भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय ९०
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय ९०
अनङ्ग-त्रयोदशी-व्रत

युधिष्ठिर ने पूछा — संसार से उद्धार करनेवाले स्वामिन् ! आप रूप एवं सौभाग्य प्रदान करनेवाला कोई व्रत बताये ।

भगवान् श्रीकृष्णा ने कहा — महाराज ! शरीर को क्लेश देनेवाले बहुत-से व्रतों के करने से क्या लाभ ? अकेले अनङ्ग त्रयोदशी ही सब दोषों का शमन एवं समस्त मङ्गलों की वृद्धि करनेवाली है । आप इसकी विधि सुनें ।
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पहले जय भगवान् शंकर ने कामदेव को दग्ध कर दिया, तब वह बिना के ही सबके शरीरमें निवास करने लगा । कामदेव ने इस व्रत को किया था, इसी से इसका नाम अनङ्गत्रयोदशी पड़ा । इस व्रत में मार्गशीर्ष मास के शुरू पक्ष की त्रयोदशी को नदी, तडाग आदि में स्नान कर, जितेन्द्रिय हो, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य और कालोद्भूत फलों से भगवान् शंकर का ‘शशिशेखर’ नाम से पूजन करे और तिल सहित अक्षत से हवन करे । रात्रि को मधु-प्राशन कर सो जाय । इससे व्रती कामदेव के समान ही सुन्दर हो जाता है और दस अश्वमेध-यज्ञों का फल प्राप्त करता है । इसी प्रकार पौष मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी में भगवान् शंकर का ‘योगेश्वर’ नाम से पूजन कर चन्दन का प्राशन करे तो शरीर में चन्दन के समान गन्ध हो जाती है और व्रती राजसूय-यज्ञ का फल प्राप्त करता है । माघ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को भगवान् शंकर का ‘महेश्वर’ नाम से पूजन कर मोती का चूर्ण भक्षण करे तो उत्तम सौभाग्य प्राप्त करता है । इसी प्रकार फाल्गुन में ‘हरेश्वर’ नाम से पूजन कर कंकोल का प्राशन करने से अतुल सौन्दर्य प्राप्त होता है । चैत्र में ‘सुरूपक’ नाम से पूजन करने और कर्पूर-प्राशन करने से व्रती चन्द्र के तुल्य मनोहर हो जाता है और महान् सौभाग्य प्राप्त करता है । वैशाख में ‘महारूप’ नाम से पूजन कर जातीफल (जायफल) का प्राशन करे, इससे उत्तम कुल की प्राप्ति होती है और उसके सब काम सफल हो जाते हैं तथा यह सहस्र गोदान का फल प्राप्त कर ब्रह्मलोक में निवास करता है । ज्येष्ठ में ‘प्रद्युम्न’ नाम से पूजन करे और लवंग का प्राशन करे, इससे उत्तम स्थान, श्रेष्ठ लक्ष्मी और सभी सुख-सम्पदाएँ प्राप्त होती हैं तथा वह एक सौ आठ वाजपेय-यज्ञ का फल प्राप्त करता है । आषाढ़ में ‘उमाभर्ता नाम से पूजन कर तिलोदक का प्राशन करे । इससे उत्तम रूप प्राप्त होता है तथा वह सौ वर्ष तक सुखी जीवन व्यतीत करता है । श्रावण ‘उमापति” नाम से पूजन कर तिल का प्राशन करे, इससे पौण्डरीक-यज्ञ का फल प्राप्त होता है । भाद्रपद मास में ‘सद्योजात’ नाम से पूजन कर अगरु का प्राशन करे, इससे वह भूमि पर सबका गुरु बनता है और पुत्र-पौत्र, धन आदि प्राप्त कर बहुत दिन संसार में सुख भोगकर अन्त में विष्णुलोक में पूजित होता है । आश्विन मास में ‘त्रिदशाधिपति’ नाम से पूजन कर स्वर्णोदक का प्राशन करे तो व्रती उतम रूप, सौभाग्य, प्रगल्भता और करोड़ों निष्क दान का फल प्राप्त करता है । कार्तिक में ‘विश्वेश्वर’ नाम से पूजा कर दमन (दौना) फल का प्राशन करे तो व्रती अपने बाहुबल से समस्त संसार का स्वामी होता है और अन्त में शिवलोक में निवास करता है ।

इस प्रकार वर्षभर इस उत्तम व्रत का पालन कर पारणा करनी चाहिये । फिर कलश स्थापित कर उसके ऊपर ताम्रपत्र और उसके ऊपर शिव की प्रतिमा स्थापित कर श्वेत वस्त्र से आच्छादित करे । गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से उसका पूजन कर उसे शिवभक्त ब्राह्मण को प्रदान कर दे । साथ ही पयस्विनी सवत्सा गौ, छाता और यथाशक्ति दक्षिणा देनी चाहिये । इस प्रकार जो इस अनङ्गत्रयोदशी-व्रत को करता है और व्रत-पारणा के समय महान् उत्सव करता है वह निष्कण्टक राज्य, आयुष्य, बल, यश तथा सौभाग्य प्राप्त करता हैं और अन्त में शिवलोक में निवास करता है ।
(अध्याय १०)

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