भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ३४
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(प्रतिसर्गपर्व — द्वितीय भाग)
अध्याय – ३४
श्रीदुर्गासप्तशती के मध्यमचरित्र का माहात्म
(कात्यायन तथा मगध के राजा महानंद की कथा)

सूतजी बोले — शौनक ! उज्जयिनी नगरी में एक हिंसापरायण मद्य-मांस-भक्षी भीमवर्मा नाम का क्षत्रिय रहता था । वह अतिशय हिंसा एवं अधर्माचरण के कारण भयंकर व्याधियों से ग्रस्त हो गया और युवावस्था में ही उसकी मृत्यु हो गयी । संयोगवश उसने कभी चण्डीपाठ भी कराया था । जिसके पुण्य के प्रभाव से इतना निकृष्ट पापी भी नरक में नहीं गया । om, ॐदुसरे जन्म में वही राजनीतिपरायण मगध का विख्यात राजा महानन्द हुआ और उसे अपने पूर्वजन्म की पूरी स्मृति थी । अतिशय समर्थ बुद्धिमान् कात्यायन (वररुचि) का वह शिष्य हुआ । देवी महालक्ष्मी के बीजसहित मध्यम चरित्रका राजा महानन्द को उपदेश देकर कात्यायन स्वयं विन्ध्यपर्वतपर शक्ति-उपासना के लिये चले गये । इधर राजा भी प्रतिदिन महालक्ष्मी की कस्तुरी, चन्दन आदिसे पूजा कर श्रीदुर्गासप्तशती के मध्यम चरित्र का पाठ करने लगा । बारह वर्ष व्यतीत होनेपर शक्ति की उपासना करनेवाले कात्यायन पुनः अपने शिष्य महानन्द के पास आये और उन्होंने राजा से विधिपूर्वक लक्षचण्डीपाठ करवाया । फलस्वरूप सनातनी भगवती महालक्ष्मी प्रकट हुई और राजा को धर्म, अर्थ, कामसहित मोक्ष भी दे दिया । इस प्रकार महाभाग महानन्द ने देवों के समान अभीष्ट फलों का उपभोग कर अन्त में देवताओं से नमस्कृत हो परम लोक को प्राप्त किया ।
(अध्याय ३४)

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