भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय १५४
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय १५४
घृत-धेनु-दान-विधि

भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं — महाराज ! अब मैं घृतधेनु दान और घृतधेनु-निर्माण की विधि बता रहा हूँ, इसे आप प्रेमपूर्वक सुनें । गाय के घी से भरे हुए कलशों को गाय की आकृति में बनाकर उन्हें गन्ध, पुष्प आदि से अलंकृत कर श्वेत वस्त्र से भलीभाँति ढँक दे और दोहन-स्थान पर कांस्य की दोहनी रख दें । om, ॐपैरों की जगह पर ईख के डंडे, खुर की जगह पर चाँदी, आँख के स्थान पर सोना, सींगों के स्थान पर अगरु काष्ठ, दोनों बगल में सप्तधान्य, गलकम्बल के स्थान पर ऊनी वस्त्र, नासिका के स्थान पर तुरुष्कदेशीय कपूर, स्तनों के स्थान पर फल, जिह्वा के स्थान पर शर्करा, मुख के स्थान पर दूधमिश्रित गुड़, पूँछ की जगह पर रेशमी वस्त्र तथा रोओं की जगह पर सफेद (गौर) सरसों और पीठ की जगह ताम्रपात्र स्थापित करे । इस प्रकार से घृतधेनु की रचना करे । इसी प्रकार घृतधेनु के पास ही घृतधेनु-वतस की भी कल्पना करे । तदनन्तर विधिपूर्वक घृतधेनु की प्रतिष्ठा कर भलीभाँति पूजन करे और इस प्रकार कहे —

“आज्यं तेजः समुद्दिष्टमाज्यं पापहरं परम् ।
आज्यं सुराणामाहारः सर्वमाज्ये प्रतिष्ठितम् ॥
त्वं चैवाज्यमयी देवि कल्पितासि मया किल ।
सर्वपापापनोदाय सुखाय भव भामिनि ॥”
(उत्तरपर्व १५४ । ८-९)
‘घृत को तेजोवर्धक तथा पापापहारी बतलाया गया है । देवताओं का आहार घृत ही है, सभी कुछ घृत में ही प्रतिष्ठित है, इसलिये घृतमयी देवि ! तुम मेरे द्वारा घृतकुण्डों में कल्पित की गयी हो, मेरे पापों को नष्टकर मुझे आनन्द प्रदान करो ।’

ऐसा कहकर दक्षिणासहित घृतधेनु का दान ब्राह्मण को दे दे और कहे कि— ब्राह्मणदेवता ! मेरा उपकार करने के लिये आप इस आज्यमयी धेनु को ग्रहण करें । उस दिन घृत का ही आहार करना चाहिये । इसी विधि से नवनीत (मक्खन) धेनु का भी दान करना चाहिये । घृतधेनु का दान करनेवाला व्यक्ति उस लोक में निवास करता है, जहाँ घी और दूध की नदियाँ बहती हैं । वह व्यक्ति अपने सात पीढ़ी के लोगों का भी उद्धार कर देता है । ये फल तो सकाम दान देनेवाले व्यक्तियों के हैं, किंतु जो व्यक्ति निष्कामभाव से घृतधेनु का दान करता है, वह निष्कल्मष होकर परम पद को प्राप्त करता है । घृत सर्वदेवमय है, इसलिये घृत के दान से सभी देवता प्रसन्न हो जाते हैं ।
(अध्याय १५४)

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