भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय २२
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय २२
अवियोग तृतीया व्रत

राजा युधिष्ठिरने कहा — भगवन ! जिस व्रत के करने से पत्नी पति से वियुक्त न हो और अन्त में शिवलोक में निवास करे तथा जन्मान्तर में भी विधवा न हो ऐसे व्रत का आप वर्णन करें ।

भगवान श्रीकृष्ण बोले — महाराज ! इसी विषय को भगवती पार्वतीजी ने भगवान शिव से और अरुन्धती ने महर्षि वसिष्ठजी ने पूछा था । उन लोगों ने जो कहा, वही आपको सुनाता हूँ ।om, ॐमार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को पवित्र चरित्रवाली स्त्री रात्रि में पायस भक्षण कर शिव और पार्वती को दण्डवत प्रणाम करे । तृतीया तिथि में प्रातः गूलर की दातौन से दन्तधावन कर स्नान करे । शालि चावल के चूर्ण से शिव और पार्वती की प्रतिमा बनाये । उन्हें एक उत्तम पात्र में स्थापित कर विधिपूर्वक उनका पूजन करे । रात्रि में जागरण कर शिव-पार्वती का कीर्तन करती हुई भूमि पर शयन करे । चतुर्थी को प्रातः उठकर दक्षिणा के साथ उस प्रतिमा को आचार्य को समर्पित कर शिवभक्त ब्राह्मणों को उत्तम भोजन कराकर संतुष्ट करे । ब्राह्मण दम्पति की भी यथाशक्ति पूजा करे । तत्पश्चात् पञ्चगव्य से प्राशन करे । मार्गशीर्ष व पौष माह में प्राशन के लिये पञ्चगव्य से उत्तम अन्य कोई पदार्थ नहीं है ।

इस प्रकार प्रतिमास व्रत एवं पूजन करना चाहिये । बारह महीनों में क्रमशः शिव-पार्वती की इन नामों से पूजा करनी चाहिये – मार्गशीर्ष में शिव-पार्वती के नाम से, पौष में गिरीश और पार्वती नाम से, माघ में भव और भवानी नाम से, फाल्गुन में महादेव और उमा नाम से, चैत्र में शंकर और ललिता नाम से, वैशाख में स्थाणु और लोलनेत्रा नाम से, ज्येष्ठ में वीरेश्वर और एकविरा नाम से, आषाढ़ में त्रिलोचन पशुपति और शक्ति नाम से, श्रावण में श्रीकण्ठ और सुता नाम से, भाद्रपद में भीम और कालरात्रि नाम से, आश्विन में शिव और दुर्गा नाम से तथा कार्तिक में ईशान और शिवा नाम से पूजा करनी चाहिये ।
बारह महीनों में भगवान् शिव एवं पार्वती की प्रसन्नता के लिये क्रमशः – नील कमल, कनेर, बिल्वपत्र, पलास, कुब्ज, मल्लिका, पाढर, श्वेत कमल, कदम्ब, तगर, द्रोण तथा मालती – इन पुष्पों से पूजा करनी चाहिये । इस प्रकार मार्गशीर्ष से व्रत प्रारम्भ कर कार्तिक में व्रत का उद्यापन करना चाहिये । उद्यापन में सुवर्ण, कमल, दो वस्त्र, ध्वजा, दीपक और विविध नैवेद्य शिव को अर्पित कर आरती करनी चाहिये और बारह ब्राह्मण युगल का यथाशक्ति पूजनकर सुवर्णमय शिव-पार्वती की मूर्ति बनवाकर उन्हें ताम्रपात्र में स्थापित कर उसी पात्र में चौंसठ मोती, चौंसठ मूँगा, चौंसठ पुखराज रखकर उस पात्र को वस्त्र से ढककर आचार्य को समर्पित करना चाहिये ।

अडतालीस जलपूर्ण कलश, छाता, जूता और सुवर्ण ब्राह्मणों को दान मे देना चाहिये । दीन, अन्ध और कृपण को अन्न बाँटना चाहिये । किसी को भी उस दिन निराश नहीं जाने देना चाहिये । किसी को भी कुछ कम करे, किन्तु वित्तशाठ्य न करे । इस व्रत के करने से रूप, सौभाग्य, धन, आयु, पुत्र और शिवलोक की प्राप्ति होती है तथा इष्टजनों से कभी वियोग नहीं होता । इस व्रत के करने पर पतिव्रता स्त्री कभी भी पति-पुत्र, सौभाग्य और धन से वियुक्त नहीं होती और शिवलोक में निवास करती है ।
(अध्याय २२)

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