भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय २६
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(प्रतिसर्गपर्व — द्वितीय भाग)
अध्याय – २६
सत्यनारायण व्रत – कथा में राजा चन्द्रचूड का आख्यान

सूतजी बोले — ऋषियों ! प्राचीन काल में केदारखण्ड के मणिपूरक नामक नगर में चन्द्रचूड नामक एक धार्मिक तथा प्रजावत्सल राजा रहते थे । वे अत्यन्त शान्त-स्वभाव, मृदुभाषी, धीर-प्रकृति तथा भगवान् नारायण के भक्त थे । विन्ध्यदेश के म्लेच्छगण उनके शत्रु हो गये । उस राजा का उन म्लेच्छों से अस्त्र-शस्त्रों द्वारा भयानक युद्ध हुआ । उस युद्ध में राजा चन्द्रचूड की विशाल चतुरङ्गिणी सेना अधिक नष्ट हुई, किन्तु कूट-युद्ध में निपुण मलेच्छों की सेना की क्षति बहुत कम हुई । om, ॐयुद्ध में दम्भी म्लेच्छों से परास्त होकर राजा चन्द्रचूड अपना राष्ट्र छोड़कर अकेले ही वन में चले गये । तीर्थाटन के बहाने इधर-उधर घूमते हुए वे काशीपुरी में पहुँचे । वहाँ उन्होंने देखा कि घर-घर सत्यनारायण की पूजा हो रही है और यह काशी नगरी द्वारका के समान ही भव्य एवं समृद्धिशाली हो गयी है ।
वहाँ की समृद्धि देखकर चन्द्रचूड विस्मित हो गये और उन्होंने सदानन्द (शतानन्द) ब्राह्मण के द्वारा की गयी सत्यनारायण-पूजा की प्रसिद्धि भी सुनी, जिसके अनुसरण से सभी शील एवं धर्म से समृद्ध हो गये थे । राजा चन्द्रचूड भगवान् सत्यनारायण की पूजा करनेवाले ब्राह्मण सदानन्द (शतानन्द) के पास गये और उनके चरणों पर गिरकर उनसे सत्यनारायण-पूजा की विधि पूछी तथा अपने राज्य-भ्रष्ट होने की कथा भी बतलायी और कहा — ‘ब्रह्मन ! लक्ष्मीपति भगवान् जनार्दन जिस व्रत से प्रसन्न होते है, पाप के नाश करनेवाले उस व्रत को बतलाकर आप मेरा उद्धार करें ।’सदानन्द (शतानन्द) ने कहा — राजन् ! श्रीपति भगवान् को प्रसन्न करनेवाला सत्यनारायण नामक एक श्रेष्ठ व्रत है, जो समस्त दुःख-शोकादि का शामक, धन-धान्य का प्रवर्धक, सौभाग्य और सन्तति का प्रदाता तथा सर्वत्र विजय-प्रदायक है । राजन ! जिस किसी भी दिन प्रदोषकाल में इनके पूजन आदि का आयोजन करना चाहिये । कदलीदल के स्तम्भों से मण्डित, तोरणों से अलंकृत एक मण्डप की रचनाकार उसमें पाँच कलशों की स्थापना करनी चाहिये और पाँच ध्वजाएँ भी लगानी चाहिये । व्रती को चाहिये कि उस मण्डप के मध्य में ब्राह्मणों के द्वारा एक रमणीय वेदिका की रचना करवाये । उसके ऊपर स्वर्ण से मण्डित शिलारूप भगवान नारायण (शालग्राम) को स्थापित कर प्रेम-भक्तिपूर्वक चन्दन, पुष्प आदि उपचारों से उनकी पूजा करे । भगवान् का ध्यान करते हुए भूमि पर शयन कर सात रात्रि व्यतीत करे ।

यह सुनकर राजा चन्द्रचूड ने काशी में ही भगवान् सत्यनारायण की शीघ्र ही पूजा की । प्रसन्न होकर रात्रि में भगवान् ने राजा को एक उत्तम तलवार-प्रदान की । शत्रुओं को नष्ट करनेवाली तलवार प्राप्त कर राजा ब्राह्मणश्रेष्ठ सदानन्द को प्रणाम कर अपने नगर में आ गये तथा छः हजार म्लेच्छ दस्युओं को मारकर उनसे अपार धन प्राप्त किया और नर्मदा के मनोहर तट पर पुनः भगवान् श्रीहरि की पूजा की । वे राजा प्रत्येक मास की पूर्णिमा को प्रेम और भक्तिपूर्वक विधि-विधान से भगवान् सत्यदेव की पूजा करने लगे । उस व्रत के प्रभाव से वे लाखों ग्रामों के अधिपति हो गये और साठ वर्षतक राज्य करते हुए अन्त में उन्होंने विष्णुलोक को प्राप्त किया ।
(‘सत्यनारायणव्रत – कथा’ का तृतीय अध्याय)
(अध्याय २६)

See Also :-

1.  भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१६
2. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १९ से २१
3. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व द्वितीय – अध्याय १९ से २१

4. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय २०
5. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व प्रथम – अध्याय ७
6. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १
7. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय २
8. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ३
9. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ४
10. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ५
11. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ६
12. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ७
13. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ८
14. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ९
15. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १०
16. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ११
17. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १२
18. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १३
19. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १४
20. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १५
21. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १६
22. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १७
23. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १८
24. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १९
25. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय २०
26. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय २१
27. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय २२
28. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय २३
29. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय २४
30. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय २५

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