भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय १८९
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय १८९
सुवर्णनिर्मितहाथी के रथ-दान का वर्णन

श्रीकृष्ण बोले — महाराज ! मैं तुम्हें सुवर्ण निर्मित गजरथ का दान बता रहा हूँ, जिसके प्रदान करने से मनुष्य को विष्णु लोक प्राप्त होता है । किसी पर्व, संक्रान्ति, या ग्रहण के समय देवरथ के समान उस रथ को बना कर मणिभूषित करे । विचित्र तोरणों और चारों चक्र (चक्के) से युक्त उस रथ में सुवर्ण भूषित चार गजराजों को नियुक्त करे । om, ॐउसकी ध्वजा में गरुड, आठों लोकपाल, ब्रह्मा, सूर्य, शिव का स्थापित करते हुए मध्यभाग में लक्ष्मी समेत नारायण की स्थापना करे । कृष्णजिन (काले मृग चर्म) और द्रोण प्रमाण तिल के ऊपर उस रथ को प्रतिष्ठित करते हुए उसे अनेक भाँति के फल और वितान (चॅदोवा), नूतन रेशमीवस्त्र से भूषित कर पुष्पों से अर्पित करे । नरोत्तम ! उसके निर्माण में पाँच पल से लेकर सौ पल तक सुवर्ण होना चाहिए । पश्चात् स्नान,देव-पितृ पूजन करके तीन प्रदक्षिणा समेत हाथ में पुष्पाञ्जलि इस मंत्र का उच्चारण करके जिससे समस्त सौख्य की प्राप्ति होती है —

“नमो नमः शङ्करपद्मजार्कलोकेशविद्याधरवासुदेवैः ।
त्वं सेव्यसे वेदपुराणयज्ञै स्तेजोमयस्यंदन पाहि तस्मात् ।।
यत्तत्पदं परमगुह्यतमं मुरारेरानंदहेतुगणरूपविमुक्तवन्तम् ।।
योगैकमानसदृशो मुनयः समाधौ पश्यन्ति तत्त्वमसि नाथ रथाधिरूढ ॥
यस्मात् त्वमेव भवसागरसंप्लुताण्डमानन्दभारमृतध्वरपानपात्रम् ।
तस्मादघौघशमनेन कुरु प्रसादं चामीकरभरथ माधव सम्प्रदानात् ।।
(उत्तरपर्व १८९ । ९-११)
स्यन्दन! शंकर, ब्रह्मा, सूर्य, लोक पाल, विद्याधर, शिव, विष्णु आदि समस्त देवगण तुम्हारी सेवा करते हैं, उसी प्रकार वेद, पुराण और यज्ञ भी तुम्हारी शुश्रुषा में लगे रहते हैं अतः मैं तुम्हें नमस्कार करता हूँ, मेरे तेज की रक्षा करो! प्राचीन एवं अत्यन्त गुह्य जिस पद की प्राप्ति के लिए, जो परमानन्द रूप हैं, मुक्त वन्धन योगी गण, जो योग द्वारा सदैव ब्रह्म-ध्यान में मग्न रहते हैं, समाधि में तत्त्वमसि (जीव ही ब्रह्म है) रूप में तुम्हीं को देखते हैं । इस संसार सागर से पार होने वाले मनुष्यों के लिए तुम आनन्द विधान पात्र हो, जो मध्य में आवश्यकतानुसार प्राप्त होता रहे, सुवर्ण निर्मित गजरथ! तुम साक्षात् माधव रूप हो अतः मेरे ऊपर पापनाशपूर्वक प्रसन्न होने की कृपा करो ।

इस प्रकार प्रणाम पूर्वक वह कनक गजरथ का, जो विद्याधर, देवगण और मुनियों समेत स्थापित हो, दान करने वाला समस्त पापों से युक्त होकर चन्द्रमौलि (शिव) का पद प्राप्त करता है । इस (संसार) में पाप का चंदोवा (विस्तृत पाप का) करने वाले प्राणी भी, जो पाप की अधिकताओं के नाते अप्रसन्न अग्नि आदि देवों द्वारा विकृत देह (कुष्टी) हो गया हो, इस गजरथ दान द्वारा अपने बन्धुओं -पितृ-पौत्रों आदि को रौरवादि नरकों से बचा कर विष्णु का शाश्वत पद प्राप्त करता है ।
(अध्याय १८९)

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