January 4, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय ४४ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय ४४ आदित्य-मण्डलदान-विधि भगवान् श्रीकृष्ण बोले — महाराज़ ! अब मैं समस्त अशुभोंके निवारण करनेवाले श्रेयस्कर आदित्य-मण्डल के दान का वर्णन करता हूँ । जौ अथवा गोधूम के चूर्ण में गुड़ मिलाकर उसे गौ के घृत में भलीभाँति पकाकर सूर्यमण्डल के समान एक अति सुन्दर अपूप बनाये और फिर सूर्यभगवान् का पूजन कर उनके आगे रक्तचन्दन का मण्डप अंकित कर उसके ऊपर वह सूर्यमण्डलात्मक मण्डक (एक प्रकारका पिष्टक) रखे । ब्राह्मणको सादर आमन्त्रित कर रक्त वस्त्र तथा दक्षिणासहित वह मण्डक इस मन्त्र को पढ़ते हुए ब्राह्मण को प्रदान करे — “आदित्यतेजसोत्पन्नं राजतं विधिनिर्मितम् । श्रेयसे मम विप्र त्वं प्रतिगृह्णेदमुत्तमम् ॥” (उत्तरपर्य ४४ । ५) ‘विप्र ! सूर्य के तेज से उत्पन्न, रजत (चांदी) द्वारा सविधान निमित इसे मेरे कल्याणार्थ आप ग्रहण करें ।’ ब्राह्मण भी उसे ग्रहणकर निम्नलिखित मन्त्र बोले — “कामदं धनदं धर्म्यं पुत्रदं सुखदं तव । आदित्यप्रीतये दत्तं प्रतिगृह्णामि मण्डलम् ॥” (उत्तरपर्व ४४ । ६) ‘आदित्य के प्रीत्यर्थ प्रदान किये गये इस मण्डल को, जो कामनाओं, धन, धर्म, पुत्र, एवं सुख प्रदान करने वाला है, मैं सादर ग्रहण कर रहा हूँ ।’ इस प्रकार विजय-सप्तमी को मण्डक का दान करे और सामर्थ्य होने पर सूर्यभगवान् की प्रीति के लिये शुद्धभाव से नित्य ही मण्डक प्रदान करे । इस विधि से जो मण्डक का दान करता है, वह भगवान् सूर्य के अनुग्रह से राजा होता है और स्वर्गलोक में भगवान् सूर्य की तरह सुशोभित होता हैं । (अध्याय ४४) Please follow and like us: Related