भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय १६४
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय १६४
भूमिदान की महिमा

भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं — महाराज ! अब मैं सभी पापों को दूर करनेवाले भूमिदान की विधि बता रहा हूँ । जो अग्निहोत्री, दरिद्र-कुटुम्ब तथा वैदिक ब्राह्मण को दक्षिणासहित भूमि का दान करता है, वह बहुत समय तक ऐश्वर्यों का भोगकर अन्त में दिव्य विमान में बैठकर विष्णुलोक को जाता है । जबतक उसके द्वारा प्रदत्त भूमि पर अंकुर उपजते रहते हैं, तबतक भूमिदाता विष्णुलोक में पूजित होता है । भूमिदान के अतिरिक्त और कोई भी दान विशिष्ट नहीं माना गया है ।om, ॐ पुरुषर्षभ ! अन्य दान कालक्रम से क्षीण हो जाते हैं, परंतु भूमिदान का पुण्य क्षीण नहीं होता । जो व्यक्ति सस्यसम्पन्न भूमि का दान करता है, वह जबतक भगवान् सूर्य रहेंगे, तबतक सूर्यलोक में वह पूजित होता रहेगा । धन-धान्य, सुवर्ण, रत्न, आभूषण आदि सब दान करने का फल भूमिदान करनेवाला प्राप्त कर लेता है । जिसने भूमिदान किया, उसने मानो समुद्र, नदी, पर्वत, सम-विषम स्थल, गन्ध, रस, क्षीरयुक्त ओषधि, पुष्प, फल, कमल, उत्पल आदि सब कुछ दान कर दिया । दक्षिणा से युक्त अग्निष्टोम आदि यज्ञ करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, वह पुण्य भूमिदान करने से प्राप्त हो जाता है । ब्राह्मण को भूमिदान देकर पुनः उससे वापस नहीं लेना चाहिये । सस्यसम्पन्न भूमि का दान करनेवाले व्यक्ति के पितर प्रलयपर्यन्त संतुष्ट रहते हैं । अपनी आजीविका के निमित्त जो पाप पुरुष से होता है, वे सारे पाप गोचर्म-मात्र भूमि के दान करने से दूर हो जाते हैं । एक हजार स्वर्ण मुद्रा के दान से जो फल बतलाया गया है, वहीं फल गोचर्म-प्रमाण में भूमि का दान देने से प्राप्त हो जाता है । नरोत्तम ! हजारों कपिला गौओं के दान करने के समान पुण्य गोचर्म-मात्र भूमि देने से प्राप्त होता है । सगर आदि अनेक राजाओं ने भूमि का उपयोग किया है, परंतु अपने-अपने आधिपत्य में जिसने भी भूमि का दान किया, सभी को उसका फल प्राप्त हुआ । यमदूत, मृत्युदण्ड, असिपत्रवन, वरुण के घोर पाश और रौरवादि अनेक नरक और उनकी दारुण यातनाएँ भूमिदान करनेवाले के समीप नहीं आती । चित्रगुप्त, मृत्यु, काल, यम आदि सब भूमिदाता की पूजा करते हैं । राजन् ! भगवान् रुद्र, प्रजापति, इन्द्रादि देवता और असुरगण भूमि का दान करनेवाले की पूजा करते हैं, स्वयं मैं भी उसकी अतीव प्रसन्नता से पूजा करता हूँ । जिस भाँति माता अपनी संतान का और गौ जैसे अपने वत्स का दूध आदि के द्वारा पालन करती है, उसी प्रकार रसमयी भूमि भी भूमि देनेवाले की रक्षा और पालन-पोषण करती है । जिस प्रकार जल के सेचन से बीज अंकुरित होते हैं, उसी प्रकार भूमिदान से सब मनोरथ अंकुरित होकर सफल सिद्ध होते हैं । जिस प्रकार सूर्य के उदय होते ही उनके प्रकाश से अन्धकार दूर हो जाता है, उसी प्रकार भूमि के दान से सभी प्रकार के पाप दूर हो जाते हैं ।

भूमि को दान देकर वापस लेनेवाले को यमदूत वारुण पाशों से बाँधकर पूय तथा शोणित से भरे कुण्डों में डालते हैं । अपने द्वारा दी गयी अथवा दूसरे व्यक्ति के द्वारा दी गयी भूमि का जो व्यक्ति अपहरण करता है, वह प्रलयपर्यन्त नरकाग्नि में जलता रहता है । दान में प्राप्त भूमि के हरण हो जाने पर दुःखित व्यक्ति के रोने-कल्पने से जितने अश्रुबिन्दु गिरते हैं, उतने हजार वर्ष तक भूमि का हरण करनेवाला नरक में कष्ट भोगता है । ब्राह्मण को भूमिदान देकर जो व्यक्ति पुनः उस भूमि का हरण करता है, उसे उल्टा लटका कर कुम्भीपाक नरक में पकाया जाता है । दिव्य हजार वर्ष के बाद वह व्यक्ति कुम्भीपाक से निकलकर इस भूमि पर जन्म लेता है और सात जन्म तक अनेक प्रकार के कष्टों को भोगता रहता है । इसलिये भूमि का हरण नहीं करना चाहिये ।
(अध्याय १६४)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.