December 28, 2018 | Leave a comment भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व तृतीय – अध्याय ४ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (प्रतिसर्गपर्व — तृतीय भाग) अध्याय – ४ देशराज एवं वत्सराज आदि राजाओं का आविर्भाव सूतजी ने कहा — भोजराज के स्वर्गारोहण के पश्चात् उनके वंश में सात राजा हुए, किंतु अल्पायु होने के नाते उन भाग्यहीनों का राजकाल तीन सौ वर्ष के भीतर ही समाप्त हो गया और वे स्वर्गीय होते गये । उनके राज्य के अन्तर्गत छोटे-छोटे अनेक राजा हुए । उनके कुल के सातवें राजा का नाम वीरसिंह बताया जाता है । उनके कुल के तीन राजा दो सौ वर्ष के अन्तर्गत स्वर्गीय हो गये थे । दशवें राजा का नाम गंगा सिंह बताया जाता है, जिसने कल्पक्षेत्र में अपने राज्य का धर्मतः उपभोग किया है । अन्तर्वेदी नामक कान्यकुब्ज प्रदेश में जयचन्द्र नामक राजा हुआ तथा इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) में तोमर कुलभूषण अनंगपाल नामक राजा हुआ । इसी भाँति ग्राम-राष्ट्रपाल (जमीदार-तालुकेदार) के रूप में अनेक राजा हुए । अग्निवंश का बलवत्तर विस्तार हुआ है । पूर्व में कपिलाश्रम (गङगासागर), पश्चिम में वाहीकान्त उत्तर में चीन के अन्त तक और दक्षिण में सेतुबन्ध तक विस्तृत भूमि में साठ लाख बलवान ग्रामाधिप (जमीदार-तालुकेदार) हुए हैं, जो अग्निहोत्र करने वाले तथा गो-ब्राह्मण के हितैषी थे । उन धर्मकुशल राजाओं के समय में द्वापर के समान ही धर्म का प्रचार था, इसी से सभी स्थानों में द्वापर के समय का ही अनुभव हो रहा था । सभी घरों में धन था, प्रत्येक व्यक्ति धार्मिक थे, गाँव-गाँव में देवता प्रतिष्ठित थे और देश-देश में यज्ञानुष्ठान का महारम्भ हुआ था । उस समय चारों ओर म्लेच्छ राजा आर्य-धर्म के ही अनुयायी थे । इसे देखकर घोर कलि म्लेच्छ समेत अत्यन्त भीरु होकर नीलांचल पर पहुँचकर उस बुद्धिमान् ने भगवान् की शरण ली । वहाँ उसने बारह वर्ष तक ध्यानयोग किया-अपने ध्यान में सच्चिदानन्द एवं सनातन भगवान् कृष्ण को देखकर उसने राधा समेत उन भगवान् को मानसिक स्तुति द्वारा प्रसन्न किया जो पुराण (प्राचीन) रूप, अजर और नित्य वृन्दावन में निवास करते हैं । कलि ने कहा — स्वामिन् ! मेरे किये हुए साष्टांग दण्डवत् को आप स्वीकार करें । कृपानिधान ! मैं आपके चरण की शरण में आया हूँ, मेरी रक्षा कीजिये । आप समस्त पापों के नाशक तथा समस्त काल रूप भगवान् हैं । आप का रूप सत्ययुग में गौर, त्रेता में रक्तवर्ण, द्वापर में पीतवर्ण और मेरे समय सौभाग्यवश आप कृष्णरूप हैं । मेरे पुत्र जिन्हें म्लेच्छ कहा जाता है, आर्यधर्म के अनुयायी हो गये हैं । स्वामिन् ! मेरे लिए चार घरों का निर्माण किया गया है — द्यूत (जूआ खेलने का स्थान) मद्य का स्थान, सुवर्ण-स्थान, और स्त्रियों के हास्य । इन्हें अग्निवंश के क्षत्रियों ने नष्ट-भ्रष्ट कर दिया है । जनार्दन ! मैं इस समय देह, कुल और राष्ट्र का त्यागकर आपके चरणकमल में स्थित हूँ । यह सुनकर भगवान् कृष्ण ने मन्दमुस्कान करते हुए कहा — कले ! तुम्हारी रक्षा के लिए महाबली मैं उत्पन्न होऊँगा । वहाँ मेरा अंश भूतल में पहुँचकर उन बलशाली राजाओं का विनाश करके महीतल में म्लेच्छ वंश के राजाओं की प्रतिष्ठा करेंगे । इतना कहकर भगवान् उसी स्थान पर अन्तर्हित हो गये और म्लेच्छ समेत कलि को परम आनन्द की प्राप्ति हुई । उस बीच विप्र ! जो घटना घटी मैं बता रहा हूँ, सुनो ! बाक्सर (बक्सर) नामक गाँव में एक व्रतपा नाम की आभीरी (अहोरिन) रहती थी, जिसने नव वर्ष तक अनवरत श्री दुर्गा जी की उपासना दी थी । प्रसन्न होकर उससे चण्डिका देवी ने कहा — शोभने ! वर की याचना करो । आभीरी ने कहा — मातः ! यदि आपको वर प्रदान करना है, तो ईश्वरि (स्वामिनि) मेरे कुल में रामकृष्ण के समान दो बलशाली बालकों की उत्पत्ति हो ।’ इसे स्वीकार करके देवी उसी स्थान पर अन्तर्हित हो गई । वसुमान् नामक एक राजा ने उसके रूप-लावण्य पर मुग्ध होकर उसके साथ धार्मिक विवाह संस्कार सुसम्पन्न करके उसे अपने महल में रख लिया । उस राजा के उस रानी द्वारा देशराज और कनिष्ठ वत्सराज नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए, जो सौ हाथी के समान बलवान् थे । उन दोनों ने मगध के राजा पर विजय प्राप्तकर वहाँ के राजा हो गये । वनरस के अधिपति शतयत्त (सैयद) नामक म्लेच्छ अत्यन्त शूर था । उसके शिव की आज्ञावश भीमसेन के अंश से उत्पन्न, वीरण नामक पुत्र हुआ । एक म्लेच्छ ताड़ के बराबर ऊँचाई तक कूदता था इसीलिए उसका तालन नाम रखा गया था । उस समय उससे सैयद का रोमांचकारी युद्ध आरम्भ हुआ । उसमें बलवान् होने के नाते तालन की विजय हुई । पश्चात्, आपस में मित्रता करके वे तीनों शूर जयचन्द्र की परीक्षा के लिए उनके यहाँ गये । (अध्याय ४) See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१६ 2. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १९ से २१ 3. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व द्वितीय – अध्याय १९ से २१ 4. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ३५ 5. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व तृतीय – अध्याय १ 6. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व तृतीय – अध्याय २ 7. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व तृतीय – अध्याय ३ Related