January 15, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय १९७ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय १९७ गुडाचल (गुडपर्वत) दान विधि वर्णन श्रीकृष्ण बोले — मैं तुम्हें अब गुडपर्वत का उत्तम विधान बता रहा हूँ, जिससे प्रदान करने पर मनुष्य देवपूजित स्वर्ग की प्राप्ति करता है । इसके निर्माण में दस भार गुड़ का उत्तम पर्वत, पाँच भार का मध्यम, तीन भार का कनिष्क और उसके आधेभाग का अल्प पर्वत कहा गया है । पूर्व की भाँति इसमें भी आमन्त्रण, पूजा, हेमवृक्ष, देवों की अर्चा, विष्कम्भ पर्वतगण, सरोवर वृन्द और वन देवताओं की प्रतिष्ठा-पूजा के अनन्तर होम, जागरण, लोकपालों के अधिवासन, आदि सभी कार्य धान्य पर्वत की भाँति ही सुसम्पन्न कर इन मंत्रों का उच्चारण करे — यथा देवेषु विश्वात्मा प्रवरोऽयं जनार्दनः । सामवेदस्तु वेदानां महादेवस्तु योगिनाम् ॥ प्रणवः सर्वमन्त्राणां नारीणां पार्वती यथा । तथा रसानां प्रवरः सदा चेक्षुरसो मतः ॥ मम तस्मात् परां लक्ष्मीं प्रयच्छ गुडपर्वत । सुरासुराणां सर्वेषां नागयक्षर्क्षयन्त्रिणाम् ॥ विनाशश्चापि पार्वत्यास्तस्मान्मां पाहि सर्वदा । ‘जिस प्रकार देवों में विश्वात्मा भगवान् जनार्दन श्रेष्ठतर हैं । वेदों में सामवेद, योगियों में महादेव, समस्त मंत्रों में प्रणव (ॐ) और स्त्रियों में पार्वती अत्यन्त श्रेष्ठ कही गयी हैं । उसी भाँति समस्त रसों में ईख का रस सर्वश्रेष्ठ बताया गया है । गुड पर्वत ! अतः मुझे उत्तम लक्ष्मी प्रदान करने की कृपा करें । पार्वती ही समस्त सुर-असुर, नाग यक्ष, अर्ध और नियंत्रित प्राणियों आदि सभी का निवास स्थान होना कहा गया है अत: मेरी सदैव रक्षा करो । इस विधान द्वारा गुडाचल का दान करने वाला मनुष्य गन्धर्वो से पूजित होकर गौरी लोक में सुपूजित होता है । सौकल्प के अनन्तर यहाँ जन्म ग्रहण करने पर सातों द्वीपों का अधिनायक होता है । जो सदैव आरोग्य, दीर्घजीवी, एवं शत्रुओं से अजेय रहता है । राजा मरुत की सुलभा नाम की पतिपरायणा एवं महासौभाग्यवती प्रधान महिषी (रानी) थी, जो अत्यन्त रूप सौन्दर्य से सम्पन्न और युवती थी । उस महात्मा राजा की अन्य और सात रानियाँ थी, जो सदैव दासी की भाँति उस सुलभा की आज्ञा पालन करती थी । राजा सर्वदा अपनी उस प्रेयसी प्रधान रानी का मुख दर्शन किया करता था और रानी भी राजा के मुखावलोकन में सदैव निमग्न रहती थी । बहुत दिनों के पश्चात् इधर-उधर भ्रमण करते हुए ऋषि श्रेष्ठ दुर्वासा का राजा के यहाँ आगमन हुआ । अर्घ्य-पाद्य आदि सत्कार यथाविधान सुसम्पन्न कर रानी सुलमा ने उन पापरहित दुर्वासा ऋषि से प्रश्न किया । सुलभा ने कहा — भगवन् ब्रह्मन् ! किस पुण्य द्वारा यह मेरा प्रियतम राजा मेरा प्रियंकर होकर सदैव मेरा मुख दर्शन ही किया करता है । मेरी सपत्नियाँ मेरे वशीभूत रहकर सदैव प्रिय कार्य करती रहती हैं । इसके जानने का मुझे परम कौतूहल हो रहा है अतः बताने की कृपा करें । दुर्वासा बोले — सुन्दर भौंहे वाली सुभगे ! मैं तुम्हारे पूर्वजन्म का वृत्तान्त भली भाँति जानता हूँ, अतः मैं उसे बता रहा हूँ, तुम अपना आत्मवृत्तान्त सावधान होकर, सुनो ! पूर्व काल में गिरिव्रजनगर के वैश्यकीत प्रधान रानी थी । उसी भाँति तू अत्यन्त धार्मिक, सत्य बोलने वाली और पतिपरायणा थी । वत्से ! पति के साथ ब्राह्मणों की सभा में तुमने समस्त दानों के विधान सुना था । पुत्री ! विशेषकर तुमने गुडपर्वत का विधान ब्राह्मणों द्वारा सुन कर उसका दान सविधान सुसम्पन्न भी किया था तुमने चार जन्मों तक शांतिपूर्वक निःसपत्न राज्य का सुखानुभव किया है । अन्य सात जन्मों तक तुम्हें वैसा ही राज्य सुखोपभोग प्राप्त होते रहेंगे, जिसमें तुम्हारे अतुल सौभाग्य, रूप सौन्दर्य और आरोग्य की समृद्धि रहेगी । वरारोहे ! गुडपर्वत दान करने के नाते सुख समृद्धि समेत तुम्हारी कथा (चर्चा) भी होती रहेगी । तुम पुत्रवती हो, यह आशीर्वाद देकर मैं अब यहाँ से जा रहा हूँ । इसलिए उत्तम फल की आकांक्षा वाले मनुष्य को यह दान अवश्य सुसम्पन्न करना चाहिए, जिससे शाश्वती गति और रूप सौभाग्य की प्राप्ति होती है । राजन् ! अतः विशेषकर स्त्रियों लिए यह प्रशस्त है इसके प्रभाव से वे पूर्वोक्त फलों समेत कृत कृत्य हो जाती हैं । भारत ! इस प्रकार इस गुडाचल जो भगवान् कृष्ण की अभीष्ट गुफाओं से युक्त और गन्धर्व सिद्धों की रमणियों से सुसेवित रहता है, सविधान दान करने वाला मनुष्य सदैव गौरी का कृपापात्र बना रहता है । (अध्याय १९७) Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe