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भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय ८७ से ८८
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय ८७ से ८८
अबाधक-व्रत एवं दौर्भाग्य-दौर्गन्ध्य नाशक (मन्दार-निम्बार्क) व्रत का माहात्म्य

राजा युधिष्ठिर ने पूछा — भगवन् ! जनशून्य घोर वन में, समुद्रतरण में, संग्राम में, चोर आदि के भय में व्याकुल मनुष्य किस देवता का स्मरण करे, जिससे उस संकट के समय उसकी रक्षा हो सके, यह आप बतायें ।

भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा — महाराज ! सर्वमङ्गला भगवती श्रीदुर्गादेवी का स्मरण करने पर पुरुष कभी भी दुःख और भय को प्राप्त नहीं होता । भारत ! जब मैं और बलदेव जी अपने गुरु संदीपनि मुनि के यहाँ सब विद्या पढ़ चुके तो उस समय हमने गुरुदक्षिणा के लिये गुरुजी से प्रार्थना की । om, ॐतब गुरुजी ने हमारा दिव्य प्रभाव जानकर यही कहा — ‘प्रभो ! मेरा पुत्र प्रभासक्षेत्र में गया था, वहाँ उसे समुद्र में किसी प्राणी ने मार दिया, उसी पुत्र को गुरुदक्षिणा के रूप में मुझे प्राप्त कराओ ।’ तब हम यमलोक में गये और वहाँ से गुरुपुत्र को लेकर गुरुजी के समीप आये और गुरुदक्षिणा के रूप में उनका पुत्र उन्हें समर्पित कर दिया । तदनन्तर गुरु को प्रणामकर जब हम चलने लगे, तब गुरुजी ने कहा — ‘पुत्रों ! इस स्थान में तुम अपने चरणों का चिह्न बना दो, हमने भी गुरु की आज्ञा के अनुसार वैसा ही किया, फिर हम वापस घर आ गये । उसी दिन से बलरामजी के दक्षिण पाद का, मध्य में सर्वमङ्गला का और मेरे वाम चरणचिह्न का पुत्र प्राप्ति की कामना से अथवा अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिये सभी वहाँ पूजन करते हैं । प्रत्येक मास की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को एक-भुक्त, नक्त अथवा उपवास रहकर मृत्तिका अथवा सुवर्ण की इनकी प्रतिमा बना करके गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, मधु आदि से जो स्त्री अथवा पुरुष पूजन करता है, वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो स्वर्ग में निवास करता है ।

राजा युधिष्ठिर ने पुनः पूछा —
यदुशार्दूल ! ऐसा कौन व्रत है, जिसके आचरण से शरीर की दुर्गन्ध नष्ट हो जाय और दुर्भाग्य भी दूर हो जाय ।
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा — महाराज ! इसी प्रश्न को रानी विष्णुभक्ति ने जातूकर्ण्य मुनि से पूछा था, तब उन्होंने उनसे कहा — ‘देवि ! ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी में पवित्र जलाशय में स्नान करे और शुद्ध स्थान में उत्पन्न श्वेत आक, रक्त करवीर तथा निम्ब वृक्ष की पूजा करे । ये तीनों वृक्ष भगवान् सूर्य को अत्यन्त प्रिय हैं । प्रातःकाल सूर्योदय हो जाने पर भगवान् सूर्य का दर्शनकर उनका अपने हृदय में ध्यान करे । अनन्तर पुष्प, नैवेद्य, धूप आदि उपचारों से उन वृक्षों की पूजा करे और पूजन के अनन्तर उन्हें नमस्कार करे ।

राजन् ! इस विधि से जो स्त्री-पुरुष इस व्रत को करते हैं, उनके शरीर की दुर्गन्धि तथा उनका दौर्भाग्य दोनों दूर हो जाते हैं और वे सौभाग्यशाली हो जाते हैं ।
(अध्याय ८७-८८)

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