January 9, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय १०० ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय १०० वैशाखी, कार्तिकी और माघी पूर्णिमा की विधि राजा युधिष्ठिर ने पूछा — भगवन् ! संवत्सर में कौन-कौन तिथियाँ स्नान-दान आदि में अधिक पुण्यप्रद हैं । उनका आप वर्णन करे । भगवान् श्रीकृष्ण बोले — महाराज ! वैशाख, कार्तिक और माघ — इन तीन महीनों की पूर्णिमाएँ स्नान-दान आदि के लिये अति श्रेष्ठ है । इन तिथियों में स्नान, दान आदि अवश्य करने चाहिये । इन तिथियों में तीर्थों में स्नान करे और यथाशक्ति दान दे । वैशाखी को उज्जयिनी (शिप्रा) में, कार्तिकी को पुष्कर में और माघी को वाराणसी (गङ्गा) में स्नान करना चाहिये । इस दिन जो पितरों का तर्पण करता है, वह अनन्त फल पाता है और पितरों का उद्धार करता है । वैशाख-पूर्णिमा को अन्न, सुवर्ण और वस्त्रसहित जलपूर्ण कलश ब्राह्मण को दान करने से व्रती सर्वथा शोकमुक्त हो जाता है । इस व्रत में सुन्दर मधुर भोजन से परिपूर्ण पात्र, गौ, भूमि, सुवर्ण तथा वस्त्र आदि का दान करना चाहिये । माघ-पूर्णिमा को देवता और पितरों का तर्पण कर सुवर्णसहित तिल-पात्र, कम्बल, रुई के वस्त्र, कपास, रत्न आदि ब्राह्मणों को दे । कार्तिक पूर्णिमा को वृषोत्सर्ग करे । भगवान् विष्णु का नीराजन करे । हाथी, घोडे, रथ और घृत-धेनु आदि दस धेनु का दान करे और केला, खजूर, नारियल, अनार, संतरा, ककड़ी, बैंगन, करेला, कुंदुरु, कुष्माण्ड आदि फलों का दान करे । इन पुण्य तिथियों में जो स्नान, दान आदि नहीं करते, वे जन्मान्तर में रोगी और दरिद्री होते हैं । ब्राह्मणों को दान देने का तो फल है ही, परंतु बहन, भानजे, बुआ आदि को तथा दरिद्र बन्धुओं को भी दान देने से बड़ा पुण्य होता है । मित्र, कुलीन व्यक्ति, विपत्ति से पीड़ित व्यक्ति, दरिद्री और आशा से आये अतिथि को दान देने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है । राजन् ! सीता और लक्ष्मणसहित श्रीरामचन्द्र जब वन चले गये थे, उस समय भरतजी अपने ननिहाल में थे । इधर लोगों ने माता कौसल्या को उनके विषय में सशंकित कर दिया कि श्रीराम के वनगमन में भरत ही मुख्य हेतु है । फिर जब ये ननिहाल से वापस आये और उन्हें सारी बातें ज्ञात हुई तो उन्होंने माता को अनेक प्रकार से समझाया और शपथ भी ली, पर माता को विश्वास न हुआ, किंतु जब भरत ने कहा कि ‘माँ ! भगवान् श्रीराम के वन-गमन में यदि मेरी सम्मत रही हो तो देवताओं द्वारा पूजित तथा अनेक पुण्यों को प्रदान करने वाली वैशाख, कार्तिक तथा माघ की पूर्णिमाएँ मेरे बिना स्नान-दान के ही व्यतीत हों और मुझे निम्न गति प्राप्त हो ।’ इस महान् शपथ को सुनते ही माता को विश्वास हो गया और उन्होंने भरत को अपने अङ्क में ले लिया तथा अनेक प्रकार से आश्वस्त किया । महाराज ! इन तीनों तिथियों का सम्पूर्ण माहात्म्य कौन वर्णन कर सकता है । मैंने संक्षेप में कहा है । इन तीनों तिथियों को जल, अन्न, वस्त्र, स्वर्णपात्र, छत्र आदि दान करनेवाले पुरुष इन्द्रलोक को प्राप्त करते हैं । (अध्याय १००) Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe