January 16, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय २०३ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय २०३ रौप्याचलदानविधि-वर्णन श्रीकृष्ण बोले — नरोत्तम ! मैं तुम्हें वह उत्तम रौप्याचल व्रत का विधान बता रहा हूँ जिसके द्वारा मनुष्य सोमलोक प्राप्त करता है । उसके निर्माण में सहस्र पल चाँदी का पर्वत उत्तम, पाँच सौ से मध्यम, और उसके आधेभाग से रचित पर्वत अधम बताया गया है । असमर्थ प्राणी के भी बीस पल से अधिक की चाँदी द्वारा उसका निर्माण एवं दान करना चाहिए तथा उसके चौथाई भाग द्वारा विष्कम्भ पर्वतों की । नृप ! चाँदी द्वारा मन्दराद्रि पर्वत और लोकपालों की रचना करते हुए ब्रह्मा, विष्णु, और शिव आदि देवों की प्रतिमा भी चाँदी द्वारा निर्माण कराये । उसका नितम्ब (निम्न) भाग सुवर्णमय और अन्य को चाँदी मय होना चाहिए। इस भाँति पूर्वकी भाँति हवन, जागरण, आदि शेष कर्मों को सुसम्पन्न करते हुए प्रातःकाल वह चाँदी पर्वत गुरुको और विष्कम्भ पर्वतों को ऋत्विजों की सेवा में जो भूषण भूषित किये गये हों, अर्पित करे । उस समय हाथमें कुश लिए मत्सर हीन चित्त से इस मंत्र का उच्चारण करे – पितृणां वल्लभं यस्माद्धरीन्द्राणां शंकरस्य च । रजत पाहि तस्मान्नो घोरात् संसारसागरात् ॥ (उत्तरपर्व २०३ । ८) पितरों के वल्लभ एक शिव के लिए कल्याणप्रद होने के नाते रजत ! इस घोर संसारसागर से मेरी रक्षा करो !’ इस प्रकार सविधान देवों आदि की प्रतिष्ठा पूर्वक रजत शैल का दान करने वाला मनुष्य दश सहस्र गोदान का फल प्राप्त करता है । सोमलोक में गन्धर्व और अप्सराओं से सुसेवित होते हुए महाप्रलय पर्यन्त निवास करता है । नृप ! इस प्रकार रजत पर्वत का जो सुवर्ण पलों से आच्छन्न और स्वच्छ सलिल सम्पन्न सरोवरों से युक्त रहता है, दान करने वाला वह सुकृती प्राणी पापनाश पूर्वक रुज-शोक रहित होकर सोमलोक की प्राप्ति करता है । (अध्याय २०३) Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe