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भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय १६१
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय १६१
कपिलादान की महिमा

महाराज युधिष्ठिर ने कहा — जगत्पते ! अब आप कपिला-दान का माहात्म्य बतलाने की कृपा करें, जो समस्त पापों का नाश करनेवाला एवं दानों में परम पुण्यप्रद है ।

भगवान् श्रीकृष्ण बोले —
महामते ! इस सम्बन्ध में प्राचीन काल में विनताश्व ने भगवान् वाराह एवं धरणीदेवी के जिस संवाद को मुझे बताया था उसे आप सुने । धरणीदेवी के पूछने पर भगवान् वाराह ने कहा कि ‘भद्रे ! कपिला गौ के दान करने से सम्पूर्ण पापों का नाश हो जाता है तथा यह परम पवित्र है ।om, ॐ पूर्वकाल में ब्रह्माजी ने सम्पूर्ण तेजों का सार एकत्र कर यज्ञों में अग्निहोत्र की सम्पन्नता के लिये कपिला गौ की रचना की थी । कपिला गौ पवित्रों को पवित्र करनेवाली, मङ्गलों का मङ्गल तथा परम पूज्यमयी है । तप इसीका रूप है, व्रतों में यह उत्तम व्रत, दानों में उत्तम दान तथा निधियों में यह अक्षय निधि है । पृथ्वी में गुप्त रूप से या प्रकट रूप से जितने पवित्र तीर्थ है एवं सम्पूर्ण लोकों में द्विजातियों द्वारा सायंकाल और प्रातःकाल अग्निहोत्र आदि हवन की जो भी क्रियाएँ हैं, वे सभी कपिला गाय के घृत, क्षीर तथा दही से होती हैं । भामिनि ! कपिला के सिर और ग्रीवा में सम्पूर्ण तीर्थ निवास करते हैं । जो मनुष्य प्रातःकाल उठकर उसके गले एवं मस्तक के गिरे हुए जल को श्रद्धापूर्वक सिर झुकाकर प्रणाम करता है, वह पवित्र हो जाता है और उसी क्षण उसके पाप भस्म हो जाते हैं । प्रातःकाल उठकर जिसने कपिला गौ की प्रदक्षिणा की, उसने मानो सम्पूर्ण पृथ्वी की प्रदक्षिणा कर ली । वसुन्धरे ! कपिला गौ की एक प्रदक्षिणा करने पर भी दस जन्म के किये हुए पाप नष्ट हो जाते हैं । पवित्र व्रत के आचरण करनेवाले पुरुष को कपिला गौ के मूत्र से स्नान करना चाहिये । ऐसा करनेवाला मानो गङ्गा आदि सभी तीर्थ में स्नान कर चुका । भक्तिपूर्वक एक बार कपिला के गोमूत्र से स्नान करने पर मनुष्य जीवनभर के किये हुए पाप नष्ट हो जाते हैं । एक हजार गौ के दान का फल एक कपिला गौ के दान के समान है । गौओं की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिये । गौ के दूध-दही, घृत, गोमूत्र, गोमय आदि को अपवित्र नहीं करना चाहिये । गौओं के शरीर को खुजलाना और उनकी सेवा करना परम श्रेष्ठ धर्म माना गया है । गौ के भय एवं रोग की स्थिति में उसकी भलीभांति सेवा करनी चाहिये । जो गौओं के चरने के लिये हरी-भरी गोचरभूमि का दान करता है, वह दिव्य स्वर्गवास का फल प्राप्त करता है । साक्षात् ब्रह्माजी ने कपिला गौ के दस भेद बतलाये हैं । इस कपिला गौ का जो श्रोत्रिय ब्राह्मण को दान करता है वह अप्सराओं से अलंकृत दिव्य विमान पर प्रतिष्ठित होकर स्वर्ग जाता है । सोने के समान रंगवाली कपिला प्रथम श्रेणी की हैं और गौर पिङ्गलवर्णवाली द्वितीय श्रेणी की । तीसरी लाल-पीले नेत्रवाली, चौथी अग्नि के समान नेत्रवाली, पाँचवीं जुहू के समान वर्णवाली, छठी घी के समान पिङ्गलवर्णवाली, सातवीं उजली-पीली, आठवीं दुग्धवर्ण के समान पीली, नवीं पाटलवर्णवाली तथा दसवीं पीले पूँछ्वाली । ये सभी कपिलाएँ संसार-सागर से उद्धार कर देती हैं, इसमें संशय नहीं । जो शूद्र होकर कपिला का दान लेता है और उसका दूध पीता है, वह पतित होकर चण्डाल हो जाता है और अन्त में नरक में जाता है । इसलिये किसी ब्राह्मणेतर को कपिला का दान नहीं लेना चाहिये । श्रोत्रिय, धनहीन, सदाचारी तथा अग्निहोत्री ब्राह्मण को एक कपिला गौ का दान करने से दाता सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है ।

गृहस्थ पुरुष को चाहिये कि दान देने के लिये जल्दी ही प्रसव करनेवाली धेनु का पालन करे । जिस समय वह कपिल धेनु आधा प्रसव करने की स्थिति हो जाय, उसी समय उसे ब्राह्मण को दान कर देना चाहिये । जब उत्पन्न होनेवाले बछरे का मुख योनि के बाहर दीखने लगे और शेष अङ्ग अभी भीतर ही रहें, अर्थात् अभी पूरे गर्भ का उसने मोचन (बाहर) नहीं किया, तबतक वह धेनु सम्पूर्ण पृथ्वी के समान मानी जाती हैं । वसुन्धरे ! ऐसी गाय का दान करनेवाले पुरुष ब्रह्मवादियों से सुपूजित होकर ब्रह्मलोक में उतने करोड़ वर्षों तक निवास करते हैं, जितनी कि धेनु और बछड़े के रोमों की संख्याएँ होती हैं । सोने से सींग तथा चाँदी से खुर को सम्पन्न करके कपिला गौ का दान करते समय उस धेनु का पुच्छ ब्राह्मण के हाथ पर रख दे । हाथ पर जल लेकर शुद्ध वाणी में ब्राह्मण से संकल्प पढ़वावे । जो पुरुष इस प्रकार (उभयमुखी गौका) दान करता है, उसने मानों समुद्र से घिरी तथा पर्वतों, वनों एवं रत्नों से परिपूर्ण समूची पृथ्वी का दान कर दिया — इसमें कोई संशय नहीं । ऐसा मनुष्य इस दान से निश्चय ही पृथ्वी-दान के तुल्य फल का भागी होता है । वह अपने पितरों के साथ प्रसन्नतापूर्वक भगवान् विष्णु के परम धाम में पहुँच जाता है । ब्राह्मण का धन छीननेवाला, गोघाती अथवा गर्भपात करानेवाला, दूसरों को ठगनेवाला, वेदनिन्दक, नास्तिक, ब्राह्मणों का निन्दक और सत्कर्म में दोषदृष्टि रखनेवाला महान् पापी समझा जाता है । किंतु ऐसा घोर पापी भी बहुत से सुवर्णों से युक्त उभयमुखी कपिला के दान से समस्त पापों से मुक्त हो जाता है । दाता को चाहिये कि उस दिन क्षीर का भोजन करे अथवा दूध के ही सहारे रहे ।

जो इस प्रकार उभयमुखी कपिला गौ का दान करता है वह सम्पूर्ण पृथ्वी के दान का फल प्राप्त कर लेता है । जो व्यक्ति प्रातःकाल उठकर समाहितचित्त से तीन बार भक्तिपूर्वक इस कल्प-गोदान-विधान को पढ़ता है, उसके वर्षभर के किये हुए पाप उसी क्षण इस प्रकार नष्ट हो जाते हैं, जैसे वायु के झोंके से धूल के समूह । जो पुरुष श्राद्ध के अवसर पर इस परम पावन प्रसङ्ग का पाठ करता है, उस बुद्धिमान् पुरुष के अन्तर में दिव्य संस्कार भर जाते हैं और पितर उसकी वस्तुओं को बड़े प्रेम से ग्रहण करते हैं । जो अमावास्या को ब्राह्मणों के सम्मुख इसका पाठ करता है, उसके पितर सौ वर्ष के लिये तृप्त हो जाते हैं । जो पुरुष मन लगाकर निरन्तर इसका श्रवण करता है, उसके सौ वर्षों के पाप नष्ट हो जाते हैं ।
(अध्याय १६१)

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