भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय ५१
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय ५१
शुभसप्तमी-व्रत की विधि

भगवान् श्रीकृष्ण बोले — राजन् ! अब में एक दूसरी सप्तमी का वर्णन कर रहा हूँ, वह शुभसप्तमी कहलाती है । इसमें उपवासकर व्यक्ति रोग, शोक तथा दुःखो से मुक्त हो जाता है । इस पुण्यप्रद व्रत में आश्विन मास में (शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को) स्नान करके पवित्र हो ब्राह्मणों द्वारा स्वस्तिवाचन कराये ।om, ॐ तदनन्तर गन्ध, माल्य तथा अनुलेपनादि से भक्तिपूर्वक कपिला गौ का निम्नलिखित मन्त्र से पूजन करे —

“नमामि सूर्यसम्भूतामशेषभुवनालयाम् ॥
त्वामहं शुभकल्याणशरीरां सर्वसिद्धये ।”
(उत्तरपर्व ५१ । ३-४)

‘देवि ! आप सूर्य से उत्पन्न हुई हैं और सम्पूर्ण लोकों की आश्रयदात्री हैं, आपका शरीर सुशोभन मङ्गल से युक्त है, आपको मैं समस्त सिद्धियों की प्राप्ति के निमित्त नमस्कार करता हूं ।’

तत्पश्चात् ताम्रपत्र में एक सेर तिल रखकर उस पर वृषभ की स्वर्ण-प्रतिमा स्थापित करे और उसकी वस्त्र, माल्य, गुड़ आदि से पूजा करे । सायंकाल में ‘अर्यमा प्रीयताम्’ यह कहकर सब सामग्री भक्तिपूर्वक ब्राह्मण को निवेदित करे । रात्रि में पञ्चगव्य का प्राशन करे तथा भूमि पर ही मात्सर्यरहित होकर शयन करे । प्रातः भक्तिपूर्वक ब्राह्मणों को पूजा आदि से संतुष्ट करे । प्रत्येक मास में दो वस्त्र, स्वर्णमय वृषभ और गौ आदि का पूजनपूर्वक दान करे । संवत्सर के अन्त में ईख, गुड़, वस्त्र, पात्र, आसन, गद्दा, तकिया आदि से समन्वित शय्या, एक सेर तिल से पूर्ण ताम्र-पात्र, सौवर्ण वृषभ ‘विश्वात्मा प्रीयताम्’ कहकर वेदज्ञ ब्राह्मण को दान करे । इस विधि से शुभसप्तमी-व्रत करनेवाला व्यक्ति जन्म-जन्म में विमल कीर्ति एवं श्री प्राप्त करता है और देवलोक में पूजित तथा प्रलयपर्यन्त गुणाधिप होता है । एक कल्प के अनन्तर वह पृथ्वी पर जन्म लेकर सातों द्वीपों का चक्रवर्ती सम्राट् होता है । यह पुण्यदायिनी शुभ-सप्तमी सहस्रों ब्रह्महत्या और सैकड़ों भ्रूणहत्या आदि पापों का नाश करती है । इस शुभ-सप्तमी के माहात्म्य को जो पढ़ता है अथवा क्षणभर भी सुनता है, वह शरीर छूटने पर विद्याधरों का अधिपति होता है ।
(अध्याय ५१)

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