January 2, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय २१ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय २१ ललितातृतीया –व्रत की विधि राजा युधिष्ठिर ने कहा — भगवन ! अब आप द्वादश मासों में किये जानेवाले व्रतों का वर्णन करें, जिनके करने से सभी उतम फल प्राप्त होते हैं, साथ ही प्रत्येक मास-व्रत का विधान भी बताने की कृपा करे । भगवान् श्रीकृष्ण बोले — महाराज ! इस विषय में मैं एक प्राचीन वृत्तान्त सुनाता हूँ, आप सुने – एक समय देवता, गन्धर्व, यक्ष, किन्नर, सिद्ध, तपस्वी, नाग आदि से पूजित भगवान श्रीसदाशिव कैलासपर्वत पर विराजमान थे । उस समय भगवती उमा ने विनयपूर्वक भगवान् सदाशिव से प्रार्थना की कि महाराज ! आप मुझे उत्तम तृतीया-व्रत के विषय में बताने की कृपा करें, जिसके करने से नारी को सौभाग्य, धन, सुख, पुत्र, रूप, लक्ष्मी, दीर्घायु तथा आरोग्य प्राप्त होता है और स्वर्ग भी प्राप्ति होती है । उमा की यह बात सुनकर भगवान् शिव ने हँसते हुए कहा — ‘प्रिये ! तीनों लोकों में ऐसा कौन-सा पदार्थ है जो तुम्हे दुर्लभ है तथा जिसकी प्राप्ति के लिये व्रत की जिज्ञासा कर रही हो ।’ पार्वतीजी बोली — महाराज ! आपका कथन सत्य ही है । आपकी कृपा से तीनों लोकों के सभी उत्तम पदार्थ मुझे सुलभ है, किन्तु संसार में अनेक स्त्रियाँ विविध कामनाओं की प्राप्ति के लिये तथा अमंगलों की निवृत्ति के लिये भक्तिपूर्वक मेरी आराधना करती है तथा मेरी शरण आती है । अतः ऐसा कोई व्रत बताइये, जिससे वे अनायास अपना अभीष्ट प्राप्त कर सके । भगवान् शिव ने कहा — उमे ! व्रत की इच्छावाली स्त्री संयमपूर्वक माघ शुक्ल तृतीया को प्रातः उठकर नित्यकर्म सम्पन्न कर व्रत के नियम को ग्रहण करे । मध्याह्न के समय बिल्व और आमलकमिश्रित पवित्र जल से स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करे तथा गन्ध, पुष्प, दीप, कपूर, कुंकुम एव विविध नैवेद्यों से भक्तिपूर्वक भक्तों पर वात्सल्यभाव रखनेवाली तुम्हारी (पार्वती की ) भक्तिभाव से पूजा करे । अनन्तर ईशानी नाम से तुम्हार ध्यान करते हुए ताँबे के घड़े में जल, अक्षत तथा सुवर्ण रखकर सौभाग्यादि की कामना से संकल्पपूर्वक वह घट ब्राह्मण को दान दे दे और इस प्रकार प्रार्थना करें कि— “ब्रह्मावर्तात्समायाता ब्रह्मयोनेविनिर्गता ॥ भदेश्वरा ततो देवी ललिता शङ्करप्रिया । गङ्गाद्वाराद्धरं प्राप्ता गङ्गाजलपवित्रिता ॥ सौभाग्यारोग्यपुत्रार्थमर्थार्थं हरवल्लभे । आयाता घटिकां भद्रे प्रतीक्षस्व नमोनमः ॥” (उत्तरपर्व २० । २२-२४) ‘ब्रह्मयोनि से निकलने और ब्रह्मावर्त से आगमन करने के नाते भद्रेश्वर और पश्चात् ललिता शंकर प्रिया आप का नाम हुआ है । हर वल्लभ ! गङ्गाद्वार (हरिद्वार) में हर से मिलकर गंगाजल से पवित्र हुई हो । अतः सौभाग्य, आरोग्य, पुत्र एवं धन की प्राप्ति के लिए मैं आप की आराधना कर रहा हूँ, आप यहाँ आकर इस घटिका का निरीक्षण करें । आपको बार-बार नमस्कार है ।’ ब्राह्मण उस घटस्थ जल से व्रतकर्त्री का अभिषेक करे । अनन्तर वह कुशोदक का ध्यान करते हुए भूमि पर कुश की शय्या बिछाकर सोये । दुसरे दिन प्रातः उठकर स्नान से निवृत्त हो, विधिपूर्वक भगवती का पूजन करे और यथाशक्ति ब्राह्मणों को भोजन कराये तथा स्वयं भी मौन होकर भोजन करे । इस प्रकार भगवती का प्रथम मास में ईशानी नाम से, द्वितीय मास में पार्वती नाम से, तृतीय मास के शंकरप्रिया नाम से, चतुर्थ मास में भवानी नाम से, पाँचवे मास में स्कन्दमाता नाम से, छठे मास में दक्षदुहिता नाम से, सातवें मास में मैनाकी नाम से, आठवें मास में कात्यायनी नवें मास में हिमाद्रिजा नाम से, दसवें मास में सौभाग्यदायिनी नाम से, ग्यारहवें मास में उमा नाम से तथा अंतिम बारहवें मास में गौरी नाम से पूजन करे । बारहों मासों में क्रमशः कुशोदक, दुग्ध, घृत, गोमूत्र, गोमय, फल, निम्ब-पत्र, कंटकारी, गोशृंगोदक, दही, पञ्चगव्य और शाक का प्राशन करे । इस प्रकार बारह मास तक व्रतकर श्रद्धापूर्वक भगवती की पूजा करे और प्रत्येक मास में ब्राह्मणों को दान दे । व्रत की समाप्ति पर वेदपाठी ब्राह्मण को पत्नी के साथ बुलाकर दोनों में शिव-पार्वती की बुद्धि रखकर गन्ध-पुष्पादि से उनकी पूजा करे और उन्हें भक्तिपूर्वक भोजन करावे तथा आभूषण, अन्न, दक्षिणा आदि देकर उन्हें संतुष्ट करे । ब्राह्मण को दो शुक्ल वस्त्र तथा ब्राह्मणी को दो रक्त वस्त्र प्रदान करे । जो स्त्री इस व्रत को भक्तिपूर्वक करती है, वह अपने पति के साथ दिव्यलोक में जाकर दस हजार वर्षों तक उत्तम भोगों का भोग करती हैं । पुनः मनुष्य-लोक में आने के बाद वे दोनों दम्पति ही होते हैं और आरोग्य, धन, सन्तान आदि सभी उत्तम पदार्थ उन्हें प्राप्त होते हैं । इस व्रत का पालन करनेवाली स्त्री का पति सदा उसके अधीन रहता है और इसे अपने प्राणों से भी अधिक मानता है । जन्मान्तर में व्रतकर्त्री स्त्री राजपत्नी होकर राज्य-सुख का उपभोग करती है । (अध्याय २१) Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe