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भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय २०८
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय २०८
अनुक्रमणिका-कथन (वृत्तान्त)

इस पर्व के प्रारम्भ में महाराज युधिष्ठिर के पास महर्षि वेदव्यास के साथ अनेक ऋषियों के आगमन, ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, नारद को वैष्णवीमाया का दर्शन, संसार के दोषों का वर्णन, पापों के भेद, शुभ और अशुभ लक्षणों का वर्णन है । शकटव्रत, तिलकव्रत, अशोक और करवीर, कोकिला, बृहत्तप, भद्रोपवास, यमद्वितीया, अशून्यशयन, कामाख्यातृतीया, मेघपाली, पचाग्निसाधन, त्रिरात्रगोष्पद, हरकाली, ललिता-तृतीया, योगाख्यातृतीया, उमामहेश्वरव्रत, रम्भा तृतीया, सौभाग्यतृतीया, आद्रनन्दकरी तृतीया तथा चैत्र, भाद्र और माघ के तृतीया व्रतों का वर्णन हुआ है ।om, ॐ फिर आनन्तर्य तृतीया, विनायक-शान्ति, सारस्वतव्रत, नागपञ्चमी, श्रीपञ्चमी, शोकप्रणाशिनीषष्ठी, फलषष्ठी, मन्दारषष्ठी, ललिताषष्ठी, कार्तिकेयषष्ठी, महत्तपसप्तमी, विभूषासप्तमी, आदित्यमण्डपविधि, त्रयोदशवर्ज्यसप्तमी, कृकवाकुप्लवङ्गसप्तमी, उभयसप्तमी, कल्याणसप्तमी, शर्करासप्तमी, कमलासप्तमी, शुभासप्तमी, स्नपनसप्तमी, व्रतसप्तमी और अचलासप्तमी, बुधाष्टमी, जन्माष्टमी, दूर्वाष्टमी, कृष्णाष्टमी, अनघाष्टमी, अर्काष्टमी व्रतों का वर्णन है ।

तदनन्तर श्रीवृक्षनवमी, ध्वजनवमी, उल्कानवमी, दशावतार, आशादशमी, रोहिणीचन्द्र, इन्द्रहरि शम्भु-ब्रह्मा-सूर्य-अवियोगव्रत, गोवत्सद्वादशी, नीराजनद्वादशी, भीष्मपचक, मल्लद्वादशी, भीमाद्वादशी, श्रवणद्वादशी, सम्प्रातिद्वादशी गोविन्दद्वादशी, अखण्डद्वादशी, तिलद्वादशी, सुकृतद्वादशी, धरणीव्रत, विशोकद्वादशी, विभूतिद्वादशी, पुष्यद्वादशी, श्रवणद्वादशी, अनङ्गद्वादशी, अङ्कपादव्रत, निम्बार्क-करवीर-माहात्म्य, यमदर्शनत्रयोदशी अनङ्गत्रयोदशी, पालीव्रत, रम्भाव्रत, आग्नेयी चतुर्दशी, अनन्तचतुर्दशी, श्रावणी, नक्तचतुर्दशी, शिवचतुर्दशी, फलत्यागचतुर्दशीव्रत तथा वैशाखकार्तिक और माघ की पूर्णिमा के माहात्म्य का वर्णन किया गया है ।

तत्पश्चात् कार्तिक में कृत्तिका के योग में कृत्तिकाव्रत, फाल्गुन पूर्णिमा में पूर्णमनोरथव्रत, अशोकपूर्णिमाव्रत, अनन्तव्रत, साम्भरायणीव्रत, नक्षत्रपुरुषव्रत शिवनक्षत्रपुरुषव्रत, कामदानव्रत, वृन्ताकविधि, आदित्यदिननक्तव्रत, संक्रान्ति के उद्यापन का विधान, भद्राव्रत, अगस्त्यार्घ्यव्रत, नवचन्द्रार्घ्य, शुक्र-बृहस्पति-अर्घ्य-प्रदानव्रत, पञ्चाशीतिव्रत, माघस्नान, नित्यस्नान, रुद्रस्नान की विधि, चन्द्र और सूर्य-ग्रहण में स्नान, भोजन-विधि, वापी, कूप तथा तडाग का उत्सर्ग, वृक्ष-पूजा, देवपूजा, दीपदान, वृषोत्सर्गविधि, फाल्गुनी उत्सव, मदनोत्सव, भूतमातोत्सव, श्रावणी में रक्षाबन्धन की विधि, चन्द्रोत्सव, दीपमालिका, होम, लक्षहोम, कोटिहोम की विधि, महाशान्ति तथा विनायक शान्ति, नक्षत्रहोम, गोदान-विधि, गुडधेनु, घृतधेनु, तिलधेनु, जलधेनु, लवणधेनु और नवनीतधेनु एवं सुवर्णधेनुदान के विधानों का निरूपण हुआ है । ये सभी देवकार्य हैं, कल्याणकामी पुरुषों को इन धर्मकार्यों को यथाशक्ति अवश्य करना चाहिये ।
(अध्याय २०८)

॥ ॐ तत्सत् भविष्यपुराणान्तर्गत उत्तरपर्व शुभं भूयात् ॥

॥ ॐ तत्सत् श्रीभविष्यमहापुराण शुभं भूयात् ॥

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