December 25, 2018 | Leave a comment भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व प्रथम – अध्याय ३ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (प्रतिसर्गपर्व — प्रथम भाग) अध्याय – ३ द्वापरयुग के चन्द्रवंशीय राजाओं का वृतान्त महर्षि शौनक ने पूछा — लोमहर्षणजी ! आप यह बताइये कि महाराज संवरण इनकी विस्तृत कथा महाभारत के आदिपर्व (अ॰ ९४)- में विस्तार से, किन्तु १७२ तक प्रायः आती रही है। किस समय पृथ्वीपर आये और उन्होंने कितने समय तक राज्य किया तथा द्वापर में कौन-कौन राजा हुए, यह सब भी बताये ।सूतजी बोले — महर्षे ! महाराज संवरण भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को शुक्रवार के दिन मुनियों के साथ प्रतिष्ठानपुर (झूँसी) -में आये । विश्वकर्मा ने वहाँ एक ऐसे विशाल प्रासाद का निर्माण किया, जो ऊँचाई में आधा कोस या डेढ़ किलोमीटर के लगभग था । महाराज संवरण ने पाँच योजन या बीस कोस के क्षेत्र में प्रतिष्ठानपुर को अत्यन्त सुन्दरता एवं स्वच्छतापूर्वक बसाया । एक ही समय में (चन्द्रमा के पुत्र) बुध के वंश में उत्पन्न प्रसेन और यदुवंशीय राजा सात्वत शूरसेन मधुरा (मथुरा) -के शासक हुए । म्लेच्छवंशीय श्मश्रुपाल (दाढ़ी रखनेवाला) मरुदेश (अरब, ईरान और ईराक)- के शासक हुए । क्रमशः प्रजाओं के साथ राजाओं की संख्या बढती गयी । राजा संवरण ने दस हजार वर्षों तक राज्य किया । इसके बाद उनके पुत्र अर्चाज्ञ हुए, उन्होंने भी दस हजार वर्षों तक शासन किया । उनके पुत्र सूर्यजापी ने पिता के शासनकाल के आधे समय तक राज्य किया । उनके पुत्र सौरयज्ञपरायण सूर्ययज्ञ हुए । उनके पुत्र आदित्यवर्धन, आदित्यवर्धन के पुत्र द्वादशात्मा और उनके पुत्र दिवाकर हुए । इन्होंने भी प्रायः अपने पिता से कुछ कम ही दिनों तक राज्य किया । दिवाकर के पुत्र प्रभाकर और प्रभाकर के पुत्र भास्वदात्मा हुए । भास्वदात्मा के पुत्र विवस्वज्ज्ञ, उनके पुत्र हरिदश्वार्चन और उनके पुत्र वैकर्तन हुए । वैकर्तन के पुत्र अर्केष्टिमान्, उनके पुत्र मार्तण्डवत्सल और मार्तण्डवत्सल के पुत्र मिहिरार्थ तथा उनके उनके अरुणपोषण हुए । अरुणपोषण के पुत्र द्युमनि, उनके पुत्र तरणीयज्ञ और उनके पुत्र मैत्रेष्टिवर्धन हुए । उनके पुत्र चित्रभानुर्जक, उनके वैरोचन और वैरोचन के पुत्र हंसन्यायी हुए । उनके पुत्र वेदप्रवर्धन, उनके पुत्र सावित्र और इनके पुत्र धनपाल हुए । धनपाल के पुत्र म्लेच्छहन्ता, म्लेच्छहन्ता के आनन्दवर्धन, इनके धर्मपाल और धर्मपाल के पुत्र ब्रह्मभक्त हुए । उनके पुत्र ब्रह्मेष्टिवर्धन, उनके पुत्र आत्मप्रपूजक हुए और उनके परमेष्ठी नामक पुत्र हुए । परमेष्ठी के पुत्र हैरन्यवर्धन, उनके धातृयाजी, उनके विधातृप्रपूजक और इनके पुत्र द्रुहिणक्रतु हुए । उनके पुत्र वैरंच्य, उनके पुत्र कमलासन और कमलासन के पुत्र शमवर्ती हुए । उनके पुत्र श्राद्धदेव और उनके पितृवर्धन, उनके सोमदत्त और सोमदत्त के पुत्र सौमदत्ति हुए । सौमदत्ति के पुत्र सोमवर्धन, उनके अवतंस, अवतंस के पुत्र प्रतंस और प्रतंस के पुत्र परातंस हुए । परातंस के पुत्र अयतंस, उनके पुत्र समातंस, उनके पुत्र अनुतंस और अनुतंस के पुत्र अधितंस हुए । अधितंस के अभीतंस, उनके पुत्र समुत्तंस, उनके तंस और तंस के पुत्र दुष्यन्त हुए ।महाराज दुष्यन्तकी पत्नी शकुन्तला से भरत नाम के पुत्र हुए, जो सदा सूर्यदेव की पूजा में तत्पर रहते थे । महाराज भरत ने महामाया भगवती की कृपा से सम्पूर्ण पृथ्वी पर छत्तीस हजार वर्षों तक चक्रवर्ती सम्राट के रूप में राज्य किया और उनके पुत्र महाबल हुए। महाबल के पुत्र भरद्वाज हुए । भरद्वाज के पुत्र मन्युमान् हुए, जिन्होंने अट्ठारह हजार वर्षों तक पृथ्वी पर शासन किया । उनके पुत्र बृहत्क्षेत्र, उनके पुत्र सुहोत्र और सुहोत्र के पुत्र वीतिहोत्र हुए, इन्होंने दस हजार वर्षों तक राज्य किया वीतिहोत्र के पुत्र यज्ञहोत्र, यज्ञहोत्र के पुत्र शक्रहोत्र हुए । इन्द्रदेव ने प्रसन्न होकर इन्हें स्वर्ग किया । उस समय अयोध्या में महाबली प्रतापेन्द्र नामक राजा हुए, उन्होंने दस हजार वर्षों तक भारत पर शासन किया । इनके पुत्र मण्डलीक । मण्डलीक के पुत्र विजयेन्द्र, विजयेन्द्र के पुत्र धनुर्दीप्त हुए । महाराज शक्रहोत्र इन्द्र की आज्ञा से घृताची के साथ पुनः भूतल पर आये और उन्होंने राजा धनुर्दीप्त को जीतकर पृथ्वी पर शासन किया । शक्रहोत्र के घृताची से हस्ती नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । हस्ती ने ऐरावत हाथी के बच्चे पर आरूढ़ होकर पश्चिम में अपने नाम से हस्तिना नामक नगरी का निर्माण किया । यह दस योजन विस्तृत है तथा स्वर्गङ्गा के तट पर अवस्थित है । वहाँ उन्होंने दस हजार वर्षों तक निवास कर राज्य किया । महाराज हस्ती के पुत्र अजमीढ, अजमीढ के पुत्र रक्षपाल, रक्षपाल के पुत्र सुशम्यर्ण और उनके पुत्र कुरु हुए । उस समय मथुरा में सात्वत-वंश में वृष्णि नाम के महाबली राजा हुए । उन्होंने भगवान् विष्णु के वरदान से पाँच हजार वर्षों तक सम्पूर्ण राज्य को अपने अधीन रखा । राजा वृष्णि के पुत्र निरावृत्ति हुए, निरावृत्ति के पुत्र दशारी, दशारी के पुत्र वियामुन और वियामुन के पुत्र जीमूत और इनके पुत्र विकृति हुए । विकृति के पुत्र भीमरथ, उनके पुत्र नवरथ और नवरथ के दशरथ हुए । उनके पुत्र शकुनि, उनके कुशुम्भ और कुशुम्भ के पुत्र देवरथ हुए । देवरथ के पुत्र देवक्षेत्र, उनके पुत्र मधु और मधु के पुत्र नवरथ और उनके कुरुवत्स हुए । इन सभी लोगों ने अपने-अपने पिता के तुल्य वर्षों तक राज्य किया । कुरुवत्स के पुत्र अनुरथ, उनके पुरुहोत्र और पुरुहोत्र के पुत्र विचित्राङ्ग हुए, उनके सात्वतवान् और उनके पुत्र भजमान हुए । उनके पुत्र विदूरथ, उनके सुरभक्त और सुरभक्त के सुमना हुए । इन सभी ने अपने-अपने पिता के तुल्य वर्षों तक राज्य किया । सुमना के पुत्र ततिक्षेत्र, उनके स्वायम्भुव, उनके हरिदीपक और हरिदीपक के देवमेधा हुए । इन सभी ने अपने-अपने पिता के तुल्य वर्षों तक राज्य किया । देवमेधा के पुत्र सुरपाल हुए । द्वापर के तृतीय चरण के समाप्त होने पर देवराज इन्द्र की आज्ञा से आयी सुकेशी नाम की अप्सरा के स्वामी कुरु राजा हुए । इन्होने कुरुक्षेत्र का निर्माण किया जो बीस योजन विस्तृत है । विद्वानों ने उसे पुण्यक्षेत्र बताया है । महाराज कुरु ने बारह हजार वर्षों तक राज्य किया । उनके पुत्र जह्रू, जह्रू के सुरथ और सुरथ के पुत्र विदूरथ हुए । विदूरथ के पुत्र सार्वभौम, इनके जयसेन और उनके पुत्र अर्णव हुए । महाराज अर्णव का शासन क्षेत्र चारों समुद्र तक था और इन्होंने अपने पिता के तुल्य वर्षों तक राज्य किया । अर्णव के पुत्र अयुतायु हुए, जिन्होंने दस हजार वर्षों तक राज्य किया । अयुतायु के पुत्र अक्रोधन, उनके ऋक्ष , उनके पुत्र भीमसेन और भीमसेन के पुत्र दिलीप हुए । इन सभी राजाओं ने अपने-अपने पिता के तुल्य वर्षों तक राज्य किया । दिलीप के पुत्र प्रतीप हुए, इन्होने पाँच हजार वर्षों तक शासन किया । प्रतीप के पुत्र शान्तनु हुए और उन्होंने एक हजार वर्षों तक राज्य किया, उन्हें विचित्रवीर्य नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ, जिन्होंने दो सौ वर्षों तक राज्य किया, उनके पुत्र पाण्डु हुए, उन्होंने पाँच सौ वर्षों तक राज्य किया । उनके पुत्र युधिष्ठिर हुए, उन्होंने पचास वर्षों तक राज्य किया । सुयोधन (दुर्योधन) ने साठ वर्षों तक राज्य किया और कुरुक्षेत्र में (युद्धिष्ठिर् के भाई भीमसेन) के द्वारा उसकी मृत्यु हुई । प्राचीन काल में दैत्यों का देवताओं द्वारा भारी संहार हुआ था । वे ही सब दैत्य शान्तनु राज्य में पुनः भूलोक में उत्पन्न हुए । दुर्योधन की विशाल सेना के भार से परिव्याप्त वसुंधरा इन्द्र की शरण में गयी, तब भगवान् श्रीहरि का अवतार हुआ । सौरि वसुदेव के द्वारा देवकी के गर्भ से उन्होंने अवतार लिया । वे एक सौ पैंतीस वर्षों तक विभिन्न पुराणों में भगवान् श्रीकृष्ण की स्थितिकाल का उल्लेख कुछ अन्तर से प्राप्त होता है, विशेषकर महाभारत, भागवत, हरिवंश, विष्णुपुराण तथा ब्रह्मवैवर्तपुराण और गर्गसंहिता में भी उनका विस्तृत चरित्र प्राप्त होता है । अधिकांश स्थलों पर उनका स्थितिकाल एक सौ पचीस वर्ष ही निर्दिष्ट है। पृथ्वी पर रहकर उसके बाद गोलोक चले गये । भगवान् श्रीकृष्ण का अवतार द्वापर के चतुर्थ चरण के अन्त में हुआ था । इसके बाद हस्तिनापुर में अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित ने राज्य किया । परीक्षित के राज्य करने के बाद उनके पुत्र जनमेजय ने राज्य किया । तदनन्तर उनके पुत्र महाराज शतानीक पृथ्वी के शासक हुए । उनके पुत्र यज्ञदत्त (सहस्त्रानीक) हुए । उनके पुत्र निश्चक्र (निचक्नु) हुए ( इनके शासनकाल में ही गङ्गा हस्तिनापुर के अधिकांश भाग को बहा ले गयीं । अतः इन्होंने कौशाम्बी को राजधानी बनाया, जो प्रयाग से चार योजन पश्चिम थी । (विष्णुपुराण अंश ४ अ० २१)। उनके पुत्र उष्ट्र (उष्ण) -पाल हुए । उनके पुत्र चित्ररथ और चित्ररथ के पुत्र धृतिमान् और उनके पुत्र सुषेण हुए, सुषेण के पुत्र सुनीथ, उनके मखपाल, उनके चक्षु और चक्षु के पुत्र सुखवन्त (सुखावल) हुए । सुखवन्त के पुत्र पारिप्लव हुए । पारिप्लव के पुत्र सुनय, सुनय के पुत्र मेधावी, उनके नृपञ्जय और उनके पुत्र मृदु हुए । मृदु के पुत्र तिग्मज्योती, उनके बृहद्रथ और इनके पुत्र वसुदान हुए । इनके पुत्र शतानीक हुए, उनके पुत्र उदयन, उदयन के अहीनर, अहीनर के निरमित्र तथा निरमित्र के पुत्र क्षेमक हुए । महाराज क्षेमक राज्य छोडकर कलापग्राम चले गये । उनकी मृत्यु म्लेच्छों के द्वारा हुई । नारदजी के उपदेश एवं सत्प्रयास से उनको एक पुत्र हुआ जिसका नाम प्रद्योत हुआ । राजा प्रद्योत ने म्लेच्छ यज्ञ किया, जिसमें म्लेच्छों का विनाश हुआ । (अध्याय ३) See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१६ 2. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १९ से २१ 3. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व द्वितीय – अध्याय १९ से २१ 4. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय २० 5. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व प्रथम – अध्याय १ 6. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व प्रथम – अध्याय २ Related