January 6, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय ७२ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय ७२ भीष्मपञ्चक-व्रत की विधि एवं महिमा युधिष्ठिर ने कहा — हे यदुश्रेष्ठ कृष्ण ! कार्तिक मास में भीष्म-पञ्चक नाम का जो श्रेष्ठ व्रत होता है, अब कृपया उसका विधान बताइये । भगवान् श्रीकृष्ण बोले — महाराज ! मैं आपसे व्रत में सर्वोत्तम भीष्मपञ्चक-व्रत का वर्णन कर रहा हूँ । मैंने पहले इस व्रत का उपदेश भृगुजी को किया था, फिर भृगु ने शुक्राचार्य को और शुक्राचार्य ने प्रह्लाद आदि दैत्यों एवं अपने शिष्य ब्राह्मणों को बताया । जैसे तेजस्वियों में अग्नि, शीघ्रगामियों में पवन, पूजनीयों में ब्राह्मण एवं दानों में सुवर्ण-दान श्रेष्ठ है, वैसे ही व्रतों में भीष्मपञ्चक-व्रत श्रेष्ठ है । लोकों में भूलोक, तीर्थॉ में गङ्गा, यज्ञों में अश्वमेध, शास्त्रों में वेद तथा देवताओं में अच्युत का जैसा स्थान है, ठीक उसी प्रकार से व्रतों में भीष्मपञ्चक सर्वोत्तम है । जो इस दुष्कर भीष्मपञ्चक-व्रत का अनुष्ठान कर लेता है, उसके द्वारा सभी धर्म सम्पादित हो जाते हैं । पहले सत्ययुग में वसिष्ठ, भृगु, गर्ग आदि मुनियों ने, फिर त्रेता में नाभाग, अम्बरीष आदि राजाओं ने और द्वापर में सीरभद्र आदि वैश्यों ने तथा कलियुग में उत्तम आचरणवाले शूद्रों ने भी इस व्रत का अनुष्ठान किया । ब्राह्मणों ने ब्रह्मचर्य-पालन, जप तथा हवन-कर्म के द्वारा और क्षत्रियों एवं वैश्यों ने सत्य-शौच आदि के पालनपूर्वक इस व्रत का अनुष्ठान किया है । सत्यहीन मूढ मनुष्यों के लिये इस व्रत का अनुष्ठान असम्भव है । यह भीष्मपञ्चक-व्रत पाँच दिन तक होता है । इस भीष्मपञ्चक-व्रत में असत्यभाषण, शिकार खेलने आदि अनुचित कर्मों का त्याग करना चाहिये । पाँच दिन विष्णु भगवान् का पूजन करते हुए शाकमात्र का ही आहार करना चाहिये । पति की आज्ञा से स्त्री भी सुख-प्राप्ति हेतु इस व्रत का आचरण कर सकती है । विधवा नारी भी पुत्र-पौत्रों की समृद्धि अथवा मोक्षार्थ इस व्रत को कर सकती है । इसमें कार्तिक मास पर्यन्त नित्य प्रातः-स्नान, दान, मध्याह्न-स्नान और भगवान् विष्णु के पूजन का विधान है । नदी, झरना, देवखात या किसी पवित्र जलाशय में शरीर में गोमय लगाकर स्नान कर जौ, चावल तथा तिलों से देवता, ऋषियों और पितरों का तर्पण करना चाहिये । भगवान् विष्णु को भी मधु, दुग्ध, घी तथा चन्दनमिश्रित जल से भक्तिपूर्वक स्नान कराना चाहिये । कर्पूर, पञ्चगव्य, कुंकुम (केसर), चन्दन तथा सुगन्धित पदार्थों के द्वारा भगवान् गरुडध्वज विष्णु का उपलेफ्न करना चाहिये । उनके सामने एक दीपक पाँच दिन तक अनवरत दिन-रात प्रज्वलित रखना चाहिये । भगवान् को नैवेद्य निवेदित कर ‘ॐ नमो वासुदेवाय’ का अष्टोत्तरशत-जप, तदनन्तर षडक्षर-मन्त्रसे हवन करना चाहिये तथा विधिपूर्वक सायंकालीन संध्या करनी चाहिये । जमीन पर सोना चाहिये। ये सभी कार्य पाँच दिनों तक किये जाने चाहिये । इस व्रत में पहले दिन भगवान् विष्णु के चरणों की कमल-पुष्पों के द्वारा पूजा करनी चाहिये । दूसरे दिन बिल्वपत्र के द्वारा उनके घुटनों की, तीसरे दिन नाभि-स्थल पर केवड़े के पुष्प द्वारा पूजा करनी चाहिये । चौथे दिन बिल्व एवं जपा-पुष्पों से भगवान् के स्कन्ध-प्रदेश की पूजा करनी चाहिये और पाँचवें दिन मालती-पुष्पों से भगवान् के शिरोभाग की पूजा करनी चाहिये । इस प्रकार हृषीकेश का पूजन करते हुए व्रती को एकादशी के दिन व्रत कर अभिमन्त्रित गोमय तथा द्वादशी को गोमूत्र का प्राशन करना चाहिये । त्रयोदशी को दूध तथा चतुर्दशी को दधि का प्राशन करना चाहिये । कायशुद्धि के लिये चारों दिन इनका प्राशन करना चाहिये । पाँचवें दिन स्नानकर केशव की विधिवत् पूजा करनी चाहिये । तत्पश्चात् ब्राह्मण को भक्तिपूर्वक भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिये । इसी प्रकार पुराण-वाचकों को भी वस्त्राभूषण प्रदान करना चाहिये । रात्रि में पहले पञ्चगव्य-पान करके पीछे अन्न भोजन करे । इस प्रकार से भीमपञ्चक-व्रत का समापन करना चाहिये । यह भीष्मपञ्चक व्रत परम पवित्र और सम्पूर्ण पापों का नाश करनेवाला है । राजन् ! इसी भीष्मपञ्चक-व्रत का वर्णन शरशय्या पर पड़े हुए महात्मा भीष्म ने स्वयं किया था । इसे मैंने आपको बता दिया । जो मानव भक्तिपूर्वक इस व्रत का पालन करता है, उसे भगवान् अच्युत मुक्ति प्रदान करते हैं । ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ अथवा संन्यासी जो कोई भी इस व्रत को करते हैं, उन्हें वैष्णव-स्थान प्राप्त होता हैं । कार्तिक शुक्ल एकादशी से व्रत प्रारम्भ करके पौर्णमासी को व्रत पूर्ण करना चाहिये । जो इस व्रत को सम्पन्न करता है, वह ब्रह्महत्या, गोहत्या आदि बड़े-बड़े पापों से भी मुक्त हो जाता है और शुद्ध सद्गति को प्राप्त होता है । ऐसा भीष्म का वचन है । (अध्याय ७२) Related