January 9, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय १०८ से १०९ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय १०८ से १०९ वैष्णव एवं शैव नक्षत्र पुरुष-व्रतों का विधान राजा युधिष्ठिर ने पूछा — यदुसत्तम ! पुरुष और स्त्रियों को उत्तम रूप किस कर्म के करने से प्राप्त होता है ? आप सर्वाङ्गसुन्दर श्रेष्ठ रूप की प्राप्ति का उपाय बताइये । भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा — महाराज ! यही बात अरुन्धती ने वसिष्ठजी से पूछी थी और महर्षि वसिष्ठ ने उनसे कहा था — ‘प्रिये ! विष्णु भगवान् की बिना आराधना और पूजन किये उत्तम रूप प्राप्त नहीं हो सकता । जो पुरुष अथवा स्त्री उत्तम रूप, ऐश्वर्य और संतान की अभिलाषा करे, उसे नक्षत्र-पुरुष-रूप भगवान् विष्णु का पूजन करना चाहिये ।’ इस पर अरुन्धती ने नक्षत्र-पुरुष-व्रत का विधान पूछा । वसिष्ठजी ने कहा — ‘प्रिये ! चैत्र मास से लेकर भगवान् के पाद आदि अङ्ग का उपवासपूर्वक पूजन करे । स्नानादि से पवित्र होकर नक्षत्र-पुरुष-रूपी भगवान् विष्णु की प्रतिमा बनाकर उनके पाद से सिर तक के अङ्ग का इस विधि से पूजन करे । मूल नक्षत्र में दोनों पैर, रोहिणी नक्षत्र में दोनों जंघा, अश्विनी में दोनों घुटनों, आषाढ़ में दोनों ऊरुओं, दोनों फाल्गुनी में गुह्यस्थान, कृत्तिका में कटिप्रदेश, दोनों भाद्रपदाओं में पार्श्वभाग और टखना, रेवती में दोनों कुक्षि, अनुराधा में वक्षःस्थल, धनिष्ठा में पीठ, विशाखा में दोनों भुजाएँ, हस्त में दोनों हाथ, पुनर्वसु में अंगुली, आश्लेषा में नख, ज्येष्ठा में ग्रीवा, श्रवण में कर्ण, पुष्य में मुख, स्वाती में दाँत, शतभिषा में मुख, मघा में नासिका, मृगशिरा में नेत्र, चित्रा में ललाट, भरणी में सिर और आर्द्रा में केश का पूजन करे । उपवास के दिन तैलाभ्यङ्ग न करे । नक्षत्र के देवताओं और नक्षत्रराज चन्द्रमा का भी प्रति नक्षत्र में पूजन करे और विद्वान् ब्राह्मण को भोजन कराये । यदि व्रत में अशौच आदि हो जाय तो दूसरे नक्षत्र में उपवास कर पूजन करे । इस प्रकार माघ मास में व्रत पूरा हो जानेपर उद्यापन करे । अपनी शक्ति के अनुसार सुवर्ण का नक्षत्रपुरुष बनाकर उसे अलंकृत करे, एक उत्तम शय्या पर प्रतिमा स्थापित करे और ब्राह्मण-दम्पति को शय्या पर बैठाकर वस्त्राभूषण आदि से उनका पूजन कर सप्तधान्य, सवत्सा गौ, छतरी, जूता, घृतपत्र और दक्षिणासहित वह नक्षत्रपुरुष की प्रतिमा उन्हें दान कर दे । श्रद्धापूर्वक इस व्रत करने से सर्वाङ्गसुन्दर रूप, मन की प्रसन्नता, आरोग्य, उत्तम संतान, मधुर वाणी और जन्म-जन्मान्तर तक अखण्ड ऐश्वर्य प्राप्त होता है और सभी पाप निवृत्त हो जाते हैं । इतनी कथा कहकर भगवान् श्रीकृष्ण बोले — ‘महाराज ! इस प्रकार नक्षत्रपुरुष-व्रत का विधान वसिष्ठजी ने अरुन्धती को बतलाया । वही मैंने आपको सुनाया। जो इस विधि से नक्षत्ररूप भगवान् का पूजन करते हैं, वे अवश्य ही उत्तम रूप पाते हैं ।’ राजा युधिष्ठिर ने पुनः पूछा — भगवन् ! शिव भक्त के कल्याण के लिये आप शैव-नक्षत्र-पुरुष-व्रत का विधान बतायें । भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा — महाराज ! शैव-नक्षत्र-पुरुष-व्रत के दिन भगवान् शंकर के अङ्ग का पूजन और उपवास अथवा नक्तव्रत करना चाहिये । फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में जब हस्त नक्षत्र हो, उस दिन से शैवनक्षत्रपुरुष-व्रत का नियम ग्रहण करना चाहिये और रात में भगवान् शिव का पूजन करना चाहिये । हस्त आदि सत्ताईस नक्षत्रों में भगवान् शंकर के सत्ताईस नामों से उनके चरण से लेकर सिर तक की क्रमशः अङ्ग-पूजा करनी चाहिये । रात्रि के समय तैल-क्षाररहित भोजन करे । प्रतिनक्षत्र में सेरभर शालि-चावल और घृतपात्र ब्राह्मण को प्रदान करे । दो नक्षत्र एक दिन हो जायें तो दो अङ्गों का दो नामों से एक ही दिन पूजन करें । इस प्रकार व्रत कर पारणा में ब्राह्मणों को भोजन, दक्षिणा आदि से संतुष्ट करना चाहिये । सुवर्ण की शिव-पार्वती को प्रतिमा बनाकर उसे उत्तम शव्या पर स्थापित करे । बाद में सभी उपचारों से पूजनकर कपिला गौ, बर्तन, छत्र, चामर, दर्पण, जूता, वस्त्र, आभूषण, अनुलेपन आदि सहित वह प्रतिमा ब्राह्मण को निवेदित कर दे । बाद में प्रदक्षिणा कर विसर्जन करे और शय्या, गौ आदि सब सामग्री ब्राह्मण के घर पहुँचा दे । महाराज ! दुश्शील, दाम्भिक, कुतार्किक, निन्दक, लोभी आदि को यह व्रत नहीं बताना चाहिये । शान्त-स्वभाव, सद्गुणी, शिवभक्त इस व्रत के अधिकारी हैं । इस व्रत को करने से महापातक भी निवृत्त हो जाते हैं । जो स्त्री पति की आज्ञा प्राप्त कर इस व्रत को सम्पन्न करती है, उसे कभी इष्ट-वियोग नहीं होता । जो इस व्रत के माहात्म्य को पढ़ता है अथवा श्रवण करता है उसके भी पितरों का नरक से उद्धार हो जाता है । (अध्याय १०८-१०१) Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe