January 13, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय १६८ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय १६८ गृहदान-विधि महाराज युधिष्ठिर ने कहा — भगवन् ! आप सभी शास्त्रों के मर्मज्ञ हैं, अतः आप गृहदान की विधि और महिमा बतलाने की कृपा करें । भगवान् श्रीकृष्ण बोले — महाराज ! गार्हस्थ्यधर्म से बढ़कर कोई धर्म नहीं और असत्य से बढ़कर कोई पाप नहीं है । ब्राह्मण से बढ़कर कोई पूज्य नहीं और गृहदान से बढ़कर कोई दान नहीं है । धन, धान्य, स्त्री, पुत्र, हाथी, घोड़ा, गौ, भृत्य आदि से परिपूर्ण घर स्वर्ग से भी अधिक सुख देनेवाला है । जिस प्रकार सभी प्राणी माता के आश्रय से जीवित रहते हैं, उसी प्रकार सभी आश्रम भी गृहस्थ-आश्रम पर ही आधृत हैं । अपने घर रात्रि को पैर फैलाकर सोने में जो सुख है, वह सुख स्वर्ग में भी नहीं । अपने घर में शाक का भोजन करना भी उतम सुख है, इसलिये महाराज ! सुन्दर घर बनवाकर ब्राह्मण को देना चाहिये । जो व्यक्ति शैव, वैष्णव, योगी, दीन, अनाथ, अभ्यागत आदि के लिये गृह, धर्मशाला बनाता है, उस व्यक्ति को सभी व्रत और सभी प्रकार के दान करने का फल प्राप्त हो जाता है । पक्के ईंट से सुदृढ़, ऊँचा, शुभवर्ण, जाली, झरोखा, स्तम्भ, कपाट आदि से युक्त, जलाशय और पुष्प-वाटिका से भूषित, उत्तम आँगन से सुशोभित सुन्दर घर बनाना चाहिये । गृह कछुए की पीठ के समान ऊँचा एवं बरामदों से सुसज्जित होना चाहिये । उसे कई मंजिलों तथा गलियों आदि से समन्वित होना चाहिये । लोहा, सोना, चाँदी, ताँबा, लकड़ी, मृत्तिका आदि के पात्र, वस्त्र, चर्म, वल्कल, तृण, पाषाण, पात्र, रत्न, आभूषण, गाय, भैंस, घोड़ा, बैल, सभी प्रकार के धान्य, घी, तेल, गुड़, तिल, चावल, ईख, मूंग, गेहूं, सरसों, मटर, अरहर, चना, उड़द, नमक, खजूर, द्राक्षा, जीरा, धनिया, चूल्हा, चक्की, छलनी, ऊखल, मूसल, सूप, हाँडी, मथानी, झाड़ तथा जलकुम्भ आदि ये सब गृह के उपकरण हैं, इनको घर में स्थापित करने के बाद शुभ मुहूर्त में कुलीन एवं शीलसम्पन्न, वेदशास्त्र के जाननेवाले, गृहस्थधर्म का पालन करनेवाले, जितेन्द्रिय सपत्नीक ब्राह्मणों को बुलाकर वस्त्र, गन्ध, आभूषण, पुष्पमाला आदि से उनका पूजन कर शान्तिकर्म के लिये उनको नियुक्त करना चाहिये । घर के आँगन में एक मेखलासहित कुण्ड का निर्माण करवाना चाहिये । ब्राह्मणों द्वारा तुष्टि-पुष्टि प्रदान करनेवाला ग्रहयाग करे । ब्राह्मण रक्षोघ्नसूक्त पढ़ने के बाद वास्तु-पूजाकर सभी दिशाओं में भूतबलि दें । इसके बाद यजमान पुण्य पवित्र घोष के साथ ब्राह्मणों को दान के निमित्त बनाये गये उन घरों में प्रवेश कराये और वहाँ शय्याओं पर उन सपत्नीक ब्राह्मणों को बिठलाये । जिस घर को पूर्व में ही जिस ब्राह्मण के लिये नियत किया गया है उसे ‘इदं गृहं गृहाण’ – ‘इस गृह को ग्रहण करें’ ऐसा कहकर प्रदान करे । ब्राह्मण ‘स्वस्ति’ कहें और ‘कोऽदात्० (यजु ७ । ४८) इस मन्त्र का पाठ करें । यदि सामर्थ्य हो तो एक-एक घर ब्राह्मणों को दे अथवा एक ही घर बनवाकर एक सत्पात्र ब्राह्मण को देना चाहिये । राजन् ! शीत, वायु और धूप से रक्षा करनेवाली तृणमयी कुटी ब्राह्मणों को देने पर भी जब सभी कामनाओं की पूर्ति हो जाती है और स्वर्ग प्राप्त होता है । तो फिर उत्तम घर दान देने के फल का वर्णन कहाँतक किया जा सकता हैं ! गाय, भूमि, सुवर्ण आदि के दान और अनेक प्रकार के यम-नियमों का पालन गृहदान के सोलहवें भाग की भी बराबरी नहीं कर सकते । जो व्यक्ति सभी सामग्रियोंसहित सुदृढ़ और सुन्दर घर ब्राह्मण को दान करता है, वह शिवलोक को प्राप्त करता है । (अध्याय १६८) Related