भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय २८
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय २८
चैत्र, भाद्रपद और माघ शुक्ल तृतीया — व्रत का विधान और फल

भगवान् श्रीकृष्ण बोले — महाराज ! अब आप चैत्र, भाद्रपद तथा माघ के शुक्ल तृतीया व्रतों के विषय में सुने । इन व्रतों से रूप, सौभाग्य तथा उत्तम पुत्र की प्राप्ति होती है । इस विषय में आप एक वृतान्त सुनें —
भगवती पार्वती की जया और विजया नाम की दो सखियाँ थीं । किसी समय मुनि-कन्याओं ने उन दोनों से पूछा कि आप दोनों तो भगवती पार्वती के साथ सदा निवास करती हैं । om, ॐआप सब यह बताये कि किस दिन, किन उपचारों और मन्त्रों से पूजा करने से भगवती पार्वती प्रसन्न होती हैं ।इस पर जया बोली — मैं सभी कामनाओं को सिद्ध करनेवाले व्रत का वर्णन करती हूँ । चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को प्रातःकाल उठकर दन्तधावन आदि क्रियाओं से निवृत्त होकर इस व्रत के नियम को ग्रहण करे । कुंकुम, सिन्दूर, रक्त, वस्त्र, ताम्बुल आदि सौभाग्य के चिह्नों को धारणकर भक्तिपूर्वक देवी की पूजा करे । प्रथम अतिशय सुन्दर एक मण्डप बनवाकर उसके मध्य में एक मनोहर मणिजटित वेदी की रचना करे । एक हस्त प्रमाण का कुण्ड बनाये, तदनन्तर स्नान कर उत्तम वस्त्र धारणकर देवताओं और पितरों की पूजा कर देवी के मण्डप में जाय और पार्वती, ललिता, गौरी, गान्धारी, शांकरी, शिवा, उमा और सती — इन आठ नामों से भगवती की पूजा करे । कुंकुम, कपूर, अगरु, चन्दन आदि का लेपन करे । अनेक प्रकार के सुन्गधित पुष्प चढ़ाकर धूप, दीप आदि उपचार अर्पण करे । लड्डू, अनेक प्रकार के अपूप तथा विभिन्न प्रकार के घृतपक्व नैवेद्य, जीरक, कुंकुम, नमक, ईख और ईख का रस, हल्दी, नारिकेल, आमलक, अनार, कुष्माण्ड, कर्कटी, नारंगी, कटहल, बिजौरा, नींबू आदि ऋतुफल भगवती को निवेदित करे । गृहस्थी के उपकरण — ओखली, सिल, सूप, टोकरी आदि तथा शरीर को अलंकृत करने की सामग्रियाँ भी निवेदित करे । शंख, सूर्य, मृदंग आदि के शब्द और उत्तम गीतों के साथ महोत्सव करे । इस प्रकार भक्तिपूर्वक अपनी शक्ति के अनुसार पार्वती जी की पूजा करके कुमारी कन्याएँ सौभाग्य की अभिलाषा से प्रदोष के समय नये कलशों में जल लाकर उससे स्नान करें । पुनः पूर्वोक्त विधि से भगवती की पूजा करे । प्रत्येक प्रहर में पूजा और घृतसमन्वित तिलों से हवन करे । भगवती के सम्मुख पद्मासन लगाकर रात्रि-जागरण करे । नृत्य से भगवान् शंकर, गीत से भगवती पार्वती और भक्ति से सभी देवता प्रसन्न होते हैं । ताम्बुल, कुंकम और उत्तम-उत्तम पुष्प सुवासिनी स्त्री को अर्पित करे ।

प्रातः स्नान के अनन्तर पार्वतीजी की पूजाकर गुड़, लवण, कुंकुम, कपूर, अगरु, चन्दन आदि द्रव्यों से यथाशक्ति तुलादान करे और देवी से क्षमा प्रार्थना करे । ब्राह्मणों तथा सुवासिनी स्त्रियों को भोजन कराये । नैवेद्य का वितरण करे । इससे उसका कर्म सफल हो जाता हैं ।

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को भी चैत्र-तृतीया की भाँती व्रत एवं पूजन करना चाहिये । इसमें सप्तधान्यों से एक सूप में उमाकी मूर्ति बनाकर पूजा करनी चाहिये तथा गोमूत्र-प्राशन करना चाहिये । यह व्रत उत्तम सौन्दर्य-प्रदायक है ।

इसी प्रकार माघ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को चैत्र-तृतीया की भाँती पूर्वोक्त क्रियाओं को करने के पश्चात् कुन्द-पुष्पों से तुलादान करे तथा चतुर्थी को गणेशजी का भी पूजन करे ।

इस विधि से जो स्त्री व्रत और तुलादान करती है, वह अपने पति के साथ इन्द्रलोक में निवास कर ब्रह्मलोक में और वहाँ से शिवलोक में जाती है । इस लोक में भी वह रूप, सौभाग्य, सन्तान, धन आदि प्राप्त करती हैं । उसके वंश में दुर्भगा कन्या और दुर्विनीत पुत्र कभी भी उत्पन्न नहीं होता । घर में दारिद्र्य, रोग, शोक, आदि नहीं होते । जो कन्या इस व्रत को करती है तथा ब्राह्मण की पूजा करती है, वह अभीष्ट वर प्राप्त कर संसार का सुख भोगती है ।
(अध्याय २८)

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