January 4, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय ३५ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय ३५ सरस्वती व्रत (सारस्वत-व्रत) का विधान और फल राजा युधिष्ठिर ने पूछा — भगवन् ! किस व्रत के करने से वाणी मधुर होती है ? प्राणी को सौभाग्य प्राप्त होता है ? विद्या में अतिकौशल प्राप्त होता है ?, पति -पत्नी का और बन्धुजनों का कभी वियोग नहीं होता तथा दीर्घ आयुष्य प्राप्त होता है ? उसे आप बतलायें । भगवान श्रीकृष्ण बोले — राजन ! आपने बहुत उत्तम बात पूछी है । इन फलों को देने वाले सारस्वत-व्रत का विधान आप सुने । इस व्रत के कीर्तनमात्र से भी भगवती सरस्वती प्रसन्न हो जाती है । इस व्रत को वत्सरारम्भ में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी को आदित्यवार से प्रारम्भ करना चाहिये । इस दिन भक्तिपूर्वक ब्राह्मण के द्वारा स्वस्तिवाचन कराकर गन्ध, श्वेत माला, शुक्ल, अक्षत और श्वेत वस्रादि उपचारों से, वीणा, अक्षमाला, कमण्डलु तथा पुस्तक धारण की हुई एवं सभी अलंकारों से अलंकृत भगवती गायत्री का पूजन करे । फिर हाथ जोडकर इन मन्त्रो से प्रार्थना करे – “यथा तु देवि भगवान् ब्रह्मा लोकपितामहः । त्वां परित्यज्य नो तिष्ठेत् तथा भव वरप्रदा ॥ वेदशास्त्राणि सर्वाणि नृत्यगीतादिकं च यत् । वाहितं यत् त्वया देवि तथा मे सन्तु सिद्धयः ॥ लक्ष्मीर्मेधा वरा रिष्टिर्गौरी तुष्टिः प्रभा मतिः । एताभिः पाहि तनुभिरष्टभिर्माँ सरस्वति ॥” (उत्तरपर्व ३५ । ७-९) ‘देवि ! जिस प्रकार लोकपितामह ब्रह्मा आपका परित्यागकर कभी अलग नहीं रहते, उसी प्रकार आप हमे भी वर दीजिये कि हमारा भी कभी अपने परिवार के लोगों से वियोग न हो । हे देवि ! वेदादि सम्पूर्ण शास्त्र तथा नृत्य-गीतादि जो भी विद्याएँ हैं, वे सभी आपके अधिष्ठान में ही रहती हैं, वे सभी मुझे प्राप्त हों । हे भगवती सरस्वती देवि ! आप अपनी-लक्ष्मी, मेधा, वरा, रिष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभा तथा मति – इन आठ मूर्तियों के द्वारा मेरी रक्षा करें ।’ इस विधि से प्रार्थना कर मौन होकर भोजन करे । प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी को सुवासिनी स्त्रियों का भी पूजन करे और उन्हें तिल तथा चावल, घृतपात्र, दुग्ध तथा सुवर्ण प्रदान करे और देते समय ‘गायत्री प्रीयताम’ ऐसा उच्चारण करे । सायंकाल मौन रहे । इस तरह वर्षभर व्रत करे । व्रत की समाप्तिपर ब्राह्मण को भोजन के लिये पूर्णपात्र में चावल भरकर प्रदान करे । साथ ही दो श्वेत वस्त्र, सवत्सा गौ, चन्दन आदि भी दे । देवी को निवेदित किये गये वितान, घण्टा, अन्न आदि पदार्थ भी ब्राह्मण को दान कर दे । पूज्य गुरु का भी वस्त्र, माल्य तथा धन-धान्य से पूजन करे । इस विधि से जो पुरुष सारस्वत व्रत करता हैं, वह विद्वान्, धनवान् और मधुर कण्ठवाला होता है । भगवती सरस्वती की कृपा से वह वेदव्यास के समान कवि हो जाता है । नारी भी यदि इस व्रत का पालन करे तो उसे भी पूर्वोक्त फल प्राप्त होता है । (अध्याय ३५) Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe