भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय १५५
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय १५५
लवण धेनु दान-विधि

राजा युधिष्ठिर ने कहा — भगवन् ! आप इस प्रकार दान की विधि का वर्णन करें, जिसे करने से सभी दानों का फल प्राप्त हो जाय एवं सभी पापों का नाश हो जाय और सभी मनोरथ सिद्ध हो जायें तथा व्यक्ति शुद्ध हो जाय ।

भगवान् श्रीकृष्ण बोले — महाराज ! सभी दानों में लवणधेनु का दान उत्तम है । इससे ब्रह्महत्या, गोहत्या, पितृहत्या, गुरुपत्नीगमन, विश्वासघात, क्रूरता आदि अनेक प्रकार के पापों का आचरण करनेवाला व्यक्ति मुक्त हो जाता है । om, ॐवह धन, धान्य, पुत्र, पौत्र एवं सुख प्राप्त कर दीर्घायु होकर इस संसार के सुख को भोगकर अन्त में शिवलोक को प्राप्त कर लेता है । अब मैं इस लवणधेनुदान की विधि को बता रहा हूँ —

भूमि को गोबर से लीपकर उसके ऊपर कुश बिछा दे तथा उसके ऊपर मेष का चर्म बिछा दे । उस पर पूर्व दिशा की ओर मुँह करके बैठे । चाहे कोई मनुष्य धनी हो या गरीब प्रायः एक आढ़क अर्थात् चार सेर लवण रखकर उसमें धेनु की कल्पना करनी चाहिये । सुवर्णमण्डित चन्दनकाष्ठ के सींग, चाँदी के खुर, ईख के पैर, फलों के स्तन, शर्करा की जिह्वा, चन्दन की नासिका, सीप के कान, मोतियों की आँखो की कल्पना कर उसके कपोल में सक्तुपिण्ड, मुख में जौ, दोनों पार्श्व में तिल और गेहूँ इस प्रकार सप्तधान्य उस लवणधेनु के अङ्गों में स्थापित करे । इसी प्रकार ताम्र से पीठ, गुडपिण्ड से अपान-देश, कम्बल से पूँछ का, अंगूर से चार स्तनों का, मधुर फलों एवं मधु से योनि-देश की रचना करनी चाहिये । इस प्रकार उपर्युक्त सामग्रियों से लवण-धेनु की रचनाकर सेरभर नमक के मान से उसके वत्स की कल्पना करे । धेनु तथा बछड़े को वस्त्र-आभूषण आदि से अलंकृत करे । तदनन्तर स्वयं स्नान कर देवताओं और ब्राह्मण की पूजा करे । स्त्री-पुत्र के साथ गाय की पूजा एवं प्रदक्षिणा करे और इस मन्त्र को पढ़कर नमस्कार करे —

“लवणे वै रसाः सर्वे लवणे सर्वदेवताः ।
सर्वदेवमये देवि लवणाख्ये नमोऽस्तु ते ॥”
(उत्तरपर्व १५५ । १८)
‘लवण में सभी रस निहित हैं । सभी देवताओं का निवास लवण में रहता है, इसलिये सर्वदेवमयी लवणधेनु ! आपको मेरा नमस्कार है ।’

अनन्तर दक्षिणा के साथ वह धेनु ब्राह्मण को समर्पित कर दें । राजन् ! लवणधेनु का दान करने से सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा और सभी यज्ञों तथा दानों का भी फल प्राप्त हो जाता है । इस विधि से जो व्यक्ति रसमयी लवणधेनु का दान करता है, उसे सौभाग्य, सुख, आरोग्य, सम्पत्ति, धन-धान्य की प्राप्ति होती है तथा वह प्रलयपर्यन्त स्वर्ग में निवास करता है ।
(अध्याय १५५)

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