January 16, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय २०६ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय २०६ रोहिणीचन्द्रशयन विधि का वर्णन नारद बोले — मुझे चन्द्रमौलिक (शिव) जी के उस व्रत की भलीभाँति व्याख्या बताने की कृपा करें, जिससे दीर्घायु, नीरोग और कुल आदि की वृद्धि समेत पुरुष प्रत्येक जन्म में गुणी होता रहे । श्रीभगवान् बोले — तुम्हारा यह प्रश्न बहुत उत्तम है, लोक-परलोक में अक्षय फल प्रदान करने वाले इस रहस्य को, जिसे पुराण वेत्ताओं सुस्पष्ट कहा है, मैं तुम्हें बता रहा हूँ ! सुनो ! रोहिणीचन्द्रशयन नामक यह परमोत्तम व्रत है, जिसमें चन्द्रमा के नामों द्वारा नारायण की अर्चना सम्पन्न होती है । सोमवार के दिन पूर्णिमा अथवा पूर्णिमा के दिन रोहिणी नक्षत्र के समय राई समेत पंचगव्य से स्नान पूर्वक मनुष्य को ‘आप्यायस्वे० ‘ (यजु० १२ । ११२, ११४) मंत्र का एक सौ आठ बार जप करना चाहिए । शूद्र को भी भक्तिश्रद्धा समेत पाखण्डादि दोषरहित होकर, ‘वर प्रदान करने वाले सोम (चन्द्र) और विष्णु को बार-बार नमस्कार करता हूँ । इसका कुछ समय जप करना चाहिए । तदनन्तर अपने घर फल पुष्पो आदि द्वारा चन्द्रमा के नामोच्चारण पूर्वक भगवान् मधुसूदन की सप्रेम अर्चा करे — ‘शान्त सोम को नमस्कार है से’चरण ‘अनन्त को नमस्कार है, से घुटने और जाँघे, ‘वृकोदर को नमस्कार हैं’ से दोनो उरु, ‘अनङ्गबाहु को नमस्कार है’ से मेढ़्र, ‘कामसुखप्रदायक को नमस्कार है’ से कटि, ‘अमृतोदराय को नमस्कार है’ से उदर, ‘विधिलोचन को नमस्कार है’ से नाभि, चन्द्र को नमस्कार है’ से मुख, ‘द्विजाधिप को नमस्कार है’ से हनु (ठुड्डी), चन्द्रमा को नमस्कार है’ से कपोल, ‘कुमुद के खण्डवनप्रिय को नमस्कार है’ से ओष्ठ, वनौषधिनाथ को नमस्कार है’ से नासिका, ‘आनन्दप्रद को नमस्कार है’ से दोनो भौंह, ‘नीलकुमुदप्रिय को नमस्कार है’ से दोनों नेत्र, ‘इन्द्रीवरश्याम करने वाले को नमस्कार है’ से हृदय, ‘समस्तयज्ञवन्दित को नमस्कार है’ से दोनों कान, ‘दैत्यनिषूदन को नमस्कार है’ से ललाट, ‘समुद्रप्रिय इन्दु को नमस्कार है’ से केश, ‘सुषम्ना (नाडी) के अधिपति शशांक को नमस्कार है, से शिर, और ‘असुरारि विश्वेश्वर को नमस्कार है, से किरीट का पूजन करते हुए ‘पद्मप्रिय, रोहिणी, लक्ष्मी, और सौभाग्य, सौख्यं प्रदान करने वाली अमृततारका को नमस्कार है । कह कर सुगन्ध, धूप, नैवेद्य और पुष्पादि द्वारा चन्द्रपत्नी देवी की भूमि में अर्चा करें । प्रातःकाल स्नान करके हविष्य समेत हिरण्य भूषित जल पूर्ण कलश मानसिक पाप के विनाशार्थ किसी ब्राह्मण विद्वान् को अर्पित करे । पुनः गोमूत्र का प्राशन कर मांस तथा लवण रहित अन्न के दूध-घृत समेत अट्ठाईश ग्रास भक्षण करके अनन्तरं इतिहास का श्रवण करे । इसी प्रकार कदम्ब, नीलकमल, केतकी, जाती, कमल, शतपत्रिका, अम्लान कुब्ज, सिन्दुवार, मलिका विष्णु के लिए तथा करवीर, चम्पक चन्द्रमा को श्रावण आदि प्रति मासों के क्रमिक पूजन में अर्पित करना चाहिए । जिस मास में जो व्रत विधान बताया गया है उसमें कहे हुए पुष्पों से भगवान् का पूजन करे । इस भाँति एक वर्ष तक सविधान उपवास आदि साधन सम्पन्न सुशय्या, रोहिणी समेत चन्द्रमा की सुवर्ण प्रतिमा का जिसमें छः अंगुल की चन्द्रमा की प्रतिमा और चार अङ्गुल की रोहिणी की प्रतिमा होती है, तथा आठ मोती से निर्माण कर वस्त्राच्छन्न करे और दुग्ध पूर्ण कलश के ऊपर, जो अक्षत पूर्ण कांसे के पात्र से सुसज्जित हो, पूर्वाह्ण के समय मन्त्रोच्चारणपूर्वक गुड, चावल युक्त प्रतिष्ठित कर श्वेत वर्ण की धेनु, जिसके सुवर्ण के मुख, चाँदी की खुर बनी हो, वस्त्र, भाजन, शोभन शंख, समेत किसी गुणी ब्राह्मण दम्पती को अर्पित करे, जो भूषणों से भूषित हों । ‘द्विज रूप से यह चन्द्रदेव स्थित हैं’ उस ब्राह्मण दम्पति में ऐसी कल्पना कर उनकी प्रार्थना करे — यथा न रोहिणी कृष्ण शयनं त्यज्य गच्छति ॥ सोमरूपस्य ते तद्वन्ममाभेदोऽस्तु मूर्तिभिः । यथा त्वमेव सर्वेषां परमानंदमुक्तिदः ॥ भुत्तिर्मुक्तिस्तथा भक्तिस्त्वयि यज्ञेऽस्तु मे दृढा । (उत्तरपर्व २०६ । २४-२६) ‘कृष्ण ! जिस प्रकार रोहिणी आप के शयन को त्याग कर कभी कहीं नहीं जाती है, उसी भाँति सोमरूप आप की सभी मूर्तियों द्वारा मेरा अभेद भाव बना रहे । जिस भाँति सभी प्राणियों को तुम्हीं परमानन्द रूपी मुक्ति, और मुक्ति प्रदान करते हो, उसी भाँति तुम्हारे यज्ञ रूप में मेरी दृढ़ भक्ति सदैव बनी रहे ।’ अनघ ! इस प्रकार संसार भीति एवं मुक्ति कामना वाले प्राणी को इसके द्वारा रूप, आरोग्य, और परमोत्तम आयु की प्राप्ति होती है । मुने ! यह व्रत पितरों को भी अत्यन्त प्रिय है । इस व्रतानुष्ठान द्वारा मनुष्य को तीन सौ कल्प तक तीनों लोकों के अधिव्यापक की सुखानुभूति के उपरान्त उस चन्द्रलोक की प्राप्ति होती है, जहाँ पहुँचने पर पुनर्जन्म दुर्लभ रहता है । यदि रोहिणी-चन्द्रशयन नामक व्रत को स्त्री भी सुसम्पन्न करती है तो उसे भी वही फल प्राप्त होते हैं । इस प्रकार व्रताख्यान को, जिसमें चन्द्रमा के नामों द्वारा मधुसूदन भगवान् की अर्चा होती है, पढ़ने, सुनने अथवा उसके निमित्त मति भी प्रदान करने वाले मनुष्य को देव पूजन विष्णु लोक प्राप्त होता है । (अध्याय २०६) Please follow and like us: Related