January 3, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय ३२ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय ३२ विनायक-स्नपन-चतुर्थी व्रत का वर्णन युधिष्ठिर ने कहा — माधव ! मुझे यह जानने की इच्छा है कि उत्तम मनुष्यों द्वारा भी आरम्भ किये गये कर्म सफल न होकर अधूरे रह जाते हैं, इसका क्या कारण है, बताने की कृपा कीजिये । श्रीकृष्ण बोले — लोक में अर्थसिद्धि के निमित्त ब्रह्मा और शिव जी ने गणाधिपति विनायक की स्थापना की है । उन्होंने यह बताया है कि उनके पूजन करने पर जिन लक्षणों का प्रादुर्भाव स्वप्न में होता है, उन्हें बता रहा हूँ, जो शुभाशुभ के सूचक हैं, सुनो ! स्वप्न में अगाध जल का अवगाहन, काषाय वस्त्र धारी मुण्डी (संन्यासी) का दर्शन, राक्षसारोहण, शुद्र, गधे और ऊँटो के साथ एकत्र स्थिति, तथा चलते हुए अपने को दूसरे द्वारा अन्यत्र प्राप्त होना आदि देखने वाले पुरुष के आरम्भ निष्फल होते हैं तथा म्लान मुख होकर उसे कष्ट का अनुभव करना पड़ता है । पातकी और छायाहीन पुरुष म्लान मुख होता है । हाथी के शिशु, महिष अथवा गधे पर बैठना, राक्षस रक्त के स्पर्श, श्मशान समीप यात्रा, तैल से आर्द्र होना और कनेर पुष्प से विभूषित होने के स्वप्न देखने वाले राजपुत्र को राज्य की प्राप्ति कुमारी को पति की प्रप्ति, सधवा को पुत्र, वेदाध्यायी को आचार्यत्व, शिष्य को अध्ययन, वैश्य को लाभ, कृषक को कृषि की प्राप्ति नहीं होती है । उसको किसी पुण्य दिन में दुर्निमित्त के शान्त्यर्थ सविधान स्नान करना चाहिए । राजन् ! गौर सर्षप (राई) अलसी की खली के स्पर्श समेत वस्त्र के आच्छन्न होकर समस्त औषध एवं सम्पूर्ण गंध के लेपन सिर में लगाकर शुक्ल पक्ष की चतुर्थी में बृहस्पति के दिन पुष्य नक्षत्र संयुक्त होने पर उनके सामने भद्रासन पर बैठकर ब्राह्मणों द्वारा स्वस्ति वाचन कराये । जो ऋग, यजु, साम तथा अथर्व वेद के मर्मज्ञ विद्वान् हो, पश्चात् शिव, पार्वती और मंगल, कृष्ण जनक वासुदेव, बृहस्पति, क्लेदपुत्र, कोण, लक्ष्मी, खड्गसमेत राहु की पूजा करने के उपरांत अश्व, गज के स्थान, वल्मीक (विभौर) तथा संगम की मृत्तिका, गोरोचन, रत्न एवं गुग्गुल — चार कलशों के जल में डालकर, जो एक वर्ण के सौन्दर्य पूर्ण बनाये गये हों रक्त वृषभ के चर्मासन पर, जो भद्रतापूर्ण सुरचित हो, उन्हें स्थापित कर स्नान कराते हुए इन मंत्रों के उच्चारण करे — “ॐ भगं ते वरुणो राजा भगं सूर्यो बृहस्पतिः । भगमिन्द्रश्च वायुश्च भगं सप्तर्षयो ददुः ॥ यत्ते केशेषु दौर्भाग्यं सीमन्ते यच्च मूर्द्धनि । ललाटे कर्णयोरक्ष्णोरिपस्तद्घ्नंतु सर्वदा ॥” (उत्तरपर्व ३२ । १८-१९) ‘ऋषियों ने जिसके सैकडों धारों को सहस्राक्ष बना अत्यन्त पावन कर दिया है, उसी शतधारा वाले जल के द्वारा तुम्हारा अभिषेक कर रहा हूँ, अत्यन्त पवित्र भाजन होकर मुझे पावन करें । ओंकार समेत राजा वरुण, सूर्य बृहस्पति, इन्द्र, वायु, एवं सप्तर्षियों ने तुम्हें प्रदान किया है, इसलिए तुम्हारे केश, सीमन्त (के वृन्द के सौन्दर्य) सिर, भाल, कान, और आँखों में स्थित दुर्भाग्य को यह जल शमन करे ।’ स्नान के उपरांत गूलर के स्रुवा द्वारा दाहिने हाथ से राई के तेल की आहुति छोड़ते समय मित, सम्मित, शाल कटंकट, कूष्माण्ड, और राजपुत्र के अंत में स्वाहा पद लगाकर (मिताय स्वाहा) उच्चारण करता रहे । अनन्तर चौराहे पर पहुँच कर सूप में चारों ओर कुश बिछाकर नमस्कारपूर्वक नाम मंत्रोच्चारण करते हुए पृथक्-पृथक् कच्चे-पक्के चावल, मांस, कच्चे-पक्के मत्स्य पुष्प समेत सुगन्धित तीनों भाँति के मद्य, मूलक, पूरी, पूआ, अंडेरक की माला । दधि, अन्न, खीर, मोदक समेत गुड़ की पीठी की बलि प्रदान करने के उपरांत विनायक की जननी भगवती अम्बिका के समीप जाकर दूर्वा, राई, समेत, पुष्पों के अर्घ्य प्रदान कर साञ्जलि क्षमा प्रार्थना करे — “रूपं देहि जयं देहि भगं भवति देहि मे । पुत्रान्देहि धनं देहि सर्वान्कामांश्च देहि मे ॥ प्रबलं कुरु मे देवि बलविख्यातिसम्भवम् । (उत्तरपर्व ३२ । २६-२७) ‘भवति ! मुझे रूप-सौन्दर्य, जय, तेज, पुत्र और धन के प्रदान समेत समस्त कामनाओं की सफलता प्रदान करें और देवि ! मुझे प्रख्यात बलवान् बनाये ।’ पश्चात् श्वेत वस्त्र धारण एवं श्वेत गंधानुलेपन पूर्वक ब्राह्मण भोजन हो जाने पर गुरू के लिए युग्म वस्त्र अर्पित करे । इस प्रकार विनायक के पूजनोपरांत ग्रहों की समर्चना करने पर आरम्भं कर्मों के फल तथा उत्तम श्री की प्राप्ति होती है। आदित्य की नित्यपूजा और महागणपति के नित्यतिलक करने से निश्चित सिद्धि प्राप्त होती है। इस प्रकार विनय-विनम्र पुरुषों के लिए विघ्नविनाशकारी एवं प्रशस्त विनायक देव की पूजा बता दी गयी है, जिसे सविधान सुसम्मपन्न करने पर अभीष्ट सिद्धि अवश्य प्राप्त होती है इसमें संदेह नहीं । (अध्याय ३२) Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe