December 25, 2018 | Leave a comment भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १२ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (प्रतिसर्गपर्व — द्वितीय भाग) अध्याय – १२ किये गये कर्मों का फल अवश्य भोगना पड़ता है (ब्राह्मण हत्या कथा) शौनक ने कहा — वैताल ने हँसकर राजा से कहा — राजन् ! चूड़ापुर में चूड़ामणि नामक राजा राज कर रहा था । वेद एवं वेदाङ्ग निष्णात देवस्वामी उसका गुरु था । विशाल नेत्र वाली उसकी पत्नी सदैव पतिधर्म का ही पारायण करती थी । उस सुन्दरी ने पुत्र की कामन से शिव जी की उपासना की । भगवान् रुद्र जी के वरदान द्वारा उसके हरिस्वामी नामक ख्यातिप्राप्त पुत्र हुआ, जो कामदेव के समान सुन्दर बली एवं देवांश युक्त था । वह सम्पूर्ण सम्पत्ति से युक्त होकर देवता के समान पृथ्वी पर सुखी जीवन व्यतीत करने लगा । रूपलावण्यका नामक उसकी पत्नी थी । नृप ! वह देवाङ्गना थी, देवल के शाप से उसके लड़के से उत्पन्न हुई थी । उस हरे-भरे वसन्त के समय में एक दिन वह सुन्दरी अपने पति के साथ महल में मृदुशय्या पर शयन कर रही थी । उस समय सुकल नामक एक गन्धर्व उसके सौन्दर्य पर मुग्ध होकर उसका अपहरण करके अपने विमान पर बैठाकर उसे अपने नगर ले गया । उसके पति ने जागने पर घबड़ा कर अपनी पत्नी को खोजने का प्रयास किया । उसके न मिलने पर विह्वल होकर वह देश का परित्याग कर जंगल चला गया । वहाँ जाकर वह सभी विषयों के त्यागपूर्वक (संन्यास लेकर) भगवान् का ध्यान करने लगा । एक बार खीर खाने की इच्छा से वह किसी ब्राह्मण के घर क्षुधापीडित होकर पहुँचा । वहाँ से खीर लाकर एक वट वृक्ष के नीचे बैठ गया पश्चात् उस पायस को उसी वृक्ष पर रख कर नदी में स्नानार्थ चला गया । राजन् ! उसी बीच किसी सर्प ने उसे अपने विष से दूषित कर दिया । अनन्तर उस संन्यासी को उसका भक्षण करने से मद (नशा) होने लगा । विष की व्यथा से व्याकुल होकर उसने उस व्राह्मण से कहा कि उसी ब्राह्मण ने खीर में विष मिला दिया है । अतः दुष्ट ! मैं प्राण त्याग कर रहा हूँ, तुम्हें ब्रह्महत्या का पाप भोगना पड़ेगा । इतना कहने के उपरांत वह प्राण परित्याग करके शिवलोक जाकर वहां रूप एवं तेज युक्त देवी की प्राप्ति कर सुख का अनुभव करने लगा । इतना कह कर वैताल ने राजा से कहा — उनमें ब्रह्महत्या का भागी कौन हुआ ? मुझे बताने की कृपा कीजिये । राजा ने कहा — साँपों में विष का होना स्वाभाविक है और अज्ञान वश उसने उसे दूषित किया था, इसीलिए वह दोषी अवश्य है, किन्तु ब्रह्महत्या का भागी नहीं तथा वह ब्राह्मण दुर्भाग्यवश उस भूखे ब्राह्मण संन्यासी को भिक्षा प्रदान किया है, ऐसा करके उसने अपने कुलधर्म की रक्षा ही की है अतः उसे भी ब्रह्महत्या नहीं हो सकती । मनुष्यों को सर्वदा अपने किये हुए पाप-कर्म का फल भोगना ही पड़ता है । ब्राह्मण द्वारा अपमानित होकर उस ब्राह्मण के यहाँ विष मिश्रित भोजन प्राप्त कर उसके भक्षण करने से अह अतिथि आत्मत्याग किये होता तो वह ब्राह्मण ब्रह्महत्या का भागी होता । उसने दैव (भाग्य) वश आत्मत्याग किया अतः वह ब्राह्मण व्रह्महत्या का भागी नहीं है । जो मनुष्य उस बात की चर्चा करते हुए यह कहेंगे कि ब्रह्महत्या तुमने की है, उन्हीं न्यायभ्रष्ट मनुष्यों को वह ब्रह्महत्या लगेगी । (अध्याय १२) See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१६ 2. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १९ से २१ 3. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व द्वितीय – अध्याय १९ से २१ 4. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय २० 5. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व प्रथम – अध्याय ७ 6. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १ 7. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय २ 8. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ३ 9. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ४ 10. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ५ 11. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ६ 12. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ७ 13. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ८ 14. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ९ 15. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १० 16. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ११ Related