Print Friendly, PDF & Email

भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय १९८
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय १९८
हेमाचल दान विधि-वर्णन

श्रीकृष्ण बोले — मैं तुम्हें उस पापहारी सुवर्णाचल का विधान बता रहा हूँ जिसे सुसम्पन्न करने पर मनुष्य बह्मा का लोक प्राप्त करता है । इसके निर्माण में सहस्र पल का उत्तम, पाँच सौ का मध्यम और उसके आधे पल सुवर्ण का पर्वत मध्यम बताया गया है । किन्तु बुद्धिमान् निर्धन प्राणी भी यथाशक्ति एक पल से कुछ अधिक सुवर्ण का पर्वत निर्माण कर दान कर सकता है । om, ॐनृपसत्तम ! इसमें भी धान्य पर्वत की भाँति सभी क्रियाओं को सम्पन्न करते हुए विष्कम्भ पर्वतों के स्थापन पूजनोपरांत इस मंत्र का उच्चारण करे—

“नमस्ते ब्रह्मबीजाय ब्रह्मगर्भाय वै नमः ॥
यस्मादनन्तफलदस्तस्मात् पाहि शिलोच्चय ।
यस्मादग्नेरपत्यं त्वं यस्मात् तेजो जगत्पतेः ।।
हेमपर्वतरूपेण तस्मात् पाहि नगोत्तम ।
(उत्तरपर्व १९८ । ४-६)
(सुवर्ण) शिलोच्चय! आप ब्रह्म बीज और ब्रह्म-गर्भ रूप हैं, आप अनन्तफल प्रदान करते हैं अत: मेरी रक्षा करें । नगोत्तम ! अग्नि के सन्तान और जगत्पति के तेज होने के नाते आप इस हेमपर्वत रूप से मेरी रक्षा करें ।’

इस विधान द्वारा सुवर्णाचल प्रदान करने वाला मनुष्य साक्षात् महेश्वर के परम स्थान को प्राप्त करता है । वहाँ सौ वर्ष तक सुखानुभूति करने के उपरांत पराकाष्ठा की गति (मोक्ष) प्राप्त करता है । इसलिए इस कनकपर्वत के तुल्य कोई अब दान नहीं बताया गया है । कुरुपुंगव ! इस प्रकार इस कनक पर्वत का, जो इन्द्रमणि के सैकड़ों शिखरों से भूषित और लोकपालों समेत मुनीन्द्रों से सुसज्जित रहता है, दान सुसम्पन्न करने वाला वह शक्तिमान् पुरुष गणेशलोक में एक कल्प तक स्कन्द कुमार की भाँति सुखानुभव करता है ।
(अध्याय १९८)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.