January 1, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय ९ से १० ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय ९ से १० अशोकव्रत तथा करवीरव्रत का माहात्म्य भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा — महाराज ! आश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा को गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, सप्तधान्य से तथा फल, नारिकेल, अनार, लड्डू आदि अनेक प्रकार के नैवेद्य से मनोरम पल्लवों से युक्त अशोक वृक्ष का पूजन करने से कभी शोक नहीं होता । अशोक वृक्ष की निम्नलिखित मन्त्र से प्रार्थना करे और उसे अर्घ्य प्रदान करे – “पितृभ्रातृपतिश्वश्रूश्वशुराणां तथैव च । अशोक शोकशमनो भव सर्वत्र नः कुले ॥” ( उत्तरपर्व ९ । ४) ‘अशोकवृक्ष ! आप मेरे कुल में पिता, भाई, पति, सास तथा ससुर आदि सभी का शोक शमन करें ।’ वस्त्र से अशोक-वृक्ष को लपेट कर पताकाओं से अलंकृत करे । इस व्रत को यदि स्त्री भक्तिपूर्वक करे तो वह दमयन्ती, स्वाहा, वेदवती और सती की भाँति अपने पति की अति प्रिय हो जाती है । वनगमन के समय सीता ने भी मार्ग में अशोक वृक्ष का भक्तिपूर्वक गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तिल, अक्षत आदिसे पूजन किया और प्रदक्षिणा कर वन को गयीं । जो स्त्री तिल, अक्षत, गेहूँ, सर्षप आदि से अशोक का पूजन कर मन्त्र से वन्दना और प्रदक्षिणा कर ब्राह्मण को दक्षिणा देती है, वह शोकमुक्त होकर चिरकाल तक अपने पतिसहित संसार के सुखों का उपभोगकर अन्त में गौरी-लोक में निवास करती है । यह अशोकव्रत सब प्रकार के शोक और रोग को हरनेवाला है । महाराज ! इसी प्रकार ज्येष्ठ मास की शुक्ल प्रतिपदा को सूर्योदय के समय अत्यन्त मनोहर देवता के उद्यान में लगे हुए करवीर-वृक्ष का पूजन करे । लाल सूत्र से वृक्ष को वेष्टित कर गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, सप्तधान्य, नारिकेल, नारंगी और भाँति–भाँति के फलों से पूजन कर इस मन्त्र से उसकी प्रार्थना करे — “करवीर विषावास नमस्ते भानुवल्ल्भ । मौलिमण्डनसद्रत्न नमस्ते केशवेशयोः ॥” ( उत्तरपर्व १० । ४) ‘भगवान् विष्णु और शंकर के मुकुटपर रत्न के रूप में सुशोभित, भगवान् सूर्य के अत्यन्त प्रिय तथा विष के आवास करवीर (जहर कनेर) ! आपको बार-बार नमस्कार है ।’ इसी तरह — “आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च । हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति देवो याति भुवनानि पश्यन् ॥” (यजु० ३३ । ४३) इस मन्त्र से प्रार्थना कर ब्राह्मण को दक्षिणा दे एवं वृक्ष की प्रदक्षिणा कर घर को जाय । सूर्यदेव की प्रसन्नता के लिये इस व्रत को अरुंधती, सावित्री, सरस्वती, गायत्री, गंगा, दमयंती, अनसूया और सत्यभामा आदि पतिव्रता स्त्रियों ने तथा अन्य स्त्रियों ने भी किया है । इस करवीरव्रत को जो भक्तिपूर्वक करता है, वह अनेक प्रकार के सुख भोग कर अन्त में सूर्यलोक को जाता है । (अध्याय ९) Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe