December 25, 2018 | Leave a comment भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १६ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (प्रतिसर्गपर्व — द्वितीय भाग) अध्याय – १६ अधिक साहसी कौन ? कामावरूथिन्याख्य वैश्य कन्या कथा सूत जी बोले — उस वैताल ने पुनः ज्ञान निपुण उस राजा से कहा — दक्षिण प्रदेश में राजा चन्द्रशेखर की राजधानी है । जिसमें रत्नदत्त नामक वैश्य जो धर्मज्ञ एवं धन धान्य से सम्पन्न था निवास करता था । कामावरूथिनी नामक परम सुन्दरी कन्या उसके उत्पन्न हुई । उसके उत्तम सौन्दर्य को देखकर उस वैश्य ने राजा से कहा — महाराज ! मेरी पुत्री परम सुन्दरी है, जिसके लिए देवता भी लालायित रहते हैं । कृपासिन्धो ! आप उसे स्वीकार करे, क्योंकि ब्रह्मा ने आप के अनुरूप ही उसकी रचना की है । इसे सुनकर राजा चन्द्रशेखर ने अपने विदुर नामक मंत्री से कहा — महामते ! उसका सौन्दर्य देखकर आप मुझसे शीघ्र उसका यथायोग्य वर्णन करो । इतना कहकर राजा चन्द्रशेखर अपने निवास भवन चले गये । श्यामला नामक उनकी पत्नी ने राजा का आगमन जानकर धूप, दीप, एवं पुष्पादि से उनकी यथोचित पूजा सुसम्पन्न की । उसी समय बाघ से पीड़ित होकर किसी गौ ने अपने रम्भाने वाले शब्द के द्वारा ऊँचे स्वर से विलाप करना आरम्भ किया । उसे सुनकर राजा हाथ में खड्ग लेकर वहाँ पहुँच गया । शीघ्रता से उस बाघ का वध करके वह राजा प्रसन्नता प्रकट कर रहा था कि उसी बीच मुकुल नामक दानव उस बाघ के शरीर से अपने रूप की प्राप्ति करके नम्रतापूर्वक राजा चन्द्रशेखर से कहने लगा — नाथ ! तुम्हारे द्वारा मुक्ति प्राप्तकर मैं वरुण के गृह जा रहा हूँ । प्रह्लाद के शाप प्रदान करने से मुझे बाघ की देह प्राप्त हुई थी । फिर वह दैत्य परिक्रमा करके प्रह्लाद के समीप चला गया और राजा भी अपने महल में पहुँच कर परमानन्द में निमग्न होते हुए शयन किये । प्रातः काल प्रबोधित होने (जगाये जाने) पर राजा राजसभा में आये । उधर राजा के कहने पर वह मंत्री कामादरूथिनी नामक, उस कन्या के पास जाकर उस दिव्य सौन्दर्य को देखकर अपने मन में विचार करने लगा कि इस रूप को देखकर राजा अवश्य मोहित हो जायगा । अतः उसने राजा से कहा— वह कन्या आप के योग्य नहीं है । राजा उसकी बात स्वीकार करके उसके साथ विवाह नहीं किया । पश्चात् उस उत्तमाङ्गी कन्या का पाणिग्रहण राजा रत्नदत्त के बलभद्र नामक सेनापति के साथ सम्पन्न हुआ । एक बार राजा उस कामावरूथिनी को देखकर कामबाण से मुग्ध होकर पृथिवी पर गिर पड़े ! उस समय सेनापति ने शीघ्र राजा को पालकी में बैठाकर राजसभा में पहुँचाया । वहाँ चेतना आने पर राजा ने प्रसन्नतया सेनापति से कहा — यह सुन्दरी किसकी पत्नी एवं कहाँ उत्पन्न हुई है ? इसे सुनकर बलभद्र ने नम्रता प्रकट करते हुए कहा — यह सुन्दरी मेरी पत्नी एवं रत्नदत्त की पुत्री है, राज्य के भंग हो जाने के भय से मंत्री ने उसके रूप का वर्णन आप से नहीं किया । किन्तु राजन् ! मुझ सेवक की पत्नी सदैव आप के योग्य ही है अतः कृपानिधे ! उसका ग्रहण करें मैं आपकी इच्छापूर्ति करने को तैयार हूँ । इतना कहने पर राजा क्रोध के नाते रक्तनेत्र करके कहने लगा — यह सुन्दरी धर्मतः तुम्हारी ही पत्नी है, इसलिए यदि मैं इस देवी का ग्रहण करता हूँ तो यमदूत मुझे नरक में गिरा देंगे उस समय मुझे अत्यन्त दुःख का अनुभव करना पड़ेगा । ऐसा कह राजा उसकी वियोग अग्नि से पीड़ित होकर शीघ्र प्राण-परित्याग करके धर्मपुर पहुँच गया । इतना कहकर वैताल ने राजा से कहा — राजा के निधन होने पर उनकी पत्नी रानी सती हो गई और सेनापति भी उसी समय वहाँ भस्म हो गया । पश्चात् कामावरूथिनी देवी ने भी अपनी देह को भस्म करके उन सब के साथ में स्वर्गपुरी को प्रस्थान किया । किन्तु, इन सब में किसका पुण्य अधिक है ? राजा ने वैताल से कहा — राजा के लिए सेवक का मरण प्राप्त होना धर्मतः अधिक {श्रेष्ठ) है और पतिव्रता का पति के साथ प्राण परित्याग करना उचित ही है एवं सेवक ने राजा को अपनी सुन्दरी स्त्री प्रदान किया, किन्तु धर्मभय के नाते राजा कामुक होने पर भी उसे स्वीकार नहीं किया, प्रत्युत काम को जीतकर धर्म का पालन किया । अतः राजा का धर्म अधिक है । (अध्याय १६) See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१६ 2. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १९ से २१ 3. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व द्वितीय – अध्याय १९ से २१ 4. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय २० 5. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व प्रथम – अध्याय ७ 6. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १ 7. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय २ 8. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ३ 9. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ४ 10. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ५ 11. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ६ 12. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ७ 13. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ८ 14. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ९ 15. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १० 16. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ११ 17. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १२ 18. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १३ 19. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १४ 20. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १५ Related