भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय ३३
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय ३३
विनायकचतुर्थी व्रत का वर्णन

श्रीकृष्ण बोले — राजन् ! मैं तुम्हें विघ्नविनाशक एक व्रत भी बता रहा हूँ, जिसे सविधान सुसम्पन्न करने पर कभी विघ्न नहीं होता है ।

राजेन्द्र ! फाल्गुन मास की शुक्ल चतुर्थी के दिन इस व्रत नियम के पालनपूर्वक नक्त भोजन कर तिल का पारण करे । उसी (तिल) का हवन एवं ब्राह्मण भोजन भी कराये । शूर, वीर, गजानन, लम्बोदर, एकदंत, आदि के उच्चारण करते हुए सप्रेम उनकी पूजा करके विघ्नविनाशार्थ व्रती को हवन करना चाहिए । चार मास तक इस भाँति व्रत एवं पूजन करने के अनन्तर पाँचवें मास के सुवर्ण के एक गजदाँत बनाकर ब्राह्मणों को भक्तिपूर्वक अर्पित करना चाहिए ।om, ॐ नृप ! चार मास तक पायस और ताम्रपात्र के प्रधान द्वारा उनकी पूजा करके पाँचवे मास में तिल के साथ गणेश की प्रतिष्ठा-पूजन करना चाहिए। निर्धन व्यक्ति को अन्य पात्र अथवा मृत्तिका पात्र में पूजन करना बताया गया है । इस प्रकार हेरम्ब (गणेश) के निमित्त अपनी शक्ति के अनुसार सुवर्ण अथवा चाँदी की प्रतिमा की सविधान अर्चना कर ब्राह्मण को अर्पित करे इस भाँति इस व्रत को सुसम्पन्न करने पर वह समस्त विघ्नों से मुक्त हो जाता है ।

पहले समय में अश्वमेध यज्ञ के अनुष्ठान में विघ्न हो जाने पर राजा सगर ने इसी व्रतानुष्ठान द्वारा इस अश्व की पुनः प्राप्ति की थी । उसी भाँति रुद्र देव के त्रिपुरासुर के वध के समय पहले इस व्रत को सुसम्पन्न किया था, जिससे त्रिपुरासुर का निधन हुआ था । समुद्र प्रवेश के समय मैंने भी इस व्रत को सुसम्पन्न किया था, जिससे पर्वत एवं वृक्षों समेत इस पृथ्वी का पुनरुद्धार कर सका । अन्य राजाओं और तपस्वियों ने अपने अभीष्ट सिद्ध्यर्थ इसे सुसम्पन्न किया है । परंतप ! इस व्रत के अनुष्ठान मात्र से प्राणी समस्त विघ्नों से मुक्त हो जाता है और देहावसान होने पर वराह के कथनानुसार वह रुद्रपुर की प्राप्ति करता है । इस प्रकार जिसने विश्वेश्वर की जो सप्तमी के चन्द्र-खण्ड की कांति से विभूषित होने की भाँति शुभ्र गजदाँत से सुशोभित है, चतुर्थी के दिन नक्त भोजन और तिल पारणपूर्वक सविधान अर्चना की है, उसके घर धर्म, अर्थ, एवं काम की सुखसिद्धि सदैव होती रहती है तथा किसी प्रकार का कभी भी विघ्र नहीं होता है ।
(अध्याय ३३)

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