January 2, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय २० ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय २० हरकाली व्रत कथा राजा युधिष्ठिर ने पूछा — भगवन् ! भगवती हरकाली देवी कौन है ? इनका पूजन करने से स्त्रियों को क्या फल प्राप्त होता है ? इसका आप वर्णन करें ? भगवान् श्रीकृष्ण बोले — महाराज ! दक्ष प्रजापति की एक कन्या का नाम था काली । उनका वर्ण भी नीलकमल के समान काला था । उनका विवाह भगवान शंकर के साथ हुआ । विवाह के बाद भगवान् शंकर भगवती काली के साथ आनन्दपूर्वक रहने लगे । एक समय भगवान् शंकर भगवान् विष्णु के साथ अपने सुरम्य मण्डप में विराजमान थे । उस समय हँसकर शिवजी ने भगवती काली को बुलाया और कहा — ‘प्रिये ! गौरि ! यहाँ आओ ।’ शिवजी का यह वक्रवाक्य सुनकर भगवती को बहुत क्रोध आया और वे यह कहकर रुदन करने लगी कि ‘शिवजी ने मेरा कृष्णवर्ण देखकर परिहास किया है और मुझे गौरी कहा है, अतः अब मैं अपनी इस देह को अग्नि में प्रज्वलित कर दूँगी ।’ भगवान् शंकर ने उन्हें अग्नि में प्रवेश करने से रोकने का प्रयत्न किया, परन्तु देवी ने अपनी देह की हरितवर्ण की कान्ति हरी दूर्वा आदि घास में त्यागकर अपनी देह को अग्नि में हवन कर दिया और उन्होंने पुनः हिमालय की पुत्री रूप में गौरी नाम से प्रादुर्भूत होकर शिवजी के वामाङ्ग में निवास किया । इसी दिन से जगत्पुज्या श्रीभगवती का नाम ‘हरकाली’ हुआ । महाराज ! भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को सब प्रकार के नये धान्य एकत्रकर उनपर अंकुरित हरी घास से निर्मित भगवती हरकाली की मूर्ति स्थापित करे और गंध, पुष्प,धूप, दीप, मोदक आदि नैवेद्य तथा भाँति-भाँति के उपचारों से देवी का पूजन करें । रात्रि में गीत-नृत्य आदि उत्सवकर जागरण करे और देवी हरकाली को इस मन्त्र से प्रणाम करे — “हरकर्मसमुत्पन्ने हरकाये हरप्रिये । मां त्राहीशस्य मुर्तिस्थे प्रणतोऽस्मि नमो नम: ॥” (उत्तरपर्व २० । २०) ‘भगवान् शंकर के कृत्य से उत्पन्न हे शंकरप्रिये ! आप भगवान् शंकर के शरीर में निवास करनेवाली हैं, भगवान् शंकर की मूर्ति के स्थित रहनेवाली हैं, मैं आपकी शरण हूँ, आप मेरी रक्षा करें । आपको बार-बार प्रणाम है ।’ इस प्रकार देवी का पूजनकर प्रातःकाल सुवासिनी स्त्रियाँ बड़े उत्सव से गीत-नृत्यादि करते हुए प्रतिमा को पवित्र जलाशय के समीप ले जायँ और इस मन्त्र को पढ़ते हुए विसर्जित करे — “अर्चितासि मया भक्त्या गच्छ देवि सुरालयम् । हरकाले शिवे गौरि पुनरागमनाय च ॥” ( उत्तरपर्व २० । २२) ‘हे हरकाली देवि ! मैंने भक्तिपूर्वक आप की पूजा की है, हे गौरि ! आप पुनः आगमन के लिये इस समय देवलोक को प्रस्थान करें ।’ इस विधि से प्रतिवर्ष, जो स्त्री अथवा पुरुष व्रत करता हैं, वह आरोग्य, दीर्घायुष्य, सौभाग्य, पुत्र, पौत्र, धन, बल, ऐश्वर्य आदि प्राप्त करता है और सौ वर्ष तक संसार का सुख भोगकर शिवलोक प्राप्त करता है । महादेव के अनुग्रह से वहाँ वीरभद्र, महाकाल, नन्दीश्वर, विनायक आदि शिवजी के गण उसकी आज्ञा में रहते हैं । जो भी स्त्री भक्तिपूर्वक यह हरकाली व्रत करती है और रात्रि के समय गीत-वाद्य-नृत्य से जागरण कर उत्सव मनाती है, वह अपने पति को अति प्रिय होती है । (अध्याय २०) Related