January 4, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय ४२ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय ४२ कुमारषष्ठी-व्रतकी कथा भगवान् श्रीकृष्ण बोले — भरतसत्तम महाराज युधिष्ठिर ! मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि समस्त पापनाशिनी, धन-धान्य तथा शान्ति-प्रदायिनी एवं अतिकल्याणकारिणी है । उसी दिन कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया था, इसलिये यह षष्ठी तिथि स्वामिकार्तिकेय को बहुत प्रिय है । इस दिन किया हुआ स्नान-दान आदि कर्म अक्षय होता है । दक्षिण देश में स्थित कार्तिकेय का जो इस तिथि में दर्शन करता है, वह निःसंदेह ब्रह्महत्यादि पापों से मुक्त हो जाता है, इसलिये इस तिथि में कुमारस्वामी की सोने, चाँदी अथवा मिट्टी की मूर्ति बनवाकर पूजा करनी चाहिये । अपराह्ण में स्नान तथा आचमनकर, पद्मासन लगाकर बैठ जाय और स्वामी कुमार का एकाग्रचित्त से ध्यान करे । इस दिन उपवासपूर्वक निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए इनके मस्तक पर कलश से अभिषेक करे — “चन्द्रमण्डलभूतानां भवभूतिपवित्रता । गङ्गाकुमार धारेयं पतिता तव मस्तके ॥” (उत्तरपर्व ४२ । ७) इस प्रकार अभिषेक कर भगवान् सूर्य का पूजन करे, तदनन्तर गन्ध, पुष्प, धूप, नैवेद्य आदि उपचारों द्वारा कृत्तिकापुत्र कार्तिकेय की निम्न मन्त्र से पूजा करे — “देव सेनापते स्कन्द कार्तिकेय भवोद्भव । कुमार गुह गाङ्गेय शक्तिहस्त नमोऽस्तु ते ॥” (उत्तरपर्व ४२ । ९) दक्षिण-देशोत्पन्न अन्न, फल और मलय चन्दन भी चढ़ाये । इसके बाद स्वामिकार्तिकेय के परमप्रिय छाग, कुक्कुट, कलापयुक्त मयूर तथा उनकी माता भगवती पार्वती — इनका प्रत्यक्ष पूजन करे अथवा इनकी सुवर्ण की प्रतिमा बनाकर पूजन करे । पूजन के अनन्तर पूर्वोक्त देवसेनापति तथा स्कन्द आदि नाम-मन्त्रों से आज्ययुक्त तिलों से हवन करे, अनन्तर फल भक्षण कर भूमि पर कुशा की शय्या पर शयन करे । क्रमशः बारह महीनों में नारियल, मातुलुंग (बिजौरा नींबू), नारंगी, पनस (कटहल), जम्बीर (एक प्रकारका नींबू), दाडिम, द्राक्षा, आम्र. बिल्व, आमलक, ककड़ी तथा केला — इन फलों का भक्षण करे । ये फल उपलब्ध न हों तो उस काल में उपलब्ध फलों का सेवन करे । प्रातःकाल सोने के बने छाग अथवा कुक्कुट को ‘सेनानी प्रीयताम्’ ऐसा कहकर ब्राह्मण को दे । बारह महीनों में क्रम से सेनानी, सम्भूत, क्रौञ्चारि, षण्मुख, गुह, गाङ्गेय, कार्तिकेय, स्वामी, बालग्रहाग्रणी, छागप्रिय, शक्तिधर तथा द्वार — इन नामों से कार्तिकेय का पूजन करे और नामों के अन्त में ‘प्रीयताम्’ यह पद योजित करे । यथा-‘सेनानी प्रीयताम्’ इत्यादि । इसके पश्चात् ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भी मौन होकर भोजन करे । वर्ष समाप्त होने पर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को वस्त्र, आभूषण आदि से कार्तिकेय का पूजन एवं हवन करे और सब सामग्री ब्राह्माण को निवेदित कर दे । इस विधि से जो पुरुष अथवा स्त्री इस व्रत को करते हैं, वे उत्तम फल प्राप्त कर इन्द्रलोक में निवास करते हैं, अतः राजन् ! शंकरात्मज कार्तिकेय का सदा प्रयत्नपूर्वक पूजन करना चाहिये । राजाओं के लिये तो कार्तिकिय की पूजा का विशेष महत्त्व है । जो राजा स्वामी कुमार को इस प्रकार पूजनकर युद्ध के लिये जाता है, वह अवश्य ही विजय प्राप्त करता है । विधिपूर्वक पूजा करने पर भगवान् कार्तिकेय पूर्ण प्रसन्न हो जाते हैं । जो षष्ठी को नक्तव्रत करता है, वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त होकर कार्तिकेय के लोकमें निवास करता है । भविष्यपुराण, पुराण, उत्तरपर्वदक्षिण दिशा में जाकर जो भक्तिपूर्वक कार्तिकेय का दर्शन और पूजन करता है । वह शिवलोक को प्राप्त करता है । जो सदा शरवणोद्भव आदिदेव कार्तिकेय की आराधना करता है, वह बहुत काल तक स्वर्ग का सुख भोगकर पृथ्वी पर जन्म ग्रहण करता तथा चक्रवर्ती राजा का सेनापति होता है । (अध्याय ४२) Please follow and like us: Related