भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय १६०
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय १६०
वृषभदान की महिमा

महाराज युधिष्ठिर ने कहा — जनार्दन ! आपकी अमृतमयी वाणी से मुझे तृप्ति नहीं हो रही है, मेरे हृदय में एक कौतूहल है । तीनों लोकों में यह प्रसिद्धि है कि गौओं का स्वामी-गोपति (वृषभ) गोविन्दस्वरूप है, अतः प्रभो ! ऐसे महनीय वृषभ-दान का फल बताने की कृपा करें ।

भगवान् श्रीकृष्ण बोले — राजन् ! सुनिये, यह वृषभ-दान पवित्रों में पवित्रतम और दानों में सबसे उत्तम दान हैं । एक स्वस्थ हष्ट-पुष्ट वृषभ के दान का फल दस धेनु के दान से अधिक है ।om, ॐ हृष्ट-पुष्ट, युवा, सुन्दर, सुशील, रूपवान् और ककुद्मान् एक ही शुभ लक्षणसम्पन्न वृष के दान से उस दान करनेवाले व्यक्ति के सभी कुल का उद्धार हो जाता है । पुण्यपर्व के दिन वृषभ की पूँछ में चाँदी लगाकर तथा भलीभाँति उसे अलंकृत कर दे, तदनन्तर दक्षिणा के साथ उस वृष का दान ब्राह्मणों को देकर इस प्रकार प्रार्थना करे —

“धर्मस्त्वं वृषरूपेण जगदानन्दकारकः ।
अष्टमूर्तेरधिष्ठानमतः पाहि सनातन ।।”
(उत्तरपर्व १६० । ९)

इस विधि से वृषभ-दान करनेवाले व्यक्ति के सात जन्म पहले किये गये समस्त पाप इसके प्रभाव से उसी क्षण नष्ट हो जाते हैं और अन्त में वह व्यक्ति वृषभयुक्त कामचारी दिव्य विमान में वैठकर स्वर्गलोक में चला जाता है । महीपते । उस वृष के शरीर में जितने रोम हैं, उतने हजार वर्ष तक वह गोलोक में पूजित होता है, इसके बाद गोलोक से अवतीर्ण होकर इस लोक में उनम कुलीन ब्राह्मण के घर में जन्म लेता है । वह व्यक्ति यज्ञ करनेवाला, महान् तेजस्वी और सभी ब्राह्मणों द्वारा पूजित होता है । महाराज ! आपने जो यह पूछा कि यह उत्तम वृषदान किसे करना चाहिये, उसके विषय में मैं बतला रहा हूँ । जो ब्राह्मण शान्तचित, जितेन्द्रिय, वेदवेत्ता, अहिंसक और प्रतिग्रह से डरनेवाला, मनुष्यों का उद्धार करने में समर्थ तथा गृहस्थ हो । उसे दृढ़, पुष्ट, बलवान्, भार-वहन करने में समर्थ और सब गुणों से युक्त उत्तम वृष प्रदान करना चाहिये । इस प्रकार से एक वृषभ का दान दस धेनु-दान से भी अधिक फलप्रद है ।
(अध्याय १६०)

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