January 15, 2019 | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय १८३ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय १८३ महाभूतघटदान का वर्णन श्रीकृष्ण बोले — मैं तुम्हें महाभूत घट दान नामक एक अन्य उत्तम दान बता रहा हूँ, जो महान पातकों का विनाश करता है । किसी पुण्य तिथि में अपने लिये अपने गृहाङ्गण में सुवर्ण कलश का निर्माण कर महान् रत्नों समेत उसे स्थापित करे । नरोत्तम ! वह कलश सौ अंगुल प्रमाण और यथाशक्ति पाँच पल से ऊपर सौ पल तक सुवर्ण का होना चाहिए । क्षीरघृत से पूर्ण कर कल्प वृक्ष समेत उसकी प्रतिष्ठा करते हुए पद्मासन के उपर ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश्वर की स्थापना करे और सभी लोकपाल तथा महेन्द्र आदि देवगण अपने-अपने वाहनों पर स्थित रहकर ही स्थापित किये जायँ । अनन्तर अक्षसूत्र समेत ऋग्वेद, पंकज सहित यजुर्वेद, वीणाधारी सामवेद, शुभ माल समेत अथर्ववेद, अक्षसूत्र, कमण्डलु समेत वरप्रद पुराणवेद एवं सप्तधान्य की स्थापना बुध (विद्वान्) को करनी चाहिए । चरणपादुका, उपानह, छत्र, चामर, आसन तथा आयुध समेत उस महाभूत घट की सविधि स्थापना गुड़सार के ऊपर सुसम्पन्न कर माला, वस्त्र आदि से अर्चना करे । तदुपरांत पर्व के समय स्नान करके संयमपूर्वक तीन प्रदक्षिणा करते हुए कहे — यस्मान्न किचिदप्यस्ति महाभूतैर्विना कृतम् । महाभूतमयश्चायं तस्माच्छान्तिं ददातु मे ।।. अत्र सन्निहिता देवाः स्थापिता विश्वकर्मणा । ते मे शान्तिं प्रयच्छन्तु भक्तिभावेन पूजिताः ॥ (उत्तरपर्व १८३ । १०-११) ‘महाभूत के बिना इस संसार में कुछ भी नहीं रह सकता है । अतः यह महाभूतमय मुझे शांति प्रदान करने की कृपा करे। इस (महाभूत) घर में विश्वकर्मा ने समस्त देवों को स्थापित किया है । अतः मेरे द्वारा भक्तिभाव से पूजित होने पर वे देवगण मुझे शांति प्रदान करे ।’ इस भाँति महाभूत घट की अर्चा के उपरान्त भूषण वस्त्र द्वारा ब्राह्मण की पूजा करके संयम पूर्वक उस पर्व के समय उसे ब्राह्मण को समर्पित करे । अनन्तर ब्राह्मण की प्रदक्षिणा और अभ्यर्चना करके विसर्जित करे । इस विधान द्वारा इस दान को सुसम्पन्न करने वाले अपनी इक्कीस पीढ़ी समेत शिवलोक की प्राप्ति करते हैं । कदाचित् पुण्य क्षीण होने पर इस लोक में धार्मिक राजा होता है, जो अजेय, महाबली और पराक्रमी होता है तथा अपने क्षत्रिय धर्म में अटल रहकर देव ब्राह्मण का पूजक होता है इस प्रकार आठ चरण वाले इस महाभूत घट का विमल निर्माण करके ब्रह्मा, विष्णु शिव, लोकपाल समेत वह घट जो क्षीर घृत से परिपूर्ण रहता है, नमस्कार एवं भक्तिपूर्वक ब्राह्मण को अर्पित करो क्योंकि इसके समक्ष अन्य सैकड़ों दान से दया लाभ हो सकता है । (अध्याय १८३) Related