भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ५
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(प्रतिसर्गपर्व — द्वितीय भाग)
अध्याय – ५
वरण करने योग्य वर
(हरिदास कन्या महादेवी की कथा)

सूत जी बोले — भृगुश्रेष्ठ, महाभाग ! प्रसन्न होकर उस वैताल ने ज्ञान-निधि उस राजा विक्रमादित्य से कहा —
महाराज ! उज्जयिनी पुरी में चन्द्रवंश में उत्पन्न महाबल नामक एक राजा राज कर रहा था, जो वेद शास्त्रों में निष्णात था । हरिदास नामक उसका सेवक सदैव अपने स्वामी का कार्य करता था । भक्तिमाला उसकी पत्नी का नाम था, जो सदैव साधु-सेवा में निरत रहती थी । उस पत्नी से महादेवी नामक एक कन्या उत्पन्न हुई, जो कमल की भाँति नेत्रवाली, रूपवती, समस्त विद्याओं में निपुण थी । om, ॐउसने हरिदास के कहा — तात ! मेरी एक बात सुनो ! मुझसे अधिक गुण सम्पन्न जो पुरुष हो, उसे ही मुझे समर्पित करना । पिता ने स्वीकार किया, किन्तु उसी समय राजा ने उन्हें बुलवाया, वे राजसभा में चले गये ।
राजा ने उन्हें प्रणाम करके कहा — विप्र हरिदास ! तैलङ्गाधीश्वर राजा हरिश्चन्द्र के यहाँ जाकर उनका कुशल क्षेम जानकर शीघ्र मुझे बताओ । यह सुनकर उस ब्राह्मण ने राजा हरिश्चन्द्र के यहाँ पहुँच कर राजा महाबल का कुशल मंगल वर्णन किया, जिसे सुनकर राजा हरिश्चन्द्र, जो महाबल राजा के श्वसुर थे, बार-बार हर्ष में निमग्न होने लगे । तदुपरान्त उन्होंने हरिदास से पूछा कि — कलि का आगमन कब होगा ?

हरिदास ने कहा — न्यूह के समय में, जिस समय वे राजसिंहासन पर स्थित होंगे उस समय कलि का आगमन होगा । कलि के समय में व्रह्मा के मुख से निःसृत ओंकार ही सत्यपूजित और (संस्कृत मिश्र) दूसरी भाषा प्रधान होगी, जो अपने अनेक रूपों से लोगों को मुग्ध करेगी । कलि का हित उसी से सम्पन्न होगा, क्योंकि वह यम-लोक का भी हित चाहेगी । जिस समय वेदोक्त धर्म विपरीत दिखायी दे, उसे कलिराज्य जानना चाहिए, क्योंकि म्लेच्छ ही उसके प्रिय होंगे, ऐसा कहा गया है । अधर्म मित्र की सहायता से कलि में समस्त देववृन्द न रहने के समान रहेंगे । पाप की मृषा (झूठ)— नामक भार्या, दुःख नामक पुत्र, और दुर्गति नामक अर्धांगिनी प्रत्येक गृहों में निवास करेंगी । क्रोध के वशीभूत सभी राजा, काम के सेवक समस्त ब्राह्मण, लोभ के वशीभूत धनिकवर्ग और महत्त्व शूद्रों को प्राप्त होगा । स्त्रियाँ लज्जाहीन, सेवक स्वामी के घातक होंगे । कलि के समय में पृथिवी प्रायः फलहीन होगी । उस समय जो एक मात्र भगवान् की शरण में रहेगा वही प्रसन्न दिखायी देगा ।

इसे सुनकर राजा हरिश्चन्द्र उस ब्राह्मण को मन इच्छित दक्षिणा प्रदान करके अपने महल चले गये और ब्राह्मण अपने शिविर में आये । उसी समय एक बुद्धिकोविद नामक ब्राह्मण ने उस विद्वान् हरिदास को अपनी विद्या (का चमत्कार) दिखाना आरम्भ किया — शीघ्रगामी नामक उत्तम विमान को जिसे देवी ने प्रदान किया था, मन्त्रजप कर प्रकट किया । वह कामप्रद एवं आश्चर्यप्रद भी था । उस पर उस ब्राह्मण को बैठाकर इस भाँति दिखाया था, जिससे वह अपनी कन्या के निमित्त उस पर मुग्ध हो गया । पश्चात् अपनी कन्या के लिए उसका वरण करके वह अपनी पुरी को लौट आया ।

हरिदास का मुकुन्द नामक पुत्र, अध्ययन के उपरान्त अपने गुरुजी से गुरुदक्षिणा देने के लिए पूछा । गुरुजी ने अपने शिष्य से कहा — मुकुन्द मेरी बात सुनो ! मेरे इस विद्वान् पुत्र धीमान् के लिए अपनी भगिनी को दिला दो । इसे स्वीकार करके मुकुन्द अपने घर आये ।

उसी समय महादेवी ने वामन नामक एक ब्राह्मण को, जो द्रोणाचार्य का शिष्य एवं शब्दवेधी वाण चलाने में निपुण था, दक्षिणा समेत उसकी पूजा करके ताम्बूल द्वारा उसका वरण कर लिया ।

जिस समय वे तीनों गुण-निपुण ब्राह्मण वहाँ विवाह के लिए उपस्थित हुए, उस समय दुर्भाग्यवश किसी राक्षस ने मोहित होकर उस कन्या का अपहरण करके विंध्याचल पर्वत को प्रस्थान किया । उपरान्त वे विप्रवृन्द कामपीड़ित होकर अत्यन्त दुःखी होने के नाते विलाप करने लगे । उस समय धीमान् नामक एक विद्वान् ज्योतिषी ने उन लोगों से कहा — विंध्याचल पर्वत पर एक राक्षस के अधीन वह स्त्री वर्तमान है । इसे सुनकर बुद्धिकोविद ने उन दोनों ब्राह्मणों को भी अपने विमान पर बैठाकर विन्ध्याचल पर्वत पर पहुँचाया । वहाँ उस धनुर्धारी ने धनुष पर बाण चढ़ाकर उस राक्षस का निधन कर दिया । पश्चात् वे सब कन्या समेत विमान द्वारा उज्जयिनी पहुँच गये । वहाँ काम-पीड़ित होकर वे तीनों विप्र आपस में उस स्त्री के निमित्त विवाद करने लगे ।

राजन् ! कृपया आप यह बताइये कि वह कन्या किसकी स्त्री होने के योग्य है ।

सूत जी बोले — इसे सुनकर राजा विक्रम ने नम्रतापूर्वक उस रुद्रसेवक वैताल से कहा — समस्त वृतान्त जानकर जो उस कन्या से कहा वह उसके पिता के समान एवं जिसके विमान द्वारा वह प्राप्त हुई वह भ्राता के समान हुआ । अतः जो राक्षस का वध करके उसके लिए इच्छुक था वही कन्या के साथ सम्बन्ध स्थापित करने के योग्य हुआ ।
(अध्याय ५)

See Also :-

1.  भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१६
2. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १९ से २१
3. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व द्वितीय – अध्याय १९ से २१

4. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय २०
5. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व प्रथम – अध्याय ७
6. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १
7. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय २
8. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ३
9. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ४

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