December 26, 2018 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय २६ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (प्रतिसर्गपर्व — द्वितीय भाग) अध्याय – २६ सत्यनारायण व्रत – कथा में राजा चन्द्रचूड का आख्यान सूतजी बोले — ऋषियों ! प्राचीन काल में केदारखण्ड के मणिपूरक नामक नगर में चन्द्रचूड नामक एक धार्मिक तथा प्रजावत्सल राजा रहते थे । वे अत्यन्त शान्त-स्वभाव, मृदुभाषी, धीर-प्रकृति तथा भगवान् नारायण के भक्त थे । विन्ध्यदेश के म्लेच्छगण उनके शत्रु हो गये । उस राजा का उन म्लेच्छों से अस्त्र-शस्त्रों द्वारा भयानक युद्ध हुआ । उस युद्ध में राजा चन्द्रचूड की विशाल चतुरङ्गिणी सेना अधिक नष्ट हुई, किन्तु कूट-युद्ध में निपुण मलेच्छों की सेना की क्षति बहुत कम हुई । युद्ध में दम्भी म्लेच्छों से परास्त होकर राजा चन्द्रचूड अपना राष्ट्र छोड़कर अकेले ही वन में चले गये । तीर्थाटन के बहाने इधर-उधर घूमते हुए वे काशीपुरी में पहुँचे । वहाँ उन्होंने देखा कि घर-घर सत्यनारायण की पूजा हो रही है और यह काशी नगरी द्वारका के समान ही भव्य एवं समृद्धिशाली हो गयी है । वहाँ की समृद्धि देखकर चन्द्रचूड विस्मित हो गये और उन्होंने सदानन्द (शतानन्द) ब्राह्मण के द्वारा की गयी सत्यनारायण-पूजा की प्रसिद्धि भी सुनी, जिसके अनुसरण से सभी शील एवं धर्म से समृद्ध हो गये थे । राजा चन्द्रचूड भगवान् सत्यनारायण की पूजा करनेवाले ब्राह्मण सदानन्द (शतानन्द) के पास गये और उनके चरणों पर गिरकर उनसे सत्यनारायण-पूजा की विधि पूछी तथा अपने राज्य-भ्रष्ट होने की कथा भी बतलायी और कहा — ‘ब्रह्मन ! लक्ष्मीपति भगवान् जनार्दन जिस व्रत से प्रसन्न होते है, पाप के नाश करनेवाले उस व्रत को बतलाकर आप मेरा उद्धार करें ।’सदानन्द (शतानन्द) ने कहा — राजन् ! श्रीपति भगवान् को प्रसन्न करनेवाला सत्यनारायण नामक एक श्रेष्ठ व्रत है, जो समस्त दुःख-शोकादि का शामक, धन-धान्य का प्रवर्धक, सौभाग्य और सन्तति का प्रदाता तथा सर्वत्र विजय-प्रदायक है । राजन ! जिस किसी भी दिन प्रदोषकाल में इनके पूजन आदि का आयोजन करना चाहिये । कदलीदल के स्तम्भों से मण्डित, तोरणों से अलंकृत एक मण्डप की रचनाकार उसमें पाँच कलशों की स्थापना करनी चाहिये और पाँच ध्वजाएँ भी लगानी चाहिये । व्रती को चाहिये कि उस मण्डप के मध्य में ब्राह्मणों के द्वारा एक रमणीय वेदिका की रचना करवाये । उसके ऊपर स्वर्ण से मण्डित शिलारूप भगवान नारायण (शालग्राम) को स्थापित कर प्रेम-भक्तिपूर्वक चन्दन, पुष्प आदि उपचारों से उनकी पूजा करे । भगवान् का ध्यान करते हुए भूमि पर शयन कर सात रात्रि व्यतीत करे । यह सुनकर राजा चन्द्रचूड ने काशी में ही भगवान् सत्यनारायण की शीघ्र ही पूजा की । प्रसन्न होकर रात्रि में भगवान् ने राजा को एक उत्तम तलवार-प्रदान की । शत्रुओं को नष्ट करनेवाली तलवार प्राप्त कर राजा ब्राह्मणश्रेष्ठ सदानन्द को प्रणाम कर अपने नगर में आ गये तथा छः हजार म्लेच्छ दस्युओं को मारकर उनसे अपार धन प्राप्त किया और नर्मदा के मनोहर तट पर पुनः भगवान् श्रीहरि की पूजा की । वे राजा प्रत्येक मास की पूर्णिमा को प्रेम और भक्तिपूर्वक विधि-विधान से भगवान् सत्यदेव की पूजा करने लगे । उस व्रत के प्रभाव से वे लाखों ग्रामों के अधिपति हो गये और साठ वर्षतक राज्य करते हुए अन्त में उन्होंने विष्णुलोक को प्राप्त किया । (‘सत्यनारायणव्रत – कथा’ का तृतीय अध्याय) (अध्याय २६) See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१६ 2. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १९ से २१ 3. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व द्वितीय – अध्याय १९ से २१ 4. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय २० 5. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व प्रथम – अध्याय ७ 6. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १ 7. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय २ 8. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ३ 9. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ४ 10. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ५ 11. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ६ 12. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ७ 13. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ८ 14. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ९ 15. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १० 16. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ११ 17. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १२ 18. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १३ 19. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १४ 20. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १५ 21. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १६ 22. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १७ 23. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १८ 24. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १९ 25. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय २० 26. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय २१ 27. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय २२ 28. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय २३ 29. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय २४ 30. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय २५ Related