January 3, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय २७ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय २७ आर्द्रानन्दकरी तृतीया-व्रत भगवान् श्रीकृष्ण बोले — महाराज ! अब मैं तीनों लोकों में प्रसिद्ध, आनन्द प्रदान करनेवाले, पापों का नाश करनेवाले आर्द्रानन्दकरी तृतीयाव्रत का वर्णन करता हूँ । जब किसी भी महीने में शुक्ल पक्ष की तृतीया को पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़ अथवा रोहिणी या मृगशिरा नक्षत्र हो तो उस दिन यह व्रत करना चाहिये । उस दिन कुश और गन्धोदक से स्नान कर श्वेत चन्दन, श्वेत माला और श्वेत वस्त्र धारणकर उत्तम सिंहासन पर शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित करे । सुगन्धित श्वेत पुष्प, चन्दन आदि से उनकी पूजा करे । ‘वासुदेव्यै नमः -शंकराय नमः’ से गौरी-शंकर के दोनों चरणों की, ‘शोकविनाशिन्यै नमः-आनन्दाय नमः’ से पिण्डलियों की, ‘रम्भायै नमः, शिवाय नमः’ से ऊरु की, ‘आदित्यै नमः-शूलपाणये नम:’ से कटि की, ‘माधव्यै नमः-भवाय नमः’ से नाभि की, ‘आनन्दकारिण्यै नमः-इन्द्रधारिणे नमः’ से दोनों स्तनों की, ‘उत्कण्ठिन्यै नमः-नीलकण्ठाय नमः’ से कण्ठ की, ‘उत्पलधारिण्यै नमः-रुद्राय नमः’ से दोनों हाथों की, ‘परिरम्भिण्यै नमः-नृत्यशीलाय नमः’ से दोनों भुजाओं की, ‘विलासिन्यै नमः-वृषेशाय नमः’ से मुख की, ‘सस्मरशीलायै नमः-विश्ववक्त्राय नमः’ से मुसकान की, ‘मदनवासिन्यै नमः-विश्वधाम्ने नमः’ से नेत्रों की, ‘रतिप्रियायै नमः, ताण्डवेशाय नमः’ से भ्रुवों की, ‘इन्द्राण्यै नमः-हव्यवाहाय नमः’ से ललाट की तथा ‘स्वाहायै नमः-पञ्चशराय नमः’ कहकर मुकुट की पूजा करे । तदनन्तर नीचे लिखे मन्त्र से पार्वती-परमेश्वर की प्रार्थना करे — “विश्वकायौ विश्वमुखौ विश्वपादकरौ शिवौ । प्रसन्नवदनौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ ॥” (उत्तरपर्व २७ । १३) ‘विश्व जिनका शरीर है, जो विश्वके मुख, पाद और हस्तस्वरूप तथा मङ्गलकारक हैं, जिनके मुखपर प्रसन्नता झलकती रहती है, उन पार्वती और परमेश्वर की मैं वन्दना करता हूँ ।’ इस प्रकार पूजनकर मूर्तियों के आगे अनेक प्रकार के कमल, शङ्ख, स्वस्तिक, चक्र आदि का चित्रण करे । गोमूत्र, गोमय, दूध, दही, घी, कुशोदक, गोशृंगोदक, बिल्वपत्र, घडे का जल, खस का जल, यवचूर्ण का जल तथा तिलोदक का क्रमशः मार्गशीर्ष आदि महीनों में प्राशन करे, अनन्तर शयन करे । यह प्राशन प्रत्येक पक्ष की द्वितीया को करना चाहिये । भगवान् उमा-महेश्वर की पूजा के लिये सर्वत्र श्वेत पुष्प को श्रेष्ठ माना गया है । दान के समय यह मन्त्र पढ़ना चाहिये — “गौरी में प्रीयतां नित्यमघनाशाय मङ्गला । सौभाग्यायास्तु ललिता भवानी सर्वसिद्धये ॥” (उत्तरपर्व २७ । १९) ‘गौरी नित्य मुझपर प्रसन्न रहें, मङ्गला मेरे पापों का विनाश करें । ललिता मुझे सौभाग्य प्रदान करें और भवानी मुझे सब सिद्धियाँ प्रदान करें ।’ वर्ष के अन्त में लवण तथा गुड़ से परिपूर्ण घट, नेत्रपट्ट, चन्दन, दो श्वेत वस्त्र, ईख और विभिन्न फलों के साथ सुवर्ण की शिव-पार्वती की प्रतिमा सपत्नीक ब्राह्मण को दे और ‘गौरी मे प्रीयताम्’ ऐसा कहे । शय्यादान भी करे । इस आनन्दकरी तृतीयाका व्रत करने से पुरुष शिवलोक में निवास करता है और इस लोक में भी धन, आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य और सुख को प्राप्त करता है । इस व्रत को करनेवालों को कभी शोक नहीं होता । दोनों पक्षों में विधिवत् पूजनसहित इस व्रत को करना चाहिये । ऐसा करने से रुद्राणी के लोक की प्राप्ति होती हैं । जो व्यक्ति इस विधान को सुनता और सुनाता है, वह गन्धर्वों से पूजित होता हुआ इन्द्रलोक निवास करता है । जो कोई स्त्री इस व्रत को करती है, वह संसार के सभी सुखों को भोगकर अन्त में अपने पति के साथ गौरी के लोक में निवास करती है । (अध्याय २७) Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe