January 5, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय ६० ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय ६० श्रीवृक्षनवमी-व्रत-कथा भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा — महाराज़ ! देवता और दैत्यों ने जब समुद्र-मन्थन किया था, तब उस समय समुद्र से निकली हुई लक्ष्मी को देखकर सभी की यह इच्छा हुई कि मैं ही लक्ष्मी को प्राप्त कर लूँ । लक्ष्मी की प्राप्ति को लेकर देवता और दैत्यों में परस्पर युद्ध होने लगा । उस समय लक्ष्मी ने कुछ देर के लिये बिल्व वृक्ष का आश्रय ग्रहण कर लिया । भगवान् विष्णु ने सभी को जीतकर लक्ष्मी का वरण किया । लक्ष्मी ने बिल्ववृक्ष का आश्रय ग्रहण किया था, इसलिये उसे श्रीवृक्ष भी कहते हैं । अतः भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को श्रीवृक्ष-नवमी-व्रत करना चाहिये । सूर्योदय समय भक्तिपूर्वक अनेक पुष्पों, गन्ध, वस्त्र, फल, तिलपिष्ट, अन्न, गोधूम, धूप तथा माला आदि से निम्नलिखित मन्त्र से बिल्ववृक्ष की पूजा करे — “श्रीनिवास नमस्तेऽस्तु श्रीवृक्ष शिववल्लभ । ममाभिलषितं कृत्वा सर्वविघ्नहरो भव ॥” इस विधि से पूजा कर श्रीवृक्ष की सात प्रदक्षिणा कर उसे प्रणाम करे ।अनन्तर ब्राह्मण-भोजन कराकर ‘श्रीदेवी प्रीयताम्’ ऐसा कहकर प्रार्थना करे । तदनन्तर स्वयं भी तेल और नमक से रहित बिना अग्नि के संयोग से तैयार किया गया भोजन, दही, पुष्प, फल आदि को मिट्टी के पात्र में रखकर मौन हो ग्रहण करे । इस प्रकार भक्तिपूर्वक जो पुरुष या स्त्री श्रीवृक्ष का पूजन करते हैं, वे अवश्य ही सभी सम्पत्तियों को प्राप्त करते हैं । (अध्याय ६०) Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe