भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय १५८
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय १५८
उभयमुखी धेनु-दान का माहात्म्य

महाराज युधिष्ठिर ने पूछा — प्रभो ! उभयमुखी अर्थात् प्रसव के समय में गौ का दान किस प्रकार करना चाहिये और उसके दान का क्या फल है । इसे आप बतायें ।

भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा — महाराज ! उभयमुखी गौ-दान का संयोग बड़े भाग्य से प्राप्त होता है । जबतक बछड़े के पैर प्रसव के समय भीतर हों और केवल सिर बाहर दिखलायी दे उस समय वह गौ मानो साक्षात् सप्तद्वीपवती पृथ्वी है । om, ॐऐसी उभयमुखी गौ के दान के फल का वर्णन शक्य नहीं । यज्ञ और दान करने से जो फल प्राप्त नहीं होता, वह फल केवल उभयमुखी-धेनु के दान से ही प्राप्त हो जाता है और दाता का उद्धार हो जाता है । सींगों को स्वर्ण से, खुरों को चाँदी से तथा पूंछ को मोती की मालाओं से अलंकृतकर जो उभयमुखी धेनु का दान करता है, वह गौ और बछड़े के शरीर में जितने रोम हैं, उतने ही हजार वर्ष तक स्वर्ग में पूजित होता है तथा अपने पितरों का उद्धार कर देता है । जो व्यक्ति सुवर्णसहित उभयमुखी धेनु का दान करता है, उसके लिये गोलोक और ब्रह्मलोक सुलभ हो जाता है । दुर्बल, अङ्गहीन गौ और दक्षिणा से रहित दान नहीं करना चाहिये ।
(अध्याय १५८)

Please follow and like us:
Pin Share

Discover more from Vadicjagat

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.