January 6, 2019 | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय ६२ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय ६२ उल्का-नवमी-व्रतका विधान और फल भगवान् श्रीकृष्ण बोले — महाराज ! अब आप उल्का-नवमी-व्रत के विषय में सुनें । आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को नदी में स्नानकर पितृदेवी की विधिपूर्वक अर्चना करे । अनन्तर गन्ध, पुष्प, धूप, नैवेद्य आदि से भैरव-प्रिया चामुण्डादेवी की पूजा करे, तदनन्तर इस मन्त्र से हाथ जोड़कर स्तुति करे — “महिषघ्नि महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनि । द्रव्यमारोग्यविजयौ देहि देवि नमोऽस्तु ते ।। (उत्तरपर्य ६२ । ५) ‘महिषासुर घातिनि एवं मुण्डमाला धारण करने वाली चामुण्डे महाभागे ! मैं आपको बार-बार नमस्कार कर रहा हूँ, मुझे द्रव्य समेत आरोग्य तथा विजय प्रदान करने की कृपा करें ।’ इसके बाद यथाशक्ति सात, पाँच या एक कुमारी को भोजन कराकर उन्हें नीला कञ्चुक, आभूषण, वस्त्र एवं दक्षिणा आदि देकर संतुष्ट करे । श्रद्धा से भगवती प्रसन्न होती है । अनन्तर भूमि का अभ्युक्षण करे । तदनन्तर गोबर का चौका लगाकर आसन पर बैठ जाय । सामने पात्र रखकर, जो भी भोजन बना हो सारा परोस ले, फिर एक मुट्ठी तृण और सूखे पत्तों को अग्नि से प्रज्वलित कर जितने समय तक प्रकाश रहे उतने समय में ही भोजन सम्पन्न कर ले । अग्नि के शान्त होते ही भोजन करना बंद कर आचमन करे । चामुण्डा का हृदय में ध्यानकर प्रसन्नतापूर्वक घर का कार्य करे । इस प्रकार प्रतिमास व्रत कर वर्ष के समाप्त होने पर कुमारी-पूजा करे तथा उन्हें वस्त्र, आभूषण, भोजन आदि देकर उनसे क्षमा-याचना करे । ब्राह्मण को सुवर्ण एवं गौ का दान करे । हे पार्थ ! इस प्रकार जो पुरुष उल्का-नवमी का व्रत करता है, उसे शत्रु, अग्नि, राजा, चोर, भूत, प्रेत, पिशाच आदिका भय नहीं होता एवं युद्ध आदि में उसपर शस्त्रों का प्रहार नहीं लगता, देवी चामुण्डा उसकी सर्वत्र रक्षा करती हैं । इस उल्का-नवमी-व्रत को करनेवाले पुरुष और स्त्री उल्का की तरह तेजस्वी हो जाते हैं । (अध्याय ६२) Related