January 5, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय ५९ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय ५९ सोमाष्टमी-व्रत-विधान भगवान् श्रीकृष्ण बोले — महाराज ! अब में एक दूसरा व्रत बतला रहा हूँ, जो सर्वसम्मत, कल्याणप्रद एवं शिवलोक-प्रापक है । शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन यदि सोमवार हो तो उस दिन उमासहित भगवान् चन्द्रचूड़ का पूजन करें । इसके लिये एक ऐसी प्रतिमा स्थापना करनी चाहिये, जिसका दक्षिण भाग शिवस्वरूप और वामभाग उमा-स्वरूप हो । अनन्तर विधिपूर्वक उसे पञ्चामृत से स्नान कराकर उसके दक्षिणभाग में कर्पूरयुक्त चन्दन का उपलेपन करे । श्वेत तथा रक्त पुष्प चढाये और घृत में पकाये गये नैवेद्य का भोग लगाये । पचीस प्रज्वलित दीपक से उमासहित भगवान् चन्द्रचूड की आरती करे । उस दिन निराहार रहकर दूसरे दिन प्रातः इसी प्रकार पूजन सम्पन्न कर तिल तथा घी से हवन कर ब्राह्मणों को भोजन कराये । यथाशक्ति सपत्नीक ब्राह्मण की पूजा करे और पितरों का भी अर्चन करे । एक वर्ष तक इस प्रकार व्रत करके एक त्रिकोण तथा दूसरा चतुष्कोण (चौकोर) मण्डल बनाये । त्रिकोण में भगवती पार्वती तथा चौकोर मण्डल में भगवान् शंकर को स्थापित करे । तदनन्तर पूर्वोक्त विधि के अनुसार पार्वती एवं शंकर की पूजा करके श्वेत एवं पीत वस्त्र के दो वितान, पताका, घण्टा, धूपदानी, दीपमाला आदि पूजन के उपकरण ब्राह्मण को समर्पित करे और यथाशक्ति ब्राह्मण-भोजन भी कराये । ब्राह्मणदम्पति का वस्त्र, आभूषण, भोजन आदि से पूजनकर पचीस प्रज्वलित दीपकों से धीरे-धीरे नीराजन करे । इस प्रकार भक्तिपूर्वक पाँच वर्षों तक या एक वर्ष ही व्रत करने से व्रती उमासहित शिवलोक में निवास कर अनामय पद प्राप्त करता है । जो पुरुष आजीवन इस व्रत को करता है, वह तो साक्षात् विष्णुरूप ही हो जाता है । उसके समीप आपत्ति, शोक, ज्वर आदि कभी नहीं आते । इतना विधान कहकर भगवान् श्रीकृष्ण पुनः बोले — महाराज ! इसी प्रकार रविवार-युक्त अष्टमी का भी ब्रत होता है । उस दिन एक प्रतिमा के दक्षिण भाग में शिव और वाम भाग में पार्वती की पूजा करे । दिव्य पद्मराग से भगवान् शंकर को और सुवर्ण से पार्वती को अलंकृत करे । यदि उनकी सुविधा न हो सके तो सुवर्ण ही चढ़ाये । चन्दन से भगवान् शिव को और कुंकुम से देवी पार्वती को अनुलिप्त करे । भगवती पार्वती को लाल वस्त्र और लाल माला तथा भगवान् शंकर को रुद्राक्ष निवेदित कर नैवेद्य में घृतपक्व पदार्थ नियेदित करे । शेष सारा विधान पूर्ववत् कर पारण गव्य-पदार्थों से करे । उद्यापन पूर्वरीत्या करना चाहिये । इस व्रत को एक वर्ष अथवा लगातार पाँच वर्ष करनेवाला सूर्य आदि लोकॉ में उत्तम भोग को प्राप्तकर अन्त में परमपद को प्राप्त करता है । (अध्याय ५९) Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe