January 3, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय २४ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय २४ रम्भा-तृतीया व्रत का माहात्म्य भगवान् श्रीकृष्ण बोले — राजन ! अब मैं सभी पापों के नाशक, पुत्र एवं सौभाग्यप्रद सभी व्याधियों के उपशामक, पुण्य तथा सौख्य प्रदान करनेवाले रम्भा तृतीया व्रत का वर्णन करता हूँ । यह व्रत सपत्नियों (पति की दूसरी पत्नियाँ) से उत्पन्न क्लेश का शामक तथा ऐश्वर्य को प्रदान करनेवाला है । भगवान् शंकर ने देवी पार्वती की प्रसन्नता के लिये इस व्रत की जो विधि बतलायी थी, उसे ही मैं कहता हूँ । श्रद्धालु स्त्री मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को प्रातः उठकर दन्तधावन आदि से निवृत्त हो भक्तिपूर्वक उपवास का नियम ग्रहण करे । वह सर्वप्रथम व्रत-ग्रहण करने के लिये देवी से इस प्रकार प्रार्थना करे – “देवि संवत्सरं यावत्तृतीयायामुपोषिता । प्रतिमासं करिष्यामि पारणं चापरेऽहनि । तदविघ्नेन मे यातु प्रसादात् तव पार्वति ॥ (उत्तरपर्व २४ । ५) ‘देवि ! मैं पूरे एक वर्ष तक इस तृतीया-व्रत का आचरण और दुसरे दिन पारणा करूँगी । आप ऐसी कृपा करे, जिससे इसमें कोई विघ्न न उत्पन्न हो ।’ इस प्रकार स्त्री या पुरुष व्रत का संकल्प करे और मन में व्रत का निश्चय कर सावधानी बरतते हुए नदी, तालाब, अथवा कुशोदक का प्राशन करे । दूसरे दिन प्रातःकाल विद्वान् शिवभक्त ब्राह्मणों को भोजन कराये और दक्षिणा के रूप में सुवर्ण एवं लवण प्रदान करे । यथाशक्ति गौरीश्वर भगवान् शिव को प्रयत्नपूर्वक भोग निवेदित करे । राजन् ! पौष मास की तृतीया में इसी विधि से उपवास एवं पूजनकर रात्री में गोमूत्र का प्राशन कर प्रभातकाल में ब्राह्मणों को भोजन कराये और दक्षिणा के रूप में उन्हें अपनी शक्ति के अनुसार सोना तथा जीरक दे । इससे वाजपेय तथा अतिरात्र यज्ञों का फल प्राप्त होता है और वह कल्पपर्यन्त इन्द्रलोक में निवासकर अन्त में शिवलोक को प्राप्त करता है । माघ मास की शुक्ल तृतीया को ‘सुदेवी’ नाम से भगवती पार्वती का पूजन कर रात्रि में गोमय का प्राशन कर अकेले ही सोये । प्रातः अपनी शक्ति के अनुसार केसर तथा सोना बाह्मणों को दान में दे । इससे व्रती को चिरकाल तक विष्णु लोक में निवास करने के पश्चात् भगवान् शंकर के सायुज्य (मोक्ष) की प्राप्ति होती है । फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को ‘गौरी’ नाम से देवी पार्वती का पूजन कर रात्रि में गाय का दूध पीये । प्रातः विद्वान् शिवभक्तों तथा सुवासिनी स्त्रियों को भोजन कराकर सोने के साथ कडुहुंड देकर बिदा करे । इससे वाजपेय तथा अतिरात्र यज्ञों का फल प्राप्त होता है । चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया में भक्तिपूर्वक भगवती पार्वती का विशालाक्षी नाम से पूजन कर रात्रि में दही का प्राशन करे और प्रातः कुंकुम के साथ ब्राह्मणों को सोना प्रदान करे । विशालाक्षी प्रसाद से व्रतकत्री को महान् सौभाग्य प्राप्त होता है । वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को भगवती पार्वती का ‘श्रीमुखी’ नाम से पूजन करे । रात्रि में घृत का प्राशन करे और एकाकी ही शयन करे । प्रातः शिवभक्त ब्राह्मणों को यथारुचि भोजन कराकर ताम्बुल तथा लवण प्रदान कर प्रणामपूर्वक विदा करे । इस विधि से पूजन करने पर सुंदर पुत्रों की प्राप्ति होती है । आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को गौरी-पार्वती की ‘माधवी’ नाम से पूजा करे । त्रिलोक का प्राशन करे । प्रातःकाल विप्रों को भोजन कराये और दक्षिणा में गुड़ तथा सोना दे । इससे उसे शुभ लोक की प्राप्ति होती है । (ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को भगवती पार्वती का ‘नारायणी’ नाम से श्वेत पुष्पों से पूजन करे । रात्रि में लवण का प्राशन करे । एकाकी शयन करे । प्रातःकाल शिवभक्त ब्राह्मण और सौभाग्यवती स्त्रियों को यथाशक्ति भोजन कराये । ब्राह्मण को ताम्बूल दे और सुवर्ण की दक्षिणा देकर प्रणाम-क्षमाप्रार्थना करे । इससे व्रतकर्ता को शिवलोक प्राप्त होता है।) श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को देवी पार्वती का ‘श्रीदेवी’ नाम से पूजनकर गाय के सींग का स्पर्श किया जल पीये । शिवभक्तों को भोजन कराकर सोना और फल दक्षिणा के रूप में दे । इससे व्रती सर्वलोकेश्वर होकर सभी कामनाओं को प्राप्त करता है । भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को भगवती पार्वती का ‘हरताली’ नाम से पूजन करे । महिषी का दूध पीये । इससे अतुल सौभाग्य प्राप्त होता है और इस लोक में वह सुख भोगकर अन्त में शिवलोक को प्राप्त करता है । आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को देवी पार्वती का ‘गिरीपुत्री’ नाम से पूजनकर तण्डुल -मिश्रित जल का प्राशन करे और दूसरे दिन प्रातः ब्राह्मणों का पूजन कर चन्दनयुक्त सुवर्ण दक्षिणा में दे । इससे सभी यज्ञों का फल प्राप्त होता हैं और वह गौरीलोक में प्रशंसित होता है । कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को देवी पार्वती का ‘पद्मोद्भवा’ नाम से पूजन करके पञ्चगव्य का प्राशन करे तथा रात्रि में जागरण करे । प्रभातकाल में सपत्नीक सदाचारी ब्राह्मणों को भोजन कराये और माल्य, वस्त्र तथा अलंकारों से उन शिवभक्त ब्राह्मणों का पूजन करे । कुमारियों को भी भोजन कराये । इस प्रकार वर्षभर व्रत करने के पश्चात् उद्यापन करना चाहिये । यथाशक्ति सोने की उमा-महेश्वर की प्रतिमा बनाकर उन्हें एक सुन्दर, अलंकृत वितानयुक्त मण्डप में स्थापित कर सुगन्धित द्रव्य, पत्र, पुष्प, फल, घृत-पाक-नैवेद्य, दीपमाला, शर्करा, नारियल, दाडिम, बीजपूरक, जीरक, लवण, कुसुंभ, कुंकुम तथा मोदकयुक्त ताम्रपात्र से देवदेवेश की विधिवत पूजाकर अन्त में क्षमा-प्रार्थना एवं शंख आदि वाद्यों की ध्वनि करनी चाहिये । भगवान् श्रीकृष्ण बोले — राजन ! इस विधिसे देवी पार्वती का पूजन करनेपर जो फल प्राप्त होता हैं, उसका फल वर्णन करने में मैं भी समर्थ नहीं हूँ । वह पूर्वोक्त सभी फलों को प्राप्त करता है, सभी देवताओं के द्वारा पूजित होता हैं तथा सौ करोड़ कल्पोंतक सभी कामनाओं का उपभोग करता हुआ अंत में शिव-सायुज्य प्राप्त करता हैं, इसमें कोई संदेह नहीं । यह व्रत पहले रम्भा के द्वारा किया गया था, इसलिये यह रम्भाव्रत कहलाता है । (अध्याय २४) Please follow and like us: Related