी शरीर से प्रतिष्ठित रहता है । (अध्याय १२७–१२९) Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. 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