भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय ४५
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय ४५
वर्ज्य-सप्तमी-व्रत

महाराज युधिष्ठिर ने कहा — भगवन् ! धन, सौख्य तथा समस्त मनोवाञ्छित कामनाओं को प्रदान करनेवाली किसी सप्तमीव्रत का आप वर्णन करें ।
om, ॐ
भगवान् श्रीकृष्ण बोले — राजन् ! उत्तरायण के व्यतीत हो जाने पर शुक्ल पक्षमें पुरुषवाची नक्षत्र में आदित्यवार को सप्तमी-तिधि-व्रत ग्रहण करे । धान, तिल, जौ, उड़द, मूँग,गेहूँ, मधु, निन्द्य भोजन, मैथुन, कांस्यपात्र में भोजन, तैलाभ्यङ्ग, अंजन और शिलापर पीसी हुई वस्तु — इन सबका षष्ठी तिथि को प्रयोग न करे । इन पदार्थों का षष्ठी के दिन परित्याग कर केवल चना का भोग करे और देवता, मुनि तथा पितर — इन सबका तर्पणकर भगवान् सूर्य का पूजन करे । घृतयुक्त तिल और जौ का हवन कर भगवान् सूर्य का ध्यान करता हुआ भूमि पर शयन करे । इस विधि से जो एक वर्ष तक व्रत करता है, वह अपने सभी मनोवाञ्छित फल को प्राप्त कर लेता है ।

(अध्याय ४५)

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