भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय १९२
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय १९२
नक्षत्र दान-विधि का वर्णन

युधिष्ठिर ने कहा — माधव ! आप की कृपा से मैंने समस्त दानों का विधान जान लिया है अतः इस समय मुझे नक्षत्र-दान का सविधान दान कल्प बतायें ।

श्रीकृष्ण बोले — इस विषय का तुम्हें एक प्राचीन इतिहास बता रहा हूँ, जिसमें देवकी और देवर्षि नारद का संवाद हुआ है । एक बार द्वारकापुरी में देवर्षि नारद के आगमन होने पर उन देवदर्शन को देख धर्ममूर्ति देवकी ने यही उनसे पूछा था । om, ॐविशाम्पते ! देवकी के पूछने पर देवर्षि नारद ने उसके उत्तर में उन्हें जो कुछ बताया था उसे सविधि मैं तुम्हें बता रहा हूँ, सुनो ! समस्त पातकों को विनष्ट करने वाला वह नक्षत्र योग कह रहा हूँ ।

महाभाग ! कृत्तिका नक्षत्र में घृत पूर्ण पायस (खीर) से साधुओं और ब्राह्मणों को तृप्त करने पर उत्तम लोक की प्राप्ति होती है । पाण्डव श्रेष्ठ ! उसी भाँति रोहिणी नक्षत्र में घृत समेत अन्न द्वारा साधुओं, ब्राह्मण को तृप्त करने पर उत्तम लोक की प्राप्ति होती है । क्योंकि ऋणरहित होने के लिए ब्राह्मणों को खीर भोजन से तृप्त ही करना चाहिए । अतः मृगशिरा नक्षत्र में सवत्सा एवं दूध देने वाली गौ का दान करने से दिव्य विमान द्वारा स्वर्ग की प्राप्ति होती है । नरोत्तम ! आर्द्रा नक्षत्र में तिल मिश्रित कृशान्न (खिचड़ी) दान करने से मनुष्य समस्त कठिनाइयों को पार करता है । पुनर्वसु नक्षत्र में घृत में भलीभाँति पकाये हुए पूआ के दान करने से अपने कुल में यशस्वी, रूपवान्, एवं सज्जन होता है । पुष्य नक्षत्र में केवल सुवर्ण दान से चाहे वह अन्य सुकृत किये हो, लोक-परलोक में चन्द्रमा की भाँति सुशोभित होता है । आश्लेषा नक्षत्र में चाँदी का दान करने पर सुरूप की प्राप्ति होती है और समस्त भय से मुक्त होकर वह शास्त्र मर्मज्ञ होता है । मघा नक्षत्र में तिल पूर्ण वर्धमान (घड़े) का दान करने पर मनुष्य पशु, पुत्र तथा धन की प्राप्ति करता है । पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में वडवा (घोड़ी) का दान ब्राह्मण श्रेष्ठ को अर्पित करने पर देवों से सुसेवित पुण्य लोक की प्राप्ति होती है । उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में सुवर्ण-कमल का दान करने पर वह समस्त बाधारहित होकर सूर्यलोक की प्राप्ति करता है ।

हस्त नक्षत्र में यथाशक्ति सुवर्ण निर्मित हाथी की प्रतिमा दान करने पर वह उत्तम कारण (गजराज) पर सुशोभित होकर इन्द्र लोक का प्रस्थान करता है । चित्रा नक्षत्र में वृषभ (बैल) का दान करने वाला अप्सराओं के उस परमोत्तम एवं पुण्यप्रद नन्दनवन में यथेच्छ विचरण करता है । स्वामी मैं अपने अभीष्ट धन का दान करने वाला इस लोक में महान् यशकी प्राप्ति होती है और अन्त में शुभ-परलोक की प्राप्ति होती है । महाराज ! विशाखा नक्षत्र में शवट (गाड़ी या रथ) का, जो धुरंधर बैलों से भूपित, सामग्री समेत धान्य और वस्त्रों से वृत हो, दान करने वाला मनुष्य पितृलोक में अनन्त काल की सुख प्राप्ति करता है तथा उसे रौरव आदि नरक दुर्ग की यात्रा नहीं करनी पड़ती है । अनुराधा नक्षत्रमें यथाशक्ति कम्बल और ओढ़ने तथा पहिननेवाले उत्तरीय वस्त्र आदि ब्राह्मण को दान देने से दिव्य सौ वर्ष से भी अधिक समयतक स्वर्ग में देवताओं के समीप निवास करने का अवसर प्राप्त होता है ।

ज्येष्ठा नक्षत्र में ब्राह्मणों को उत्तम कम्बल अर्पित करने पर इष्टगति की प्राप्ति होती है । ज्येष्ठा नक्षत्र में मूल समेत कालशाक (करेमू) तथा मूली आदि का दान ब्राह्मणों को अर्पित करने पर स्वर्ग में सैकड़ों वर्षों तक देवों समेत सुखानुभव पूर्वक श्रेष्ठता और अभीष्ट गति की प्राप्ति होती है । मूल नक्षत्र में कन्द, मूल, फल आदि ब्राह्मणों को अर्पित करने पर वह पितरों की तृप्ति संतुष्ट हो जाते हैं तथा उसे उत्तम गति प्राप्त होती है । पूर्वाषाढ़ नक्षत्र में दधिपूर्ण पात्र किसी कुलीन एवं उत्तम जीविका वाले के मर्मज्ञ ब्राह्मण को अर्पित करने पर वह मनुष्य उत्तम कुल में जन्म ग्रहण कर बहुभोगी होता है और पुत्र-पौत्र समेत पशु एवं धन पूर्ण होता है । उत्तराषाढ नक्षत्र में घृत मिश्रित अन्न का दान करने वाला समस्त कामनाएँ सफल करता है । अभिजित नक्षत्र में घृत-मधु समेत दुग्ध मनीषियों को अर्पित करने पर वह पुण्यात्मा स्वर्ग में निवास करता है ।

श्रवण नक्षत्र में श्रेष्ठ पुस्तक का दान करने वाला यथेच्छ मान द्वारा समस्त लोकों की प्राप्ति करता हैं इससे संशय नहीं । घनिष्ठा नक्षत्र में चार बैल, गौ ब्राह्मणों को अर्पित करने पर सभी स्थान वह सुसम्मानित होता है । शतभिषा नक्षत्र में अगरु समेत चन्दन का दान करने वाला अप्सराओं के लोक में उत्तम गंध की प्राप्ति करता है । पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में राजमाष (उरद) का दान करने वाला समस्त भक्ष्य समेत स्वर्ग सुख प्राप्त करता है । उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में रत्नभूषित वस्त्र का दान करने वाला समस्त पितरों को तृप्त करते हुए स्वर्ग में अनन्त सुख की प्राप्ति करता है ।

रेवती नक्षत्र में कांसे की दोहनीयुक्त धेनु का दान करने वाला मनुष्य अपनी समस्त कामनाओं को सफल करता है । अश्विनी नक्षत्र में घोड़े जुते हुए रथ का दान करने वाला हाथी घोड़े और रथ उस उत्तम कुल में उत्पन्न होकर तेजस्वी होता है । उसी प्रकार भरणी नक्षत्र में ब्राह्मणों को तिलधेनु प्रदान करने पर मनुष्य को प्रभूत गौओं की प्राप्तिपूर्वक यश की प्राप्ति होती है ।

इस दक्षिणादान के उद्देश्य से नक्षत्र योग की व्याख्या मैं तुम्हें सुना दिया, जो नारद ने देवकी से कहा था । वह समस्त पापों के शमन पूर्वक सम्पूर्ण उपद्रवों का विनाश करता है । राजेन्द्र! इस दान में काल नियम और नक्षत्रों का क्रम कारण नहीं है वित्त और श्रद्धा कारण है । पार्थ ! इस प्रकार उत्तम वृत्ति द्वारा उपार्जित धन के रहते इस दान को, जो वेदों को भलीभाँति देख कर ब्रह्म पुत्र भगवान् नारद ने बताया है । सुसम्पन्न करने वाला पुरुष इस लोक में कौन सुकृत नहीं सम्पन्न किया । अर्थात् उसने सभी सुकृत सम्पन्न कर लिया है ।
(अध्याय १९२)

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