भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ३५
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(प्रतिसर्गपर्व — द्वितीय भाग)
अध्याय – ३५
श्रीदुर्गासप्तशती के उत्तरचरित्र की महिमा के प्रसंग में योगाचार्य महर्षि पतञ्जलि का चरित्र

सूतजी बोले — अनेक धातुओं के द्वारा चित्रित रमणीय चित्रकूट पर्वतपर महाविद्वान् उपाध्याय पतञ्जलि मुनि रहते थे । वे वेद-वेदाङ्ग-तत्त्वज्ञ एवं गीता-शास्त्र-परायण थे । वे विष्णु के भक्त, सत्यवक्ता एवं व्याकरण-महाभाष्य के रचयिता भी माने गये हैं । एक समय वे शुद्धात्मा अन्य तीर्थों में गये । om, ॐकाशी में उनका देवीभक्त कात्यायन के साथ शास्त्रार्थ हुआ । एक वर्ष तक शास्त्रार्थ चलता रहा, अन्त मे पतञ्जलि पराजित हो गये । इससे लज्जित होकर उन्होंने सरस्वती की इस प्रकार आराधना की —

“नमो देव्यै महामूर्त्यै सर्वमूर्त्यै नमो नमः ।
शिवायै सर्वमाङ्गल्यै विष्णुमाये च ते नमः ॥
त्वमेव श्रद्धा बुद्धिस्त्वं मेधा विद्या शिवंकरी ।
शान्तिर्वाणी त्वमेवासि नारायणि नमो नमः ॥
(प्रतिसर्गपर्व २ । ३५ । ५-६)

‘महामूर्ति देवी को नमस्कार है । सर्व-मूर्ति-स्वरूपिणी को नमस्कार है । सर्व-मङ्गल-स्वरूपा शिवादेवी को नमस्कार है । हे विष्णुमाये ! तुम्हें नमस्कार है । हे नारायणि ! तुम्हीं श्रद्धा, बुद्धि, मेधा, विद्या तथा कल्याणकारिणी हो । तुम्हीं शान्ति हो, तूम्ही वाणी हो, तुम्हें बार-बार नमस्कार है ।’

इस स्तुति से प्रसन्न होकर भगवती सरस्वती ने आकाशवाणी में कहा – ‘विप्रश्रेष्ठ ! तुम एकाग्रचित्त होकर मेरे उत्तर चरित्र का जप करो । उसके प्रभाव से तुम निश्चय ही ज्ञान को प्राप्त करोगे । पतञ्जले ! कात्यायन तुम से परास्त हो जायेंगे ।’ देवी की इस वाणी को सुनकर पतञ्जलि ने विन्ध्यवासिनीदेवी के मन्दिर में जाकर सरस्वती की आराधना की और वे प्रसन्न हो गयीं । इससे उन्होंने पुन: शास्त्रार्थ में कात्यायन को पराजित कर दिया, बाद में उन्होंने कृष्ण-मन्त्र और भक्ति के प्रचार में तुलसीमाता आदि का भी महत्त्व बढ़ाया । भगवती विष्णुमाया की कृपा से वे योगाचार्य अत्यन्त चिरजीवी हो गये ।

मुनियों ! इस प्रकार दुर्गासप्तशती के उत्तर चरित्र की महिमा निरुपित हुई । अब आगे आपलोग क्या सुनना चाहते हैं, वह बतायें । सभी का कल्याण हो, कोई भी दुःख प्राप्त न करे । गरुडध्वज, पुण्डरीकाक्ष भगवान् विष्णु मंगलमय हैं । भगवान् विष्णु मंगलमूर्ति हैं । जो व्यक्ति पवित्र होकर इस इतिहास-समुच्चय को प्रतिदिन सुनता है, वह परमगति को प्राप्त होता है ।
(अध्याय ३५)

॥ ॐ तत्सत् प्रतिसर्गपर्व द्वितीय खण्ड शुभं भूयात् ॥

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