भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय ९८
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय ९८
सर्वफलत्याग-चतुर्दशी व्रत

भगवान् श्रीकृष्ण बोले — भारत ! अब आप सर्वफलत्याग-चतुर्दशी व्रत का माहात्म्य सुनें । यह सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करनेवाला है । इस व्रत का नियम मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अथवा अन्य मासों की अष्टमी को ग्रहण करना चाहिये । उस दिन ब्राह्मणों को पायस-भोजन कराकर दक्षिणा दे । इस व्रत का आरम्भ कर वर्षभर कोई निन्द्य फल-मूल तथा {tooltip}अठारह प्रकार के धान्य {end-texte} ये अठारह धान्य — याज्ञवल्क्य-स्म॰ १ । २०८ की अपरार्क व्याख्या, व्याकरण महाभाष्य ५ । २ । ४, वाजसने० संहिता १८ । १२, दानमयूख तथा विधानपारिजात आदिके अनुसार इस प्रकार हैं—सावाँ, धान, जौ, मूंग, तिल, अणु (कँगनी), उड़द, गेहूँ, कोदो, कुलथी, सतीन (छोटी मटर), सेम, आढ़की (अरहर) या मयुष्ट (उजली मटर), चना, कलाय, मटर, प्रियङ्गु (सरसों, राई या टॉगुन) और मसूर । अन्य मत से मयुष्टादि की जगह अतसी और नीवार ग्राह्य हैं।) भक्षण न करे ।om, ॐ वर्ष के अन्त में चतुर्दशी अथवा अष्टमी के दिन सुवर्ण के रुद्र एवं धर्मराज की प्रतिमा बनाकर दो कलशों के ऊपर स्थापित कर उनका पूजन करे । सोने के सोलह कूष्माण्ड और मातुलुङ्ग, बैगन, कटहल, आम्र, आमड़ा, कैथ, कलिंग (तरबूज), ककड़ी, श्रीफल, वट, अश्वत्थ, जम्बीरी नींबू, केला, बेर तथा दाड़िम (अनार)— ये फल बनवाये । मूली, आँवला, जामुन, कमलगट्टा, करौंदा, गूलर, नारियल, अंगूर, दो बनभंटा, कंकोल, काकमाची, खीरा, करील, कुटज तथा शमी — ये सोलह फल चाँदी के बनवाये और ताल, अगस्त्य, पिड़ार, खजूर, सूरण, कंदक, कटहल, लकुच, खेंकसा, इमली, चित्रावल्ली, कूटशाल्मलिका, महुआ, कारवेल्ल, वल्ली तथा गुदपटोलक — ये सोलह फल ताँबे के बनवाये । इन फलों का व्रतपर्यन्त भक्षण न करे अर्थात् इन फलों के त्याग को व्रत में संकल्प करे । व्रत की पूर्णता पर धर्मराज एवं रुद्र की प्रतिमा तथा स्वर्ण, रौप्य एवं ताम्र से बनाये गये इन फलों को वेदश, शान्त, सपत्नीक ब्राह्मण को भगवान् की प्रसन्नता के लिये प्रार्थनापूर्वक दान कर दे । सभी उपकरण सहित उत्तम शय्या, भूषण, दक्षिणा भी ब्राह्मण को देकर यथाशक्ति ब्राह्मण-भोजन कराये । स्वयं भी तैल-क्षारवर्जित भोजन करे । यदि सभी फलों को न त्याग सके तो एक ही फल का त्याग करे और सुवर्ण आदि का बनवाकर इसी विधान से ब्राह्मण को दे । उन फलों में जितने परमाणु होते हैं, उतने हजार युग वर्षों तक इस व्रत को करनेवाला व्यक्ति रुद्रलोक में पूजित होता है । स्त्रियों को भी यह व्रत करना चाहिये । इस व्रत के करनेवालों को किसी जन्म में इष्ट का वियोग नहीं होता और अन्त में वह स्वर्ग में निवास करता है ।
(अध्याय ९८)

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