भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय ११२ से ११३
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय ११२ से ११३
वृन्ताक-त्याग एवं ग्रह-नक्षत्र व्रत की विधि

भगवान् श्रीकृष्ण बोले — महाराज ! अब मैं वृन्ताक (बैगन)— के त्याग की विधि बता रहा हूँ । व्रती को चाहिये कि एक वर्ष, छः मास अथवा तीन मास वृन्ताक का त्याग कर उद्यापन करे । उसके बाद संकल्पपूर्वक भरणी अथवा मघा नक्षत्र में उपवासकर एक स्थण्डिल बनाकर उसपर अक्षत पुष्पों से यमराज का तथा उनके परिकरों का आवाहनकर गन्ध, पुष्प, नैवेद्य आदि उपचारों से यम, काल, नील, चित्रगुप्त, वैवस्वत, मृत्यु तथा परमेष्ठी — इन पृथक्-पृथक् नामों से विधिपूर्वक पूजन करे ।om, ॐ तदनत्तर अग्निस्थापन कर तिल और घी से इन्हीं नाम-मन्त्रों के द्वारा हवन करे । तदनन्तर स्विष्टकृत् एवं प्रायश्चित्त होम करे । आभूषण, वस्त्र, छाता, जूता, काला कम्बल, कमला बैल, काली गाय और दक्षिणा के साथ सोने का बना हुआ वृन्ताक ब्राह्मण को दान कर दे और अपनी शक्ति के अनुसार ब्राह्मण-भोजन कराये । ऐसा करने से पौण्डरीक-यज्ञ का फल प्राप्त होता है । साथ ही व्रती को सात जन्म तक यम का दर्शन नहीं करना पड़ता और वह दीर्घ समय तक स्वर्ग में समादृत होकर निवास करता है ।

भगवान् श्रीकृष्ण ने पुनः कहा — महाराज ! अब मैं ग्रह-नक्षत्र-व्रत की विधि बतलाता हूँ, जिसके करने से सभी क्रूर ग्रह शान्त हो जाते हैं और लक्ष्मी, धृति, तुष्टि तथा पुष्टि की प्राप्ति होती है । जिस रविवार को हस्त नक्षत्र हो उस दिन भगवान् सूर्य का पूजन कर नक्तव्रत करना चाहिये । इस नक्तव्रत को सात रविवार तक भक्तिपूर्वक करके अन्त में भगवान् सूर्य की सुवर्णमयी प्रतिमा बनाकर ताम्रपत्र में स्थापित करे । फिर उसे घी से स्नान कराकर रक्त चन्दन, रक्त पुष्प, रक्त वस्त्र, धूप, दीप आदि से पूजनकर लड्डु का भोग लगाये । जूता, छाता, दो लाल वस्त्र और दक्षिणा के साथ वह प्रतिमा ब्राह्मण को दें । इस व्रत को करने से आरोग्य, सम्पत्ति और संतान की प्राप्ति होती है ।

चित्रा नक्षत्र से युक्त सोमवार से आरम्भ कर सात सोमवार तक नक्तव्रत करके अन्त में चन्द्रमा की चाँदी की प्रतिमा बनाकर, चाँदी अथवा काँसे के पात्र में स्थापित कर श्वेत पुष्प, श्वेत वस्त्र आदि से उनका पूजन करे । दध्योदन का भोग लगाकर जूता, छाता तथा दक्षिणासहित वह मूर्ति ब्राह्मण को प्रदान करे । यथाशक्ति ब्राह्मण-भोजन कराये, इससे चन्द्रमा प्रसन्न होते हैं । उनके प्रसन्न होने से दूसरे सभी ग्रह प्रसन्न हो जाते हैं ।

स्वाती नक्षत्र से युक्त भौमवार से आरम्भ कर सात भौमवार तक नक्तव्रत करके अन्त में सुवर्ण की भौम की प्रतिमा बनाकर ताम्रपत्र में स्थापित कर रक्त चन्दन, रक्त वस्त्र आदि से पूजनकर घी युक्त कसार का भोग लगाकर सब सामग्री ब्राह्मण को दे । इसी प्रकार विशाखा युक्त बुधवार को बुध का पूजन कर उद्यापन में स्वर्णमयी बुध की प्रतिमा ब्राह्मण को प्रदान कर दे । अनुराधा नक्षत्र से युक्त बृहस्पतिवार के दिन से सात बृहस्पतिवार तक नक्तव्रत करके अन्त में सुवर्ण की देवगुरु बृहस्पति की मूर्ति बनाकर सुवर्णपात्र में स्थापित करे तदनन्तर गन्ध, पीत पुष्प, पीत वस्त्र, यज्ञोपवीत आदि से उनकी पूजा करके खाँड़ का भोग लगाकर सब सामग्री एवं मूर्ति ब्राह्मण को प्रदान कर दे । इसी प्रकार ज्येष्ठा युक्त शुक्रवार को व्रत का आरम्भ कर सात शुक्रवार तक नक्तव्रत करके अन्त में सुवर्ण की शुक्र की प्रतिमा बनाकर चाँदी अथवा बाँस के पात्र में स्थापित कर श्वेत चन्दन, श्वेत वस्त्र आदि से पूजन कर घी और पायस का भोग लगाये । सब पदार्थ एवं प्रतिमा ब्राह्मण को प्रदान करे ।

इसी विधि से मूल नक्षत्र युक्त शनिवार से आरम्भ कर सात शनिवार तक नक्तव्रत करके अन्त में शनि, राहु और केतु का पूजन करना चाहिये और तिल तथा घी से ग्रहों के नाम-मन्त्रों से हवन करके नवग्रहों की समिधाओं से प्रत्येक ग्रह की क्रम से एक सौ आठ अथवा अट्ठाईस बार आहुति दे । शनैशर आदि की प्रतिमा लौह अथवा सुवर्ण की बनाये । कृशन्न का भोग लगाकर सब सामग्री सहित वे प्रतिमाएँ ब्राह्मण को प्रदान कर दे । इससे सभी ग्रहों की पीड़ा शान्त हो जाती हैं । इस व्रत को विधिपूर्वक करनेसे क्रूर ग्रह भी सौम्य एवं अनुकूल हो जाते हैं और उसे शान्ति प्रदान करते हैं ।
(अध्याय ११२-११३)

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