भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय ५०
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय ५०
कमल-सप्तमी-व्रत1

भगवान् श्रीकृष्ण बोले — महाराज ! अब मैं कमल सप्तमी-व्रत का वर्णन करता हूँ, जिसके नाम लेनेमात्र से ही भगवान् सूर्य प्रसन्न हो जाते हैं । वसन्त ऋतु में शुक्ल पक्ष की सप्तमी को प्रातःकाल पीली सरसोंयुक्त जल से स्नान करे । एक पात्र में तिल रखकर उसमें सुवर्ण का कमल बनाकर स्थापित करे और उसमें भगवान् सूर्य की भावना कर दो वस्त्रों से आवृत करे तथा गन्ध-पुष्पादि उपचारों से पूजाकर निम्नलिखित श्लोक से प्रार्थना करे —om, ॐ

“नमस्ते पद्महस्ताय नमस्ते विश्वधारिणे ॥
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते ।”
(उत्तरपर्व ५० । ३-४)

तदनन्तर वस्त्र, माला तथा अलंकारों से सुसज्जित उस उदक-कुम्भ को प्रतिमा सहित ब्राह्मणकी पूजाकर प्रदान कर दे । दूसरे दिन अष्टमी को यथाशक्ति ब्राह्मणों को भोजन कराये और स्वयं भी तेल आदि से रहित विशुद्ध भोजन करे । इसी प्रकार वर्षपर्यन्त प्रत्येक मास की शुक्ल सप्तमी को भक्तिपूर्वक व्रत करे । व्रत की समाप्ति पर वह भक्तिपूर्वक सुवर्ण-कमल, सुवर्ण की पयस्विनी गौ, अनेक पात्र, आसन, दीप तथा अन्य सामग्रियों ब्राह्मण को दान में दे । इस विधि से जो कमल सप्तमी का व्रत करता है, वह अनन्त लक्ष्मी को प्राप्त करता है और सूर्यलोक में प्रसन्न होकर निवास करता है । कल्प-कल्प भर सात लोकों में निवास करता हुआ अन्त में परमगति को प्राप्त करता है ।
(अध्याय ५०) 1. 

  1. कई व्रत-निबन्धों व पुराणों में इसे हैं कमल-षष्ठी भी कहा गया है।
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